* अ्रीकृष्णंजन्मखण्ड * ४०१
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श्रीकृष्णके द्वारा जो सात सुन्दर पुत्र हुए थे-वे | लीलामय श्रीराधा और श्रीकृष्ण वाराहकल्पमें
लवण, इक्षु, सुरा, घृत, दधि, दुग्ध और जलरूप | पृथ्वीपर अवतीर्ण हुए। श्रीराधाजी गोकुलमें
सात समुद्र हो गये (यह सब श्रीराधा और | श्रीवृषभानुके घर प्रकट हुईं। यह कथा प्रसड्भानुसार
श्रीकृष्णजी लीला ही है, जो ब्रजमें परम दिव्य पहले भी आ चुकी है। (भगवान्, श्रोराधा-
पवित्रतम विलक्षण प्रेमरसधारा बहानेके लिये | कृष्णके अवतार तथा ब्रजकी मधुरतम लीलाका
निमित्तरूपसे कौ गयी थी)। इसी निमित्तसे | यह एक निमित्त कारणमात्र है ।) (अध्याय १-३)
५
पृथ्वीका देवताओंके साथ ब्रह्मलोके जाकर अपनी व्यथा-कथा सुनाना,
ब्रह्माजीका उन सबके साथ कैलासगमन, कैलाससे ब्रह्मा, शिव तथा
धर्मका वैकुण्ठे जाकर श्रीहरिकी आज्ञासे गोलोकमें जाना और वहाँ
विरजातट, शतभङ्पवत , रासमण्डल एवं षन आदिके
प्रदेशोका अवलोकन करना, गोलोकका वर्णन
नारदजीने पूछा--वेदवेत्ताओंमें श्रेष्ठ नारायण! | किस उद्देश्यसे तुम्हारा आगमन हुआ है? विश्वास
किसकी प्रार्थासे और किस कारण जगदीश्वर | करो, तुम्हारा भला होगा। कल्याणि! सुस्थिर हो
श्रीकृष्णे इस भूतलपर अवतार लिया था? | जाओ, मेरे रहते तुम्हें क्या भय है?
श्रीनारायणने कहा--प्राचीन कालकी बात इस प्रकार पृथ्वीको आश्वासन देकर ब्रह्माजीने
है। वाराह-कल्पमें पृथ्वी असुरोकि अधिक भारसे | देवताओंसे आदरपूर्वक पूछा--'देवगण ! किसलिये
आक्रान्त हो गयी थी; अतः शोकसे अत्यन्त | तुम्हारा मेरे समीप आगमन हुआ है?'
पीड़ित हो वह ब्रह्माजीकी शरणमें गयी। उसके ब्रह्माजीकी यह बात सुनकर देवतालोग
साथ असुरोंद्वारा सताये गये देवता भी थे, जिनका | उन प्रजापतिसे बोले--प्रभो! पृथ्वी दैत्योंके
चित्त अत्यन्त उद्ठिग्ग हो रहा था। पृथ्वी उन | भारसे दबी हुई है तथां हम भी उनके कारण
देवताओंके साथ ब्रह्माजीकी दुर्गम सभामें गयी।|संकटमें पड़ गये हैं। दैत्योंने हमें ग्रस लिया।
वहाँ उसने देखा, देवेश्वर ब्रह्मा ब्रह्मतेजसे जाज्वल्यमान | आप ही जगतके स्रष्टा हैं, शीघ्र ही हमारा उद्धार
हो रहे हैं तथा बड़े-बड़े ऋषि, मुनीन्द्र तथा | कीजिये । ब्रह्मन् । आप हो इस पृथ्वीकी गति हैं;
सिद्धेद्रगण सानन्द उनकी सेवामें उपस्थित हैं। इसे शान्ति प्रदान करें। पितामह! यह पृथ्वी
ब्रह्माजी 'कृष्ण” इस दो अक्षरके परब्रह्मस्वरूप | जिस भारसे पीड़ित है, उसीसे हम भी दुःखी
मन््रका जप कर रहे थे। उनके नेत्र भक्तिजनित | हँ, अतः आप उस भारका हरण कीजिये।'
आनन्दके आँसुओंसे भरे थे तथा सम्पूर्ण अङ्गोमिं| देवताओंकी बात सुनकर जगत्स्रष्टा
रोमाञ्च हो आया था। मुने! देवताओंसहित पृथ्वीने | ब्रह्माने पृथ्वीसे पूछा--' बेटी तुम भय छोड़कर
भक्तिभावसे चतुराननको प्रणाम किया और दैत्योंके | मेरे पास सुखपूर्वक रहो। पद्मलोचने ! बताओ,
भार आदिका सारा वृत्तान्त कह सुनाया। आँसूभरे किनका ऐसा भार आ गया है, जिसे सहन करनेमें
नेत्रों और पुलकित शरीरसे वह ब्रह्माजीकी स्तुति | | तुम असमर्थ हो गयी हो। भद्रे! मैं उस भारको
तथा रोदन करने लगी। दूर करूँगा। निश्चय ही तुम्हारा भला होगा।
तख जगद्धाता ब्रह्माने उससे पूछा--भद्े ! | ब्रह्माजीका यह वचन सुनकर पृथ्वीके मुखपर
तुम क्यों स्तुति करती और रोती हो? बताओ, | ओर नेत्रोंमें प्रसन्नता छा गयी। वह जिस-जिस
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