* अध्याय ३५९ *
(रवि+तृ० द्वि०), रविभिः (रवि०+तृ० बहु०),
“देहि वह्यये यः समागत:--जो आया है उसे वहि
(अग्नि)-को समर्पित कर दो।' वहये (वह्धि+च०
एक०), अग्नेः (अग्नि+षष्ठी एक०), अग्न्योः
(अम्नि+षष्ठी द्वि), अग्नीनाम् ( अग्नि+पष्ठी बहु°),
कचौ (कवि+सप्त० एक०), कव्योः (कवि+सम्त०
द्वि°), कविषु (कवि+सप्त० बहु°) ॥ ३७--४०॥
इसी प्रकार सुसृति, अध्रान्ति, सुकीर्ति और
सुधृति आदि शब्दके रूप जानने चाहिये। यहाँ
इन सबका प्रथमाका एकवचनान्त रूप दिया गया
है । यथा- सुसृतिः, अभान्तिः, सुकीर्तिः, सुधृतिः।
अब "सखि" शब्दके रूप दिये जाते हैं-१-
सखा, सखायौ, सखायः। हे सखे! सत्पतिं व्रज ॥
(हे मित्र! तुम अच्छे स्वामीके पास जाओ।) 'हे
सखे" यह सखि शब्दका सम्बोधने एकवचनान्त
रूप है। २-सखायम्, सखायौ, सखीन्। ३-
सख्या आगतः (मित्रके साथ आया) । ४-सख्ये
दद (मित्रको दो) । ५-सख्युः । ६-सख्युः, सख्योः,
सखीनाम्। ७- सख्यौ, सख्योः, सखिषु । शेष रूप
“कवि' शब्दके समान जानने चाहिये। पत्या
(पति+तृ° एक ०), पत्ये (पति+च० एक ०),
पत्युः (पति+पञ्च० एक ०), पत्युः (पति+षष्ठी
एक०), पत्योः ( पति, षष्ठी द्वि°), पत्यौ (पति+सप्त०
एक०) । ' पति" शब्दके शेष रूप “अग्नि” शब्दके
समान जानने चाहिये । (यदि पति" शब्द समासमें
आबद्ध हो तो उसके सम्पूर्णं रूप "कवि" शब्दके
समान ही होंगे।) अब "द्वि" शब्दके पुंलिङ्ग रूप
दिये जाते हैं, यह नित्य द्विवचनान्त है । १, २-
द्वौ। ३, ४, ५-द्वाभ्याम्। ६, ७--ट्यो:। यह दो
संख्याका वाचक है ॥ ४१--४३॥
अब संख्या तीनके वाचकं नित्य बहुवचनान्त
पिङ्ग "त्रि" शब्दके रूप दिये जाते हैं-- १-त्रयः।
७४९
२-त्रीन्। ३-त्रिभिः। ४, ५-त्रिभ्यः। ६-त्रयाणाम्।
७-ब्रिषु।--ये क्रमशः सात विभक्तियोंके रूप हैं।
अब * कति ' शब्दके रूप दिये जाते हैं--१-कति।
२-कति। शेष रूप “कवि” शब्दके समान होते
है । यह नित्य बहुवचनान्त शब्द है । अब ' नेता'के
अर्थमें प्रयुक्त होनेवाले नी' शब्दके रूप उद्धृत
किये जाते हैं--१-नी:, नियौ, नियः। सम्बोधन-
हे नीः, हे नियौ, हे नियः। २-नियप्, नियौ,
नियः। ३-निया, नीभ्याम्, नीभिः। ४-निये,
नीभ्याम्, नीभ्यः। ५-नियः, नीभ्याम्, नीभ्य:।
६-नियः, नियोः, नियाम्। ७-नियि*, नियोः
नीषु। सुश्रीः (सुश्री+प्र० एक०)। इसी तरह
"सुधीः" आदि शब्दोंके रूप जानने चाहिये ।
“ग्रामणीः पूजयेद्धरिम् ' गाँवका मुखिया श्रीहरिका
पूजन करे। "ग्रामणी" शब्दके रूप इस प्रकार
हैं-- १-ग्रामणीः, ग्रामण्यौ, ग्रामण्यः । २-ग्रामण्यम्,
ग्रामण्यौ, ग्रामण्यः। ३-ग्रामण्या, ग्रामणीभ्याम्,
ग्रापणीभिः। ४-ग्रामण्ये, ग्रामणीध्याम्,
ग्रापणीभ्यः। ५-ग्रामण्यः, ग्रामणीभ्याम्,
ग्रापणीध्यः। ६-ग्रामण्य:, ग्रामण्यो:, ग्रामण्याम्।
७-ग्रामण्याम्, ग्रामण्यो, ग्रामणीषु। इसी तरह
"सेनानी ' आदि शब्दके रूप जानने चाहिये।
"सुभू" शब्दके रूप - सुभूः, सुभुवौ इत्यादि है ।
“स्वयम्भू ' शब्दके रूप -१-स्वयम्भुः, स्वयम्भुवौ,
स्वयम्भुवः। २-स्वयम्भुवम्, स्वयम्भुवौ,
स्वयम्भुवः । ३-स्वयम्भुवा। सप्तमीके एकवचनमें
"स्वयम्भुवि" । शेष सुभू" शब्दके समान। इसी
तरह ' प्रतिभू ' आदि शब्दोकिं रूप जानने चाहिये ।
"खलपू" शब्दके रूप--खलपुः, खलप्वौ, खल्पवः।
खलप्वम् इत्यादि हैं। समीके एकवचने
"खलप्वि" - यह रूप होता है । इसी प्रकार'शरपू'
आदि शब्दोकि रूप जानने चाहिये। । क्रोष्टु
* घाजिनीय व्याकरणके अनुसार " नौ ' शब्दका समौ विभक्तिके एकयचने “नियाम्'-यह रूप होता है । कौमार-व्याकरणमें
"चिवि '- यह रूप उपलब्ध होता है । अतः इस अंशमें इत दोनों व्याकरणोंका अन्त सुस्पष्ट दृष्टिगोचर होता है।