धथ । [ बरह्याण्ड पुराण
के योगसे किये जाते हैं । ब्रह्मा के अभिमन्यु वे वेकल्प से संप्रवृत्त होते
हैं।१०५॥ _ <
इत्येत प्राक् ताणचौव बेकुताश्च नव स्मृताः ।
सर्गाः परस्परोत्पन्नाः कारणं तु बुधैः स्मृतम् । १०६
मूद्धनिं वं यस्य वेदा वदंति चियन्नाभिश्चन्द्रसूयौ च नेत्रे ।
दिशः श्रोत्रे विद्धि पादौ क्षिति च सोऽशित्यात्मा
सर्वभूत णेता ।। १०५
वक्त्राद्यस्य ब्राह्यणाः संप्रसूता वक्षसश्नैव क्षत्रिया: पूर्वभागे
वैश्या ऊरुभ्यां यस्य पद्भ्यां ज शूद्राः सर्वे वर्णा गात्रतः
संप्रसूताः ॥ {७२८
नारायणात्परोव्यक्तादंडमव्यक्तसंज्ितम् ।
अ उजस्तु स्वयं ब्रह्मा लोकास्तेन कृताः स्वयम् ।।१०६
- तत्र कल्पाच् दण स्थित्वा सत्यं गच्छति ते पुनः ।
ले लोका ब्रह्मलोक व अपरावत्तिनीं गतिम् ॥११०
आधिपत्यं विना ते वें ऐश्वर्येण तु तत्समाः ।
भवंति ब्रह्मणा तुल्या रूपेण विषयेण च । १११
तत्र ते ह्यवतिष्ठंते प्रीतियुक्ताः स्वसंयुताः ।
: अश्वय भावितार्थेन श्राकृतं तनु स्वयम् ॥॥ १५१ २
ये इस: प्रकार से प्राकृत और वैकृत नौ सर्म कहै गये है । ये सर्म पर-
स्प भेह समुत्पन्न हुए हैं और बुधजन ने तो कारण बताया है ।१०६। वेद
जिसके मूर्धा को कहते हैं--वियत इसकी नाभि है ओर चच तथा सूर्म
जिसके दोनों नेश है । दिशाये इसके श्रोत्न हैं, भूमिको इसके चरण समक्षिए-
वह न चिन्तन करने के योग्य आत्मा वाला और समस्त भूतो का अणेता है
।१०७। जिसके मुखसे ब्राह्मण समुत्पन्न हुए हैं और जिसके वक्षःस्थल से पूर्व
भाग में क्षत्रियो की समुत्पत्ति हई है ।/जिसके ऊश्ओं से वेश्य ओर पदो से
शुद्ध समुदुभूत-हुएं।हैं सभो चारीं वर्ण उदी के शरीर से उत्पन्न हुए हैं
। १०५। व्यक्त नारायण से पर अण्ड हूं जो अव्यक्तः संशा वाला हे । इस अण्ड
सेः जन्मः ग्रहण करने वाला स्वयं ब्रह्मा हं ओर उक्ती के द्वारा स्वयं लोकों की