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है। प्रथमान्त आदि शब्द सुबन्तके साथ समस्त

होते है । “पूर्वकायः' इस तत्पुरुषसमासे जब

"पूर्वं कायस्य ' - ऐसा विग्रह किया जाता है, तब

यह 'प्रथमा-तत्पुरुष ' समास कहा जाता है । इसी

प्रकार "अपरकायः ' - कायस्य अपरम्‌, इस विग्रहमें,

"अधरकायः '-- कायस्य अधरम्‌-इस विग्रहे

और "उत्तरकायः '-- कायस्योत्तरम्‌- इस विग्रहे

भी प्रथमा-तत्पुरुष समास कहा जाता है। ऐसे ही

'अर्द्धकणा' इसमें अर्द्धमू कणाया:--ऐसा विग्रह

होनेसे प्रथमा-तत्पुरुष समास होता है एवं

*भिक्षातुर्यम'-- इसमें तुर्यं भिक्षाया:--ऐसा विग्रह

होनेसे तुर्यभिक्षा और पक्षान्तरमें 'भिक्षातुर्यम्‌'--

ऐसा पषष्टी-तत्पुरुष होता है। ऐसे ही ' आपन्नजीविकः '

यह द्वितीया-तत्पुरुष समास है। इसका विग्रह इस

प्रकार होता है-' आपन्नो जीविकाम्‌।' पक्षान्तरमें

“जीविकापन्न:' ऐसा रूप होता है। इसी प्रकार

*मराधवाश्नित: '-- यह द्वितीया-समास है; इसका

विग्रह "माधवम्‌ आश्रितः'-इस प्रकार है।

*वर्षभोग्य: '-- यह द्वितीया- तत्पुरुष समास है--

इसका विग्रह है “वर्ष भोग्यः।' ' धान्यार्थः ' यह

तृतीया-समास है। इसका विग्रह " धान्येन अर्थः '

इस प्रकार है। ' विष्णुबलिः' यहाँ ' विष्णवे

बलिः '- इस विग्रहे चतुथी - तत्पुरुष समास होता

है । "वृकभीतिः यह पञ्चमी -तत्पुरुष है। इसका

विग्रह "वृकाद्‌ भीतिः'-इस प्रकार है।

*राजपुमान्‌'-- यहाँ "राज्ञः पुमान्‌'- इस विग्रहे

षष्ठी तत्पुरुष समास होता है । इसी प्रकार “वृक्षस्य

फलम्‌--वृक्षफलम्‌'--यहाँ षष्ठी तत्पुरुष समास

है। "अक्षशौण्डः" (युतक्रौटामे निपुण) इसमें

सप्तमी -तत्पुरुष समास है । अहितः-- जो हितकारी

न हो, वह--इसमें ' नजूसमास' है ॥ १--७॥

“नीलोत्पल ' आदि जिसके उदाहरण हैं,

वह ' कर्मधारय" समास सात प्रकारका होता है

१-विशेषणपूर्वपद (जिसमें विशेषण पूर्वपद हो

और विशेष्य उत्तरपद अथवा) । इसका उदाहरण

है -' नीलोत्पल" (नीला कमल) । २-विशेष्योत्तर-

विशेषणपद- इसका उदाहरण है -' वैया-

करणखसुचिः' (कुछ पूछनेपर आकाशकी ओर

देखनेवाला बैयाकरण)। ३-विशेषणोभयपद

(अथवा विशेषणद्विपद) जिसमें दोनों पद

विशेषणरूप ही हों। जैसे-शीतोष्ण (ठंडा-

गरम)। ४-उपमानपूर्वपद। इसका उदाहरण

है-शङ्खपाण्डुरः (शङ्खके समान सफेद)।

५-उपमानोत्तरपद--इसका उदाहरण है--'पुरुष-

व्याप्र:' (पुरुषो व्याघ्र इव) । ६-सम्भावना-

पूर्वपद-- (जिसमें पूर्वपद सम्भावनात्मक हो)

उदाहरण - गुणवृद्धिः (गुण इति वृद्धिः स्यात्‌ ।

अर्थात्‌ "गुण" शब्द बोलनेसे वृद्धिकी सम्भावना

होती है) । तात्पर्य यह है कि "वृद्धि हो-यह

कहनेकी आवश्यकता हो तो ' गुण' शब्दका ही

उच्चारण करना चाहिये। ७-अवधारणपूर्वपद--

[जहाँ पूर्वपदे "अवधारण" (निश्चय) सूचक

शब्दका प्रयोग हो, वह] । जैसे --' सुहृदेव सुबन्धुकः '

(सुहद्‌ ही सुबन्धु है) । बहुत्रीहिसमास भी सात

प्रकारका ही होता दै ॥ ८--११॥

१-द्विपद, २-बहुपद, ३-संख्योत्तरपद, ४-

संख्योभयपद, ५-सहपूर्वपद, ६-व्यतिहारलक्षणार्थ

तथा ७- दिग्लक्षणार्थ। ' द्विपद बहुव्रीहि 'में दो ही

पदोंका समास होता है। यथा--'आरूढभवनो

नरः'। ( आरूढं भवनं येन सः--इस विग्रहके

अनुसार जो भवनपर आरूढ हो गया हो, उस

मनुष्यका बोध कराता है ।) " बहुपद बहुव्रीहि "में

दोसे अधिक पद समासे आबद्ध होते हैं। इसका

उदाहरण है - अयम्‌ अर्चिताशेषपूर्व:।' ( अर्चिता

अशेषाः पूर्वां यस्य सोऽयम्‌ अर्चिताशेषपूर्व:।)

अर्थात्‌ जिसके सारि पूर्वज पूजित हुए हों, वह

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