पुष्पराग प्रकारादि मुक्ताहार वर्णन |] [ ५८५
गृहसप्तान्दुराच।राल्ललिताद्रे षकारिभः ।
कूट भक्तिप रानमूर्खाच् स्तब्धानत्यंतद पितान् ॥५८
मन्त्र चो रान्वुः मन्त्रांश्च कुविद्ानघसंश्रयान् ।
नास्तिकान्पापशीलां श्च वृथेव प्राणिहिसकान् ।५६
स्तर द्विशंल्लोकविद्वि्टन्पाषंडानां हि पालिनः ।
कालसूत्रे रौरवे च कुम्भीपके च॑ कुम्भज ॥६०
असिपत्रवने घोरे कृभिभक्षे प्रतापने ।
लालाशेपे सूचिवेधघे तर्थेवांगारपातने ।।६१
एवमादिषु कष्टेषु नरकेषु घटोद्भव ।
पातयत्याज्ञया तस्याः श्रीदेव्या: स॒ महौजसः ॥६२
तस्येव पश्चिमे भागे निऋ तिः खडगधारकः ।
राक्षसं लोकमाश्रित्य वतेते ललिताचंकः ॥६३
चित्रगुप्त जिनमें अग्रणी है ऐसे यमराज के भटों के साथ आज्ञा के
धारण करने वाले गुह श्री देवी के समय को नियमित किया करते हैं ।५७।
जो गुह के द्वारा शप्त हैं--दुराचारी हैं--ललिता के साथ द्वंष करने वाले
हैं--कूटभक्ति में तत्पर हैं--मूर्ख हैं-स्तब्ध हैं और बहुत ही अधिक दपं
वाले हैं-मन्त्र चोर हैं--कुत्सित मन्त्र वाले हैं-कुविद्या के पाप का संस्रय
करने वाले हैं-तास्तिक हैं--पाप कर्मों के करने वाले हैं उनको भिन्न-भिन्न
नरकों में डाल दिया जाता है। उन नरको के नाम ये हैं-कालसूत्र-रौरव-
कुम्भीपाक-बह महान ओज वाला उसी स्त्री देवी की आज्ञा से हे घटोदुभव !
इन नरको में डाल दिया करता है ।५८-६२। उसके हो पश्चिम भाग में
खड्ग का धारण करने वाला निऋ ति है। वह भौली ललिता का अर्चक
राक्षस लोक का आस्रय ग्रहण करके रहा करते हैं ।६३।
तस्य चोत्तरभागे तु द्वारयोरंतरस्थले ।
वारणं लोकमाभ्रित्य वरुण वतंते सदा ॥ ६४
वारुण्यास्वादनोन्मत्तः शुभ्रांगो झषवाहन: ।
सदा श्रीदेवतामंत्रजापी श्रक्रमसाधकः ।६५