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* अध्याय १६३ *

रखे*।) फिर पौषमासमें रोहिणीनक्षत्रके दिन

अथवा अष्टका तिथिको नगर या गाँवके बाहर

जलके समीप अपने गृद्मोक्त विधानसे वेदाध्ययनका

उत्सर्गं (त्याग) करें। (यदि भाद्रपदमासमें

वेदाध्ययन प्रारम्भ किया गया हो तो माघ शुक्ला

प्रतिपदाको उत्सर्जन करना चाहिये --ऐसा मनुका

(४।९७) कथन है।)॥ ६-१० ३ ॥

शिष्य, ऋत्विज्‌, गुरु और बन्धुजन--इनकी

मृत्यु होनेपर तीन दिनतक अध्ययन बंद रखना

चाहिये। उपाकर्म (वेदाध्ययनका प्रारम्भ) और

उत्सर्जन (अध्ययनकी समाप्ति) जिस दिन हो,

उससे तीन दिनतक अध्ययन बंद रखना चाहिये।

अपनी शाखाका अध्ययन करनेवाले विद्वानकी

मृत्यु होनेपर भी तीन दिनोंतक अनध्याय रखना

उचित है। संध्याकालमें, मेघकी गर्जना होनेपर,

आकाशमें उत्पात-सूचक शब्द होनेपर, भूकम्प

और उल्कापात होनेपर, मन्त्र-ब्राह्मणात्मक वेदकी

समाप्ति होनेपर तथा आरण्यकका अध्ययन करनेपर

एक दिन और एक रात अध्ययन बंद रखना

चाहिये। पूर्णिमा, चतुर्दशी, अष्टमी तथा चन्द्रग्रहण-

सूर्यग्रहणके दिन भी एक दिन-रातका अनध्याय

रखना उचित है। दो ऋतुओंकी संधिमें आयौ हुईं

प्रतिपदा तिथिको तथा श्राद्ध-भोजन एवं श्राद्धका

प्रतिग्रह स्वीकार करनेपर भी एक दिन-रात

अध्ययन बंद रखे। यदि स्वाध्याय करनेवालोंके

बीचमें कोई पशु, मेढक, नेवला, कुत्ता, सर्प,

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बिलाव और चूहा आ जाय तो एक दिन-रातका

अनध्याय होता है ॥ ११--१४॥

जब इन्द्रध्वजकी पताका उतारौ जाय, उस

दिन तथा जब इन्द्रध्वज फहराया जाय, उस दिन

भी पूरे दिन-रातका अनध्याय होना चाहिये।

कुत्ता, सियार, गदहा, उल्लू, सामगान, बाँस तथा

आर्तं प्राणीका शब्द सुनायी देनेपर, अपवित्र

वस्तु, मुर्दा, शुद्र, अन्त्यज, श्मशान और पतित

मनुष्य -इनका सांतिध्य होनेपर, अशुभ ताराओमें,

बारंबार बिजली चमकने तथा बारंबार मेघ -गर्जना

होनेपर तात्कालिक अनध्याय होता है। भोजन

करके तथा गीले हाथ अध्ययन न करे। जलके

भीतर, आधी रातके समव, अधिक आँधी चलनेपर

भी अध्ययन बंद कर देना चाहिये । धूलकी वर्षा

होनेपर, दिशाओंमें दाह होनेपर, दोनों संध्याओंके

समय कासा पड़नेपर, चोर या राजा आदिका

भय प्राप्त होनेपर तत्काल स्वाध्याय बंद कर देना

चाहिये । दौड़ते समय अध्ययन न करे। किसी

प्राणीपर प्राणबाधा उपस्थित होनेपर और अपने

घर किसी श्रेष्ठ पुरुषके पधारनेषर भी अनध्याय

रखना उचित है । गदहा, ऊट, रथ आदि सवारी,

हाथी, घोड़ा, नौका तथा वृक्ष आदिपर चढ़नेके

समय और ऊसर या मरुभूमिमें स्थित होकर भी

अध्ययन बंद रखना चाहिये । इन तीस प्रकारके

अनध्यार्योको तात्कालिक (केवल उसी समयके

लिये आवश्यक) माना गया है ॥ १५--१८॥

इस प्रकार आदि आग्नेय महाएयणमों 'घधर्मशास्त्रका वर्णन” नामक

एक सौ बासठवाँ अध्याय पूर हुआ॥ १६२॥

न~

एक सौ तिरसठवाँ अध्याय

श्राद्धकल्पका वर्णन

पुष्कर कहते है -- परशुराम! अब मैं भोग | श्राद्धकर्ता पुरुष मन और इन्द्रियोंको वशे

और मोक्ष प्रदान करनेवाले श्राद्धकल्पका वर्णन | रखकर, पवित्र हो, श्राद्धसे एक दिन पहले

करता हूँ, सावधान होकर श्रवण कीजिये । | ब्राह्मणोंको निमन्त्रित करे। उन ब्राह्मणोंको भी

* मनुजीको कथने है--“युक्तश्छन्दांस्यधीयोत मासान्‌ विप्रो5र्धपक्षमान्‌!' ( मनु ४।९५)

362 अग्नि प्राण १२

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