वैष्णवकषण्ड-सार्मशीर्षमास-माहास्म्प ] # भगवान पूजनमें घण्टानाद, चन्दन आदिका माहात्य # रे७३
अर्पैण करता र, उसके सौ जन््मोंके समस्त पासकोकों मैं मस
कर देता हूँ | जो कल्ियुगके मार्गशीर्ष मासमें मुझे वुकसी-
काष्ठका चन्दन देते हैं; ये निश्चय ही कृतार्थ हो जाते हैं। जो
शङ्खभे चन्दन रखकर मार्गगीर्ष मासम मेरे अश्जोमें छगाता
है, उसके ऊपर मैं विशेष प्रेम करता हूँ । जो अग्ने
तुलसीदल और आवो भक्तिपूर्वक मेरी सेवा करता है।
वह मनोकाध्छित फछकों पाता है ।
बेला, चमेली, जूही, अतिमुक्ता ( माधवीलता है] कनेर,
वैजयन्ती, विजया, चमेकीके गुच्छे, कर्णिकार, कुरैया, चग्पक+
चातक, कुन्द, कर्चूर, मलिक, अशोक, तिल तथा अपर-
यूचिका इत्यादि छल मेरी पूजाके सिये उत्तम होते ई ।
केत कीन पता और पुष्य, अङ्गराज, तुलसीका पला और
फूछ--ये सब मुझे शीघ्र प्रसव करनेवाले ई । लाल, नीक
और सफेद कमल मार्गशीर्ष मासपें मुझे अयन्त पिय हैं।
मेरी पूजाके लिये वे ही फूछ उत्तम माने गवे हैं। जो सुम्दर
रंगवाले होनेके साथ ही सरख और सुगन्धित हो । विल्वपत्र,
शम्मीपत्र, शहा जत्र ओर आमलकीपत--ये मेरे पूजनफे लिये
शुभ हैं। वन अथवा पर्वतम उत्पन्न होनेवाल्े फूल और पत्र
यदि तुरंतके तोड़े दए छिद्ररह्तित और कौटबर्जित हों; तो
उन्हें जछसे धोकर उनके हारा मेरी पूजा करनी चाहिये।
अगीचेमें जिलनेयाले कूलोंसे भी मेरी पूजा की जा सकती है ।
जिन कृक्षोंके कूल मेरी पूजाके लिये उत्तम माने गये हैं, उनके
पत्ते भी उत्तम हैं। कूछों और परलोके अमायमें उनके कल
भी चराय जा सकते हैं | इन वर्तो, कतो और कृषि जो
अगहनमें मेरी पूजा करता है, उसपर प्रसन्न होकर मैं अपनी
भक्ति देता हूँ ।
जो मनुष्य तुलूसीकी मझरियोंसे मेरी पूजा करता दै, वह
मोश्षफा भागी शेता है । जो सुछूसीका पौधा छगाकर उसके
पक्तेति भरी पूजा करता है, बह मेरे निबासस्पान श्वेतद्ीएमें
आनन्दका अनुभव करता है। जो तुरूसीदलसे प्रतिदिन मुझ
लश्मीफ़तिकी पूजा करता टै, उसके मशापातफ भी नए दो जाते
हैं, फिर उपपातकोंकी तो यत ही क्या है। भासी फूल और
यासी जख पूजाके लिये वर्जित हैं। परंतु तुख्खीदछ और
गद्भाजक बासी दोनेपर मी बर्जित नहीं हैं #। विस्वपत्र, वामीपत्र,
चअमेलीपत्र और कमल तथा कौस्तुभमणिसे भी तुलसीदल
मुझे अधिक प्रिय है। जिसके पत्ते कटे न हों और जो मज़रीके
छाप शेः ऐसी तुछसी मुझे लक्ष्मीके समान प्रिय हे।
उसी प्रकार गौर और कृष्ण दोनों प्रकारकी ठुरुसी मुझे प्रिव
है। स्तुभ आदि अशंएय रज्र तभीतक गर्जते ई, जवतक
कि श्यामा तुलसीकी श्याम मञ्जरी नहीं मिलती है। जो मेरी
पूजाके लिये मोगनेवारटोको तुलसीदल देते हैं तथा अन्य
भक्तोकों भी तुरूसीदल अर्पण करते है, बे मेरे अविनाशी
भामक़ो जाते हैं ।
जो काले अगुरके यने हुए भूषणे मेरे मन्दिरकों मुबासित
करता है; यह वेष्णय नरक-समुद्रसे मुक्त हो जाता रै ।
गुग्युरुमें मैंलका घी ओर शक्र निशाकर जो मुझे धूप देता टै,
उसकी अभिलाषाक़ों मैं पूर्ण करता हूँ । अगुरुका धूप देह
ओर रेड दोनोंकों पवित्र करता है; रालका बना हुआ धूप
यक्षो ओर राक्षसोंकां नाश करता है। चमेलीका फूल,
इलायची, गुग्गुल, हरे, कूटः राख; गुड़। छड़ररीला और
बज़नखी नामक गरध-दृब्प--इनके साथ धूपका संयोग होनेसे
इन सबको दशा धूप कहते हैं |॥ यदि ष अल निव
मार्गशीर्ष मासमें कोई मनुष्य दशाङ्ग धूप देता दैः तो मैं उसे
अत्यन्त दुलभ मनोरप, बल, पुष्टिः स्त्री; पुत्र और
भक्ति देता हूँ।
अनेक बत्तियोसे युक्त और धीसे भरे हुए दीपको जला-
कर जो मनुष्य मेरी आरती उतारता दै, यह कोटि कल्पोंतफ
स्वर्गछलोकरमें निश्रास करता हैं। जो आगहनके महीनेमें मेरे
आगे होती हुईं आरतीका दर्शन करता है, यह अन्तरं परम
पदक प्राप्त होता है। जो मेरे आगे भक्तिपूर्वक कपूरकी
आरती करता दे, वह मुझ अनन्तमें प्रवेश कर जाता है । जो
मन्दीन और क्रियाहीन मेरा पूजन किया गया है; यद मेरी
आरती कर देनेपर शर्षया परिपूर्ण हो ज्यता है। जो मार्ग शीं
मासे कपूरंते दीपक जलाकर मुल्ते अर्पण करता टै, सह
अश्वमेध यशका शर पाता और अपने कुछका उदार
कर देता है ।
अअयऑ-0बक---ण
#दज्य पुषितं पुष्पं बसे पयुंपितं जकम्। न यज्ये सुरूसोब् ज बाय जाइबीजकूम् ॥
जातिपएप्पमवैश्स च गुग्युक्क्ष दरीत्ड़ी । कूट: स्जरसद्वैव गुदः शैलाचाइस्तवा ॥
जखयुरूनि बैतानि दशाज्रों भूप उच्चते ।
( रक० पुर मै० मा० मा० €।९१ ८ ॥ २७)