* अध्याय २३६ *
महाभाग! सभामे विराजमान होकर राजा ब्राह्मणों,
अमात्यो तथा मन्त्रियोंसे मिले। साथ ही द्वारपालने
जिनके आनेकी सूचना दी हो, उन प्रजाओंकों भी
बुलाकर उन्हें दर्शन दे; उनसे मिले । फिर इतिहासका
श्रवण करके राज्यका कार्य देखे। नाना प्रकारके
कार्योंमें जो कार्य अत्यन्त आवश्यक हो, उसका
निश्चय करे। तत्पश्चात् प्रजाके मामले-मुकद्मोको
देखे और मन्त्रियोके साथ गुप्त परामर्शं करे।
मन्त्रणा न तो एकके साथ करे, न अधिक मनुष्योकि
साथ; न मूखोकि साथ ओर न अविश्चसनीय पुरुषोंके
साथ ही करे। उसे सदा गुप्तरूपसे ही करे;
दूसरोंपर प्रकट न होने दे। मन्त्रणाको अच्छी तरह
छिपाकर रखे, जिससे राज्ये कोई बाधा न पहुँचे।
यदि राजा अपनी आकृतिको परिवर्तित न होने
दे-सदा एक रूपमे रहे तो यह गुप्त मन्त्रणाकी
रक्षाका सबसे बड़ा उपाय माना गया है; क्योकि
बुद्धिमान् विद्वान् पुरुष आकार और चेष्टाएँ देखकर
क्योंकि ये लोग राजाको अनुचित कार्योसे रोकते
और हितकर कामोमें लगाते है ॥ ८-- १२६ ॥
मन्त्रणा करनेके पश्चात् राजाको रथ आदि
वाहनोके हौँकने और शस्त्र चलानेका अभ्यास
करते हुए कुछ कालतक व्यायाम करना चाहिये ।
युद्ध आदिके अवसरॉपर वह स्नान करके भलीभौति
पूजित हुए भगवान् विष्णुका, हवनके पश्चात् प्रज्वलित
हुए अग्निदेवका तथा दान-मान आदिसे सत्कृत
ब्राह्मणोका दर्शन करे। दान आदिके पश्चात्
वस्त्राभूषणोसे विभूषित होकर राजा भलीभाँति
जाँचे-बूझे हुए अन्नका भोजन करे । भोजनके अनन्तर
पान खाकर बायीं करवटसे थोड़ी देरतक लेटे।
प्रतिदिन शास्त्रोंका चिन्तन और योद्धाओं, अन-
भण्डार तथा शस्त्रागारका निरीक्षण करे। दिनके
अन्तम सायं- संध्या करके अन्य कार्योका विचार
करे और आवश्यक कामोंपर गुप्तचर्ोको भेजकर
रात्रिमें भोजनके पश्चात् अन्तःपुरे जाकर रहे । वहाँ
ही गुप्तमन््रणाका पता लगा लेते हैं। राजाको | संगीत और वाद्योसे मनोरञ्जन करके सो जाय तथा
उचित है कि वह ज्यौतिषियों, वैद्यो ओर मन्त्रियोंकी
बात माने। इससे वह श्चर्यको प्राप्त करता है;
दूसरोकि द्वारा आत्मरक्षाका पूरा प्रबन्ध रखे। राजाको
प्रतिदिन ऐसा ही करना चाहिये॥१३--१७॥
इस प्रकार आदि आग्रेय महापुराणमें ' ्रात्यहिक राजकर्मका कथन” त्रामक
दो स्र पतीसवां अध्याय यूरा हुआ॥ २३५॥
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दो सौ छत्तीसवाँ अध्याय
संग्राम-दीक्षा--युद्धके समय पालन करनेयोग्य नियमोंका वर्णन
पुष्कर कहते हैं--परशुरामजी! अब मैं
रणयात्राको विभि बतलाते हुए संग्रामकालके लिये
उचित कर्तव्योंका वर्णन करूँगा। जब राजाकी
युद्धयात्रा एक सप्ताहमें होनेवाली हो, उस समय
पहले दिन भगवान् विष्णु और शंकरजीकी पूजा
करनी चाहिये। साथ ही मोदक (मिठाई) आदिके
द्वारा गणेशजीका पूजन करना उचित है। दूसरे
दिन दिक्पालोंकी पूजा करके राजा शयन करे।
शय्यापर बैठकर अथवा उसके पहले देवताओंकी
पूजा करके निम्नाद्धित ( भाववाले) मन््रका स्मरण
करे--' भगवान् शिव! आप तीन नेत्रसे विभूषित,
“रुद्र' के नामसे प्रसिद्ध, वरदायक, वामन,
विकटरूपधारी और स्वपके अधिष्ठाता देवता
हैं; आपको बारंबार नमस्कार टै । भगवन्! आप
देवाधिदेवोंके भी स्वामी, त्रिशूलधारी ओर वृषभपर
सवारी करनेवाले हैं। सनातन परमेश्वर! मेरे सो
जानेपर स्वप्ने आप मुझे यह बता दें कि 'इस
युद्धसे मेरा इष्ट होनेबाला है या अनिष्ट?" उस समय