६ |] { अह्याण्ड-पुराण
द्विजगणो ! ये ब्रह्माजो के ादण पुत्र परमश्रेष्ठ हए ये १७६+ धमं आदिक
प्रथम उत्पन्न होने वाले ब्रह्माजो के पुत्र कटे गये जानने चाहिए । जो भृगु
आदि की सृष्टि की गयी थी वे ब्रह्मवादी नहींये ।७७। वे गृहमेधी पुराण
ब्रह्माजी के पुत्र समझने चाहिए । ये द्वादश रुद्र के साथ प्रसूत होते हैं ॥७८।
क्रतुः सनत्कुमारश्च दरवेतावृद्ध वंरेतसौ ।
पूर्वोत्पन्नो तुरा द्यतौ स्वेषामपि पूर्वेजी ॥७६
व्यतीतौ सप्तमे कल्पे पुराणौ लोकसाधकौ ।
विरजेतेऽत्र वें लोके ते जसाक्षिप्य चात्मनः ।८०
तावुभौ योगधर्माणावारोध्यात्मानमात्मना ।
पजाधमं च कामं च वतंयेते महौजसौ ॥॥५१
यथोत्पन्नस्तथबेह् कुमार इति चोच्यते ।
ततः सनत्कृमारेति नाम तस्य : तिष्ठितिपर् ॥८२
तेषां द्वादश ते वंगा दिव्या देवगणान्विताः ।
क्रियावन्तः प्रजावन्तो महषिभिरलंकृताः ॥॥5५३
"णजास्तु स दष्ट्वा वे ब्रह्मा. द्वादश सात्विकान् ।
ततोऽसुरान्पित न्देवान्मनुष्यांएचासूजल भुः ॥८४
कृतु ओर सनत्कूमारये दो -ब्रह्माजी के पुत्र ऊध्वेरेता थे । पूबेकी
उत्पत्ति में प्राचीन कालमेंये दोनों सबके `धरूवं में जन्म ग्रहण करने बाले
हए थे ॥७&। प्रथम कल्प में लोक साधक पुराण व्यतीत हो गये थे ओर इस
लोक में-आत्सा के तेज से आक्षिप्त होकर विरेजितव -होते है 4८० योग के
धमं वाले वे दोनों आत्मा से आत्मा का आरोप करके 'दोनों महान् ओजः
वाले प्रजा के धमं को भौर कामको बत्तित करते हैं ।८१। जैसे ही उत्पन्न
हुआ था वसे ही यहाँ पर कुमा र--यह कहा जाया करता है । इसके अनन्तर
उसका नाम सन 3, उललिकड' प्रतिष्ठित हुआ था ।८२। उनके वादस कंश ये
जो परम दिव्य और देवगणों से समन्वित थे । वेसव क्रिया ` वाले - थेःऔर
महृक्षियों से अलंकृत ये ।८३। उन ब्रह्माजी ने उन बारहसात्विक प्राण जोंल्को
देख कर फिर प्रभु ने असुरो का-पितृभणों को~देवों को और मनुष्यों को
सृजितः करिया चा ।ख४। |