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वष्कयणी (बकेना) तथा थोड़े दिनोंकी न्यायी
हुईका नाम धेनु है। साँड्से लगी हुई गौको
संधिनी कहते हैं। गर्भ गिरानेवाली गायकौ
"वेहद् ' संज्ञा है ॥ २३-३२॥
पण्याजीव तथा आपणिक व्यापारीके अर्थे
आते हैं। न्यास और उपनिधि--ये धरोहरके
वाचक है । ये दोनों शब्द पुंिङ्ग ॒है। बेचनेका
नाम है विपण ओर विक्रय। संख्यावाचक शब्द
एकसे लेकर " दश' शब्दके श्रवण होनेतक (अर्थात्
एकसे अष्टादशतक) केवल संख्येय द्रव्यका बोध
करानेके लिये प्रयुक्त होते हैं, अत: उनका तीनों
लिङ्गे प्रयोग होता है । जैसे-एकः पटः, एका
स्त्री, एकं पुष्यम् इत्यादि; परंतु पञ्चन् ' से ' दशन्"
शब्दतकके रूप तीनों लिङ्गो समान होते है ।
यथा -दश स्त्रियः, दश पुरुषाः, दश पुष्पाणि
इत्यादि । इसी प्रकार अष्टादशतक समझना चाहिये ।
संख्यामात्रका बोध करानेके लिये इन शब्दोंका
प्रयोग नहीं होता; अतएव " विप्राणां शतम्'
इत्यादिके समान ' विप्राणां दश ' यह प्रयोग नहीं
हो सकता। विंशति आदि सभी संख्यावाचौ शब्द
संख्या और संख्येय दोनों अर्थों आते हैं तथा वे
नित्य एक वचनान्त माने जाते हैं। (यथा
संख्येयमें विंशतिः पटाः । संख्यामातरमे - विंशतिः
टानाम् इत्यादि। परंतु इनकी एकवचनान्तता
केवल संख्येय अर्थमें ही मानी गयी है।)
संख्यामात्र्मे ये द्विवचन और बहुवचन भी होते
हैं (यथा दो बीस, तीन बीस आदिके अर्थमे-
द्र विंशती, त्रयो विंशतयः - इत्यादि) । ऊनविंशतिसे
लेकर नवनवतितक सभी संख्याशब्द स्त्रीलिङ्ग हैं
(अतएव ' विंशत्या पुरुषैः ' इत्यादि प्रयोग होते
ह) । " पद्कि" से लेकर शत, सहस्र आदि शब्द
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क्रमशः दसगुने अधिक हैं (यथा पङ्कः (१०),
शतम् (१००), सहस्रम् (१०००), अयुतम्
(१००००) इत्यादि) । मान तीन प्रकारके होते
है-- तुलामान, अङ्गुलिमान और प्रस्थमान। पाँच
गुंजे (रत्ती)-का एक माषक (माशा) होता
है ॥ ३४--३६ ॥
सोलह माषकका एक अक्ष होता है, इसीको
कर्ष भी कहते हैं। कर्षं पिङ्ग भी है और
नपुंसकलिङ्ग भी। चार कर्षका एक पल होता है ।
एक अक्ष सोनेको * सुवर्ण" और बिस्त कहते हैं
तथा एक पल सुवर्णका नाम 'कुरुबिस्त' है। सौ
पलकी एक ' तुला होती है, यह स्त्रीलिङ्गं शब्द
है। बीस तुलाको 'भार' कहते हैं। चाँदीके
रुपयेका नाम कार्षापण और कार्षिक है । ताँबेके
पैसेको पण" कहते है । द्रव्य, वित्त, स्वापतेय,
रिक्थ, ऋक्थ, धन और वसु -ये धनके वाचक
है । स्त्रीलिङ्ग रीति शब्द ओर पुल्लिज्ञ आरकूट--
ये पीतलके अर्थमें प्रयुक्त होते है । तौबाका नाम--
ताम्रक, शुल्ब तथा ओदुम्बर है । तीक्ष्ण, कालायस
ओर आयस--ये लोहेके अर्थे आते है । क्षार
और काँच--ये काँचके नाम है । चपल, रस, सूत
और पारद-ये पाराके वाचक हैं। भैंसेके
सींगका नाम गरल (या गवल) है । त्रपु, सीसक
और पिच्वट--ये सीसाके अर्थे प्रयुक्त होते है ।*
हिण्डीर, अव्धिकफ तथा फेन -ये समुद्रफेनके
वाचक हँ । मधूच्छिष्ट ओर सिक्थक-ये मोमके
नाम हैं। रंग और वंग-रगाके, पिचु ओर तूल -
रुके तथा कूलटौ (कुनरी) और मनःशिला-
मैनसिलके नाम हैं। यवक्षार और पाक्य-
पर्यायवाची शब्द हैं । त्वकक्षीरा और वंशलोचना-
वंशलोचनके वाचक है ॥ ३७ --४२॥
* अमरकोषे इस श्लोकके 'त्रपु' और "पिच्वर ' शब्दको रोगेके अर्थमें लिया गया है तथा सौसकके नाण, योगेष्ट ओर वप्र ~ ये तीन
पर्याय अन्य दिये गये ह ।