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*अर्चिताशेषपूर्व' है। इसमें ' अर्थित' ' अशेष' तथा

"पूर्व'-ये तीनों पद समासमें आबद्ध हैं। ऐसा

समास “बहुपद' कहा गया है। ' संख्योत्तरपद' का

उदाहरण है--'एते विप्रा उपदशाः '--ये ब्राह्मण

लगभग दस हैं'। इसमें दस ' संख्या उत्तरपदके

रूपमें प्रयुक्त है। 'द्वित्रा: द्वयेकञ्रयः

संख्योभयपद के उदाहरण हैं। 'सहपूर्वपद'का

उदाहरण--'समूलोद्धृतक: तरुः ' ( सह मूलेन उद्धृतं

कं शिखा यस्य सः। अर्थात्‌ जडसहित उखड़

गयी है शिखा जिसको, वह वृक्ष)--यहाँ पूर्वपदके

स्थाने “ सह ' (स)-का प्रयोग हुआ है । व्यतिहार-

लक्षणका उदाहरण है - केशाकेशि, नखानखि

युद्धम्‌ (आपसमें झोंटा-झुटौअल, परस्पर नखोंसे

बकोटा-बकोटीपूर्बवक कलह) ॥ १२--१४॥

दिग्लक्षणार्थका उदाहरण--उत्तरपूर्वा (उत्तर

और पूर्वके अन्तरालकी दिशा) । 'द्विगु' समास दो

प्रकारका बताया गया है। 'एकवद्धाव' तथा

“अनेकधा' स्थितिको लेकर ये भेद किये गये हैं।

संख्या पूर्वपदवाला समास द्विगु" है। इसे

कर्मधारयका ही एक भेदविशेष स्वीकार किया

गया है। 'एकबद्धाव ' का उदाहरण है-द्विश्रृड्रम्‌

उदाहरण है। 'अनेकधा' या “अनेकवद्धाव'का

उदाहरण है--सप्तर्षयः इत्यादि । " पञ्च ब्राह्मणाः ' में

समास नहीं होगा; क्योकि यहाँ संज्ञा नहीं

है॥ १५ ॥

“ट्नन्द्र” समास भी दो ही प्रकारका होता है--

१-* इतेतरयोगी ' तथा २-'समाहारवान्‌'। प्रथमका

उदाहरण है--'रुद्रविष्णू (सद्र विष्णुश्च-रुद्र

तथा विष्णु)। यहाँ इतरेतर-योग है। समाहारका

उदाहरण है-- भेरीपटहम्‌ (भेरी च पटहश्च, अनयोः

समाहारः- अर्थात्‌ भेरी ओर पटहका समाहार) ।

यहाँ "तुर्याद्ग ' होनेसे इनका एकवद्भाव होता है ।

अव्ययीभाव समास भी दो तरहका होता है -१-

*नामपूर्वपद” ओर २-('यथा' आदि) अव्यय-

पूर्वपद । प्रथमका उदाहरण है-शाकस्य मात्रा-

शाकप्रति। यहाँ ' शाक ' पूर्वपद है और मात्रार्थक

"प्रति" अव्यय उत्तरपद। दूसरेका उदाहरण--

"उपकुमारम्‌-उपरथ्वम्‌' इत्यादि हैं। समासको

प्रायः चार प्रकारोंमें विभक्त किया जाता है--१-

उत्तरपदार्थकी प्रधानतासे युक्त (तत्पुरुष), २-

उभयपदार्थ-प्रधान द्वन्ध समास, ३-पूर्वपदार्थ-

प्रधान 'अव्ययीभाव' तथा ४-अन्य अथवा

(दो सींगोंका समाहार) | ' पञ्चपूली ' भी इसीका | बाह्मपदार्थ-प्रधान “बहुब्रीहि'॥ १६--१९॥

इस प्रकार आदि आग्नेव महाएु्णणमें 'समासविधायका वर्णन” कामक

तीन सौ पचपनवाँ अध्याय पूरा हुआ॥ ३५५ ॥

^~

तीन सौ छप्पनवाँ अध्याय

त्रिविध तद्धित-प्रत्यय

कुमार स्कन्ध कहते हैँ -- कात्यायन ! अब | इस प्रकार है--'अंस' शब्दसे "लच्‌" प्रत्यय

त्रिविध “तद्धित'का वर्णन करूँगा। ^ तद्धित 'के | होनेपर "अंसलः ' बनता है; इसका अर्थ है-

तीन भेद हैं-सामान्यावृत्ति तद्धित, अव्यय तद्धित | बलवान्‌। ' वत्स' शब्दसे "लच्‌ ' प्रत्यय होनेपर

तथा भाववाचक तद्धित। * सामान्यावृत्ति तद्धित ' | ' वत्सलः ' रूप होता है, इसका अर्थ स्नेहवान्‌ है*।

* पाणिनि -स्यकरणके अनुसार 'वत्सांसाभ्यां कामबले।' (५। २।९८) - दस सूक्ते क्रमश: ' कामवान्‌" और " बलान्‌ "के अर्धं 'वत्स'

और " अंस शब्दोंसे ' लच्‌" प्रत्यय होता है । सूरे " काम ' तथा " वल " शष्ट अर्श आच्चजन्य माने गये हैं। "काम" शब्द यहाँ ' सेह 'का

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