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७९४ + संक्षिप्त शिवपुराण +

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इस चिधिका अनुष्ठान किया है। इस विधिसे लूगाये। पीके दीपक जल्म्रकर रखे।

ही सब देवता देवत्वको प्राप्त हुए हैं। इसी मन््रोघारणपूर्वक सव॒ कुछ चढ़ाकर

जिधिसे ब्रह्माको ब़हात्वकी, चिष्णुको परिक्रमा करें। भक्तिभावसे देवेश्वर झियको

विष्णुत्वकी, स्दरवको स्द्रत्वकी, इद्धको प्रणाम करके उनकी स्तुति करे और अन्तमें

इन््रत्वकी और गणेशको गणेदात्वकी प्राप्ति श्रुटियोंके लिये क्षपा-प्रार्थना करे । तत्पश्नात्‌

हुईं है। दिवपनश्चाक्षर-मच्छसे सम्पूर्ण उपहारोंसहित

र शचेतचन्दनयुक्त जलसे लिद्गस्वरूप शिव वह रिवलिङ्क झिवको समर्पित करे और

कतोरा उनका पूजन करे । फिर उनके प्रकार पञ्च गन्थमय झुभ लिङ्गकी नित्य

भूमिपर सन्दर शुभ रक्षण पद्मासन क्षिवतप्ेकये प्रतिष्ठित होता है। यह

स्थापित करके विल्वपग्रोद्धारा ढसकी पूजा झिवने ही इस ग्रतका उपदेदा दिया धा ।

करे । फिर उसके दक्षिण भागपे अगुरु, तदनन्तर लिङ्गक कारणरूपता तथा

पश्चिम भागमें सैनसिल, उत्तर भागमें चन्दन लिङ्ग-पतिष्ठा एवै पूजाकी व्याख्या करके

और पूर्वं भागमें हरिताः चढ़ाये। फिर उनमन्युने कहा--चटुनन्दन ! यदि कोई

सुन्दर सुगन्धित विचित्र पुष्पोंद्दरा पूजा स्थापित दिवलिङ्ग न पिले तो पिवके

करे । सथ ओर काले अगुरु और शुप्गुल्की स्थानभूत जल, अप्रि, सूर्य तथा आकादामें

धृष दे। अत्यन्त महीने और निर्पक्त खख भगवान्‌ झिसका पूजन करना चाहिये।

निवेदन करे। घृतमिश्लित खीरका भोग (अध्याय ३३--३६)

श्र

योगके अनेक भेद, उसके आठ और छः अङ्गका विवेचन--यम,

नियम, आसन, प्राणायाम, दशविध प्राणोंकों जीतनेकी महिमा,

प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधिका निरूपण

श्रीकृष्णे कहा--भगवन्‌ ! आपने श्रुतिके समान आदरणीय है और इसे मैंने

ज्ञान, क्रिया और चर्याका संक्षिप्त सार ध्यानपूर्वक सुना है। अब मैं अधिकार,

डद्धृत करके मुझे सुनाया है। यह सव अङ्ग, विधि और अपोजनसहित परम दुर्लभ

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