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कर डाले ॥ १२-१३ ५॥

जो युद्धसे भागकर या पीछे हटकर शत्रुको

उसकी भूमिये बाहर खींच लाते हैं, ऐसे वनचरों

(आटबिकों) तथा अमित्र सैनिकोंने पाशभूत होकर

जिसे प्रकृतिप्रगहसे (स्वभूमि या मण्डलसे) दूर--

परकीय भूमिमें आकृष्ट कर लिया है, उस शत्रुको

प्रकृष्ट वीर योद्धाओंद्वारा मरबा डाले। कुछ थोड़े-

से सैनिकोंको सामनेकी ओरसे युद्धके लिये उद्यत

दिखा दे और जब शत्रुके सैनिक उन्हींकों अपना

लक्ष्य बनानेका निश्चय कर लें, तब पीछेसे वेगशाली

उत्कृष्ट वीरोंकी सेनाके साथ पहुँचकर उन शत्रुओंका

बिनाश करे। अथवा पीछेकी ओर ही सेना एकत्र

करके दिखाये और जब शत्रु-सैनिकोंका ध्यान

उधर ही खिंच जाय, तब सामनेकी ओरसे शुरबीर

बलवान्‌ सेनाद्वारा आक्रमण करके उन्हें नष्ट कर

दे। सामने तथा पीछेकी ओरसे किये जानेबाले इन

दो आक्रमणोंद्वारा अगल-बगलसे किये जानेवाले

आक्रमणोंकी भी व्याख्या हो गयी अर्थात्‌ बायीं

ओर कुछ सेना दिखाकर दाहिनी ओरसे और

दाहिनी ओर सेना दिखाकर बायीं ओरसे गुप्तरूपसे

आक्रमण करे। कूटयुद्धमें ऐसा ही करना चाहिये।

पहले दृष्यबल, अमित्रबल तथा आटविकबल--

इन सबके साथ शत्रुसेनाकों लड़ाकर थका दे।

जब शत्रुबल श्रान्त, मन्द ( हतोत्साह ) और निराक्रन्द

(भित्ररहित एवं निराश) हो जाय और अपनी

सेनाके वाहन थके न हों, उस दशामें आक्रमण

करके शत्रुवर्गको मार गिराये। अथवा दूष्य एवं

अमित्र सेनाको युद्धसे पीछे हटने या भागनेका

आदेश दे दे ओर जब शत्रुको यह विश्वास हो

जाय कि मेरी जीत हो गयी, अतः वह ढीला पड़

जाय, तब मन्त्रनलका आश्रय ले प्रयत्नपूर्वक

आक्रमण करके उसे मार डाले । स्कन्धावार (सेनाके

पड़ाव), पुर, ग्राम, सस्यसमूह तथा गौ ओके व्रज

(गोष्ठ) --इन सबको लूटनेका लोभ शत्रु-सैनिकोकि

मनमें उत्पन्न करा दे और जब उनका ध्यान बाँट

जाय, तब स्वयं सावधान रहकर उन सबका

संहार कर डाले। अथवा शत्रु राजाकी गायोंका

अपहरण करके उन्हें दूसरी ओर (गार्योको

छुड़ानेवालोंकी ओर) खींचे और जव शत्रुसेना

उस लक्ष्यकी ओर बढ़े, तब उसे मार्गमें ही गेककर

मार डाले। अथवा अपने ही ऊपर आक्रमणके

भयसे रातभर जागनेके श्रमसे दिनमें सोयी हुई

शत्रुसेनाके सैनिक जब नींदसे व्याकुल हों, उस

समय उनपर धावा बोलकर मार डाले। अथवा रातमें

ही निश्चिन्त सोये हुए सैनिरकोको तलवार हाथमें

लिये हुए पुरुषोंद्वारा मरवा दे ॥ १४-२२ ३ ॥

जब सेना कूच कर चुकी हो तथा शतुने

मार्गमे ही घेरा डाल दिया हो तो उसके उस घेरे

या अवरोधको नष्ट करनेके लिये हाथियोंकों ही

आगे-आगे ले चलना चाहिये। बन-दुर्गमें, जहाँ

घोड़े भी प्रवेश न कर सकें, वहाँ हाथियोंकी ही

सहायतासे सेनाका प्रवेश होता है-वे आगेके

वृक्ष आदिको तोड़कर सैनिकोके प्रवेशके लिये

मार्ग बना देते हैं। जहाँ सैनिकोंकी पंक्ति ठोस हो,

वहाँ उसे तोड़ देना हाथियोंका ही काम है तथा

जहाँ व्यूह टूटनेसे सैनिकपंक्तिमें दरार पड़ गयी

हो, वहाँ हाथियोंके खड़े होनेसे छिद्र या दरार बंद

हो जाती है। शत्रुओंमें भय उत्पन्न करना, शत्रुके

दुर्गके द्वारकों माथेकी टक्कर देकर तोड़ गिराना,

खजानेको सेनाके साथ ले चलना तथा किसी

उपस्थित भयसे सेनाकी रक्षा करना-ये सब

हाथियोंद्वारा सिद्ध होनेवाले कर्म हैं॥२३-२४॥

अभिन्‍न सेनाका भेदन और भिन्‍न सेनाका

संधान- ये दोनों कार्य (गजसेनाकी ही भाँति)

रथसेनाके द्वारा भी साध्य हैं। वनमें कहाँ उपद्रव

है, कहाँ नहीं है--इसका पता लगाना, दिशाओंका

शोध करना (दिशाका ठीक ज्ञान रखते हुए सेनाको

यथार्थ दिशाकी ओर ले चलना) तथा मार्गका

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