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और उस कलियुगे निवृत्तिपार्गको सुदृढ़
बनाऊँगा। चौथे द्वापरपें जब अङ्गिरा व्यास
कहे जायैंगे, उस समय मैं सुहोत्र नामसे
अबतार छूँगा। उस समय भ्वी मेरे चार
योगस्ाथक महात्मा पुत्र होंगे। ब्रह्मन !
उनके नाम होंगे---सुमुख, दुर्मुख, दुर्म और
दुरतिक्रम । उस अबसरपर भी इन श्षिप्योंके
साथ भै व्यासकी सहायतामें छगा रहूँगा।
पाँचयें द्वापरमें सब्रिता व्यास नामसे कहे
जायैंगे। तब नै क्क नामक महातपस्वी
योगी होकैंगा। ज्राह्मन् } वहाँ भी मेरे चार
योगप्ताधक् महात्मा पुत्र होंगे। उनके
जाम अतस्ता है, सुनो--सनक, सनातन,
भ्रभावदाली सनन्दन और सर्वव्यापक
निर्षल ता अहंकाररहित सनत्कुपार । उस
समय भी कल्क नापधारी मैं सविता नामक
व्यासका सहायक बनुँगा और नियुत्ति-
मार्गको बढ़ाऊँगा। पुनः छठे द्वापरके प्रवृत्त
होनेपर जब मृत्यु स्केककारक व्यास रोगि
और बेदोंका विभाजन करेंगे, उस समय भी
पै ग्यासकी सहायता करनेके लिये व्मेकाक्षि
नामसे प्रकट होकैगा और निवृत्ति-पथकी
उन्नति करूँगा। वहा भी मेरे चार दुढ़त़तो अवतारे मैं
दिष्व होंगे। उसके नाप होंगे--सुधामा,
विरजा, संजय तथा विजय । चिश्रे ! सातवें
ब्वापरके आरम्भपें जब द्रातक़तु नामक व्यास
होंगे, उस समय भी मैं योगमार्गमें परम
निपुण जगीषस्य नापसे प्रकट होऊँगा और
काझ्षीपुरीमें गुफाके अंदर दिव्यदेशमें
कुद्रासनपर बैठकर योगक्तो सुदृढ़ क्नाऊँगा
तथा शतक्रतु नामक व्यासकी सहायता और
संसारभयसे भक्तोंका उद्धार करूँगा। उस
युगपें भी मेरे सारस्वत, योगीदा, मेघ्रवाह करनेवाला
और सवाहन नामक चार पुत्र होंगे। आठवें
इपरके आनेपर मुनिवर वसिष्ठ वेदोंका
ब्रिभाजन करनेवाले वेदव्यास होंगे।
योगचित्तम ! उस युगे भी मैं दधिवाहने
नामसे अयतार छूँगा और व्यासकी सहायता
करूँगा। उस समय कपिल, आसुरि,
पक्कशिख और शाल्वल नामवाले पेरे चार
योगी पुत्र उत्पन्न होंगे, जो मेरे ही समान
होंगे। ब्रह्मन् ! नर्थी चतुर्युगीके द्वापरयुगमे
सुनिश्रष्ठ सारस्वत व्यास नामसे प्रसिद्ध होंगे ।
उन व्यासके नियृत्तिमार्गकी वृद्धिके लिये
ध्यान करनेपर पैं ऋषभनामसे अवतार
लगा । उस समय पराशर, गर्ग, भार्गव तथा
भिरीदा नामके चार मह्ययोगी मेरे झिष्य
होंगे। प्रजापते ! उनके साहयोगसे मैं
योगमार्गको सुदृढ़ बनाऊँगा। सभ्युने ! इस
अ्रकार. मैं व्यासका सहायक बनैँगा।
ब्रह्मन् ! उसी रूपसे मैं जहुत-से दुःखी
भ्रक्तोपर दया करके उनका भवपागरते
उद्धार करूँगा। मेरा चह ऋषभ नामक
अकतार योगमार्गका प्रवर्तक, सारस्वत
व्यासके मनको संतोष देनेवाला और नाना
प्रकारसे रक्षा करनेवाला होगा। उस
तदनन्तर उस राजपुत्री आयुके सोलहवें
वर्षमे ऋषभ ऋषि, जो मेरे ही अंदा हैं, उसके
घर पधारेगे । प्रजापते ! उस्र राजकुसारहारा
पूजित होनेपर चे सद॒पधारी कृपालु मुनि उसे
राजथ्चर्मका उपदेश करेगे । तत्पश्चात् वे
करेगे । फिर कृपापूर्यक उसके हारीरपर