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* श्रीकृष्णजन्मखण्ड * ५५१

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परमात्मस्वरूंपे! परमानन्दरूपिणि! तुम मुझपर | यशस्वियोंसे पृूजित और यशकी निधि हो; मेरे

प्रसन्न हो जाओ। भद्रे! तुम भद्र अर्थात्‌ कल्याण | ऊपर कृपा करो। देवि! तुम समस्त जगत्‌ एवं

प्रदान करनेवाली हो। दुर्गे! तुम दुर्गम संकटका | रत्रोंकी आधारभूता वसुन्धरा हो, चर और

निवारण तथा दुर्गतिका नाश करनेवाली हो । | अचरस्वरूपा हो; मुझपर शीघ्र ही प्रसन्न होओ।

भवसागरसे पार उतारनेके लिये नूतन एवं सुदृढ़ | सिद्धयोगिनि! तुम योगस्वरूपा, योगियोंकी स्वामिनी,

नौकास्वरूपिणी देवि! मुझपर कृपा करो। सर्वस्वरूपे! योगको देनेवाली, योगकी कारणभूता, योगकी

सर्वे श्वरि! सर्वबीजस्वरूपिणि ! स्वाधारे! सर्वविद्ये !| अधिष्ठात्री देवी और देविक ईश्वरी हो; मेरे

विजयप्रदे ! मुझपर प्रसन्न होओ। सर्वमङ्गले ! तुम | ऊपर कृपा करो। सिद्धेश्वरि! तुम सम्पूर्ण सिद्धिस्वरूपा,

सर्वमड्रलरूपा, सभी मङ्गलोंको देनेबाली तथा | समस्त सिद्धियोंको देनेवाली तथा सभी सिद्धियोंका

सम्पूर्ण मज़लॉंकी आधारभूता हो; मेरे ऊपर कृपा | कारण हो; मुझपर प्रसन्न होओ। महेश्वरि ! विभिन

करो। भक्तवत्सले ! तुम निद्रा, तनद्रा, क्षमा, श्रद्धा, | मतके अनुसार जो समस्त शास्त्रोंका व्याख्यान

तुष्टि, पुष्टि, लज्जा, मेधा और बुद्धिरूपा हो; मुझपर | है, उसका तात्पर्य तुम्हीं हो । ज्ञानस्वरूपे परमेश्वरि!

प्रसन्न होओ। वेदमातः! तुम वेदस्वरूपा, वेदोंका | मैंने जो कुछ अनुचित कहा हो, वह सब तुम

कारण, वेदोंका ज्ञान देनेवाली और सम्पूर्ण क्षमा करो। कुछ दिद्वान्‌ प्रकृतिकी प्रधानता

वेदाड़-स्वरूपिणी हो; मेरे ऊपर कृपा करो।|बतलाते हैं और कुछ पुरुषकी। कुछ विद्वान्‌ इन

जगदम्बिके ! तुम दया, जया, महामाया, क्षमाशील, | दो प्रकारके मतोंमें व्याख्याभेदको ही कारण मानते

शान्त, सबका अन्त करनेवाली तथा श्षुधा- है । पहले प्रलयकालमें एकार्णवके जलमें शयन

पिपासारूपिणी हो; मुझपर प्रसन्न होओ। विष्णुमाये ! करनेवाले महाविष्णुके नाभिदेशसे प्रकट हुए

तुम नारायणकी गोदमें लक्ष्मी, ब्रह्मके वक्षः- कमलपर, उसीसे उत्पन्न हुए जो ब्रह्माजी बैठे

स्यलमे सरस्वती ओर मेरी गोदमें महामाया हो; | थे, उन्हें महादैत्य मधु ओर कैटभ खेल-खेलनें

मेरे ऊपर कृपा करो। दीनवत्सले! तुम कला, | ही मारनेको उद्यत हो गये । तब ब्रह्माजी अपनी

दिशा, दिन तथा रात्रिस्वरूपा एवं कर्मोके परिणाम | रक्षाके लिये तुम्हारी स्तुति करने लगे । उन्हें स्तुति

(फल) -को देनेवाली हो; मुझपर प्रसन्न होओ। | करते देख तुमने उन दोनों महादैत्योकि विनाशके

राधिके! तुम सभी शक्तियोंका कारण, श्रीकृष्णके | लिये जलशायी महाविष्णुको जगा दिया। तय

हृदयमन्दिरमें निवास करनेवाली, श्रीकृष्णकी | नारायणने तुम॒शक्तिकी सहायतासे उन दोनों

प्राणोंसे भी अधिक प्रिया तथा श्रीकृष्णसे पूजित | महादैत्योंको मार डाला। ये भगवान्‌ तुम्हारा

हो। मेरे ऊपर कृपा करो। देवि! तुम यशःस्वरूपा, | सहयोग पाकर ही सब कुछ करनेमें समर्थ है ।

सभी यशकी कारणभूता, यश देनेवाली, सम्पूर्ण तुम्हारे विना शक्तिहीन होनेके कारण ये कुछ

देवीस्वरूपा और अखिल नारीरूपकी सृष्टि | भी नहीं कर सकते । सुरेश्वरि ! पूर्वकालमें त्रिपुरोंसे

करनेवाली हो। शुभे! तुम अपनी कलाके | संग्राम करते समय जब मैं आकाशसे नीचे गिर

अंशमात्रसे सम्पूर्ण कामिनियोंका रूप धारण | पड़ा, तब तुमने हौ विष्णुके साथ आकर मेरी

करनेवाली, सर्वसम्पत्स्वरूपा तथा समस्त सम्पत्तिको रक्षा कौ थी। ईश्वरि! इस समय मैं विरहाग्रिसे

देनेवाली हो; मुझपर प्रसन्न होओ। देवि! तुम | जल रहा हूँ; तुम मेरी रक्षा करो। परमेश्वरि! अपने

परमानन्दस्वरूपा, सम्पूर्ण सम्पत्तियोंका कारण, दर्शनके पुण्यसे मुझे क्रीत दास बना लो।

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