तथा दवलाकस हठातू अमृतं छान लावा ठ ।
उनका शरीर विशाल और बल एवं वेग महान् है।
वे अमृतभोगी है । उनकी शक्ति अप्रमेय है। वे
युद्धमें दुर्जय रहकर देवशत्रुओंका संहार करनेवाले
हैं। उनकी गति वायुके समान तीव्र है। वे गरुड
तुममें प्रतिष्ठित है । देवाधिदेव भगवान् विष्णुने
इन्द्रके लिये तुममें उन्हें स्थापित किया है, तुम
सदा मुझे विजय प्रदान करो। मेरे बलेको बटाओ।
घोडे, कवच तथा आयुधोंसहित हमारे योद्धाओंकी
रक्षा करो और शत्रुओंको जलाकर भस्म कर
दो'॥ ९-१३॥
गज-प्रार्थना-मन्त्र
"कुमुद, ऐराबत, पद्म, पुष्पदन्त, वामन्, सुप्रतीक,
अञ्जन और नील-ये आठ देवयोनि उत्पन्न
गजराज हैं। इनके ही पुत्र और पौत्र आठ बनोंमें
निवास करते हैं। भद्र, मन्द, मृग एवं संकीर्णजातीय
गज वन-वनमें उत्पन्न हुए हैँ । हे महागजराज !
तुम अपनी योनिका स्मरण करो । वसुगण, रुद्र,
आदित्य एवं मरुद्गण तुम्हारी रक्षा करे । गजेन्द्र!
अपने स्वामीकी रक्षा करो और अपनी
मर्यादाका पालन करो । ऐरावतपर चढ़े हुए वज्रधारी
देवराज इन्द्र तुम्हारे पीछे-पीछे आ रहे हैं, ये
तुम्हारी रक्षा करें । तुम युद्धे विजय पाओ और
सदा स्वस्थ रहकर आगे बदो। तुम्हें युद्धमें
एेरावतके समान बल प्राप्त हो। तुम चन्द्रमासे
कान्ति, विष्णुसे बल, सूर्यसे तेज, वायुसे वेग,
पर्वतसे स्थिरता, रुद्रसे विजय ओर देवराज इन्द्रसे
यश प्राप्त करो। युद्धमें दिग्गज दिशाओं और
दिक्पालोके साथ तुम्हारी रक्षा करें। गन्धर्वोंके
साथ अश्विनीकुमार सब ओरसे तुम्हारा संरक्षण
करेँ। मनु, वसु, रुद्र, वायु, चन्द्रमा, महर्षिगण,
नाग, किंनर, यक्ष, भूत, प्रमथ, ग्रह, आदित्य,
मातृकाओंसहित भूतेश्वर शिव, इन्द्र, देवसेनापति
फः॥ तन मार् सरग पुन ९१ ॥
समस्त शत्रुओंको भस्मसात् कर दें और राजा
विजय प्राप्त करें ' ॥ १४--२३॥
पताका-प्रार्थना-मन्त्र
"पताके ! शत्रुओंने सब ओर जो घातक प्रयोग
किये हों, शत्रुओंके वे प्रयोग तुम्हारे तेजसे अभिहत
होकर नष्ट हो जाँ । तुम जिस प्रकार कालनेमिवध
एवं त्रिपुरसंहारके युद्धे, हिरण्यकशिपुके संग्राममे
तथा सम्पूर्ण दैत्योकि वधके समय सुशोभित हुई
हो, आज उसी प्रकार सुशोभित होओ। अपने
प्रणका स्मरण करो। इस नीलोज्ज्वलवर्णकी
पताकाको देखकर राजाके शत्रु युद्धमें विविध
भयंकर व्याधियों एवं शस्त्रोंसे पराजित होकर
शीघ्र नष्ट हो जायं । तुम पूतना, रेवती, लेखा और
कालरात्रि आदि नामोंसे प्रसिद्ध हो। पताके! हम
तुम्हारा आश्रय ग्रहण करते हैं, हमारे सम्पूर्ण शत्रुओंको
दग्ध कर डालो। सर्वमेध महायज्ञमें देवाधिदेव
भगवान् रुद्रने जगत्के सारतत्त्वसे तुम्हारा
निर्माण किया था'॥ २४--२८ ६ ॥
खड्ड-प्रार्थना-मन्त्र
"शत्रुसूदन खड़ ! तुम इस बातको याद रखो
कि नारायणके “नन्दक”' नामक खङ्गकी दूसरी
मूर्ति हो। तुम नीलकमलदलके समान श्याम एवं
कृष्णवर्णं हो। दुःस्वप्नोंका विनाश करनेवाले हो।
प्राचीनकालमें स्वयम्भू भगवान् ब्रह्माने असि,
विशसन, खङ्ग, तीक्ष्णधार, दुरासद, श्रीगर्भ,
विजय और धर्मपाल-ये तुम्हरे आठ नाम
बतलाये हैं। कृत्तिका तुम्हारा नक्षत्र है, देवाधिदेव
महेश्वर तुम्हारे गुरु है, सुवर्णं तुम्हारा शरीर है और
जनार्दन तुम्हारे देवता हैं। खड़! तुम सेना एवं
नगरसहित राजाकी रक्षा करो । तुम्हारे पिता देवश्रेष्ठ
पितामह हैं। तुम सदा हमलोगोंकी रक्षा
करो ' ॥ २९--३३॥