तथा सहस आकारधारी व्यापक परमात्माको मेरा
नमस्कार है। जो समस्त कल्मषोंसे रहित, परम
शुद्ध तथा नित्य ध्यानयोग-रत है, उसे नमस्कार
करके मैं प्रस्तुत रक्षाके विषयमें कहूँगा, जिससे
मेरी वाणी सत्य हो ^ महामुने ! मैं भगवान् वाराह,
नृसिंह तथा वामनको भी नमस्कार करके रक्षाके
विषयमे जो कुछ कहूँगा, मेरा वह कथन सिद्ध
(सफल) हो # मैं भगवान् त्रिविक्रम (त्रिलोकीको
तीन पगोंसे नापनेवाले विराट्स्वरूप), श्रीराम,
वैकुण्ठ (नारायण) तथा नरको भी नमस्कार
करके जो करूंगा, वह मेरा वचन सत्य सिद्ध
हो, ॥ १०--५॥
अपामार्जनविधानम्
वराह नरसिंहेश वामनेश त्रिविक्रम।
हयग्रीवेश सर्वेश हषीकेश हराशुभम् ॥ ६॥
अपराजित चक्रादयैश्चतुर्भिः परमायुधैः।
अखण्डितानुभावैस्त्वं सर्वदुष्टहरो भव ॥७॥
हरामुकस्य दुरितं सर्वं च कुशलं कुरु।
भृत्युबन्धार्तिभयदं दुरिष्टस्य च यत्फलम्॥ ८॥
भगवन् वराह ! नृसिंहेश्वर! वामनेश्वर ! त्रिविक्रम!
हयग्रीवेश, सर्वेश तथा षीकेश! मेरा सारा अशुभ
हर लीजिये! किसीसे भी पराजित न होनेवाले
परमेश्वर! अपने अखण्डित प्रभावशाली चक्र
आदि चारों आयुधोंसे समस्त दुषटौका संहार कर
डालिये। प्रभो! आप अमुक (रोगी या प्रार्थी)
के सम्पूर्ण पापोंको हर लीजिये और उसके लिये
पूर्णतया कुशल-क्षेमका सम्पादन कीजिये । दोषयुक्त
यज्ञ या पापके फलस्वरूप जो मृत्यु, बन्धन, रोग,
पीडा या भय आदि प्राप्त होते हैं, उन सबको
मिटा दीजिये ॥ ६--८॥
पराभिध्यानसहितैः प्रयुक्तं चाभिचारिकम्।
गरस्पर्शमहारोगप्रयोगे जरया जर॥ ९ ॥
ॐ नमो वासुदेवाय नमः कृष्णाय खड्गिने।
नमः पुष्करनेत्राय केशवायादिचक्रिणे ॥ १०॥
नमः कमलकिञ्चल्कपीतनिर्मलवाससे।
महाहवरिपुस्कन्धवृष्टचक्राय चक्रिणे ॥ ११॥
दंष्टोद्धतश्षितिभृते त्रयीमूर्तिमते नमः।
महायज्ञवराहाय शेषभोगाङ्कशायिने ॥ १२॥
तप्रहाटककेशान्तज्वलत्पावकलोचन ।
वज्राधिकनखस्पर्श दिव्यसिंह नमोऽस्तु ते॥ ९३॥
काश्यपायातिहस्वाय ऋग्यजुःसामभूषिणे।
तुभ्यं वामनरूपायाक्रमते गां नमो नमः॥ १४॥
दूसरोके अनिष्ट-चिन्तनमें संलग्न लोगोंद्वारा
जो आभिचारिक कर्मका, विषमिश्रित अन्न-
पानका या महारोगका प्रयोग किया गया है, उन
सबको जरा-जीर्ण कर डालिये--नष्ट कर दीजिये।
ॐ भगवान् वासुदेवको नमस्कार है । खड्गधारी
श्रीकृष्णको नमस्कार है। आदिचक्रधारी कमल-
नयन केशवको नमस्कार है । कमलपुष्पके केसरोंकी
भाँति पौत-निर्मल वख धारण करनेवाले भगवान्
पीताम्बरको प्रणाम है। जो महासमरमें शत्रुओंके
कंधोंसे धृष्ट होता है, ऐसे चक्रके चालक भगवान्
चक्रपाणिको नमस्कार है । अपनी दंष्टापर उठायी
हुई पृथ्वीको धारण करनेवाले वेद-विग्रह एवं
शेषशय्याशायी महान् यज्ञवराहको नमस्कार है।
दिव्यसिंह ! आपके केशान्त प्रतप्त-सुवर्णके समान
कान्तिमान् हैं, नेत्र प्रज्वलित पावकके समान
तेजस्वी हैं तथा आपके नखोंका स्पर्श वज्रसे भी
अधिक तीक्ष्ण है; आपको नमस्कार है। अत्यन्त
लघुकाय तथा ऋग्, यजु ओर साम तीनों वेदसे
१. ॐ जपः पार्थाय पुरुयाय महात्मने। अरूपकहुरूपाय व्यापिने परमात्मने ॥
निष्कल्मषाय शुद्धाय, ध्यानयोगरताय च । नमस्कृत्य प्रवक्ष्यामि यत् तत् सिष्यतु मे वचः॥
„, चराहाय नुिंहाय कामका महात्मने। बपस्कृत्व प्रवक्ष्यामि यत् तत् सिध्यतु मे वचः ॥
र
३. ज़िविक्रमाय रामाय चैकुण्डाय नराय च । नमस्कृत्य प्रयक्ष्यामि यत् तत् सिध्यतु मे वचः ॥
(३११२-५)