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संक्षिम् नारदपुराण
वायुपुराणका परिचय तथा उसके दान एवं श्रवण आदिका फल
ब्रह्माजी कहते ह~ ब्रह्मन्! सुनो, अब मैं
वायुपुराणका लक्षण बतलाता हूँ, जिसके श्रवण
करनेपर परमात्मा भगवान् शिवका धाम प्राप्त होता है ।
यह पुराण चौबीस हजार श्लोर्कोका बतलाया गया है ।
जिसमें वायुदेवने श्वेतकल्पके प्रसङ्गसे धर्मोका उपदेश
किया है, उसे वायुपुराण कहा गया है । वह पूर्व और
उत्तर दो भागोंसे युक्त है । ब्रह्मन् ! जिसमें सर्ग आदिका
लक्षण विस्तारपूर्वक बतलाया गया है, जहाँ भिन्न-
मुनी श्वर! उसके उत्तरभागमें नर्मदाके तीर्थोंका
वर्णन है और विस्तारके साथ शिवसंहिता कही गयी
है। जो भगवान् सम्पूर्ण देवताओंके लिये दुर्तय और
सनातन हैं, वे जिसके तटपर सदा सर्वतोभावेन
निवास करते हैं, वही यह नर्मदाका जल ब्रह्मा है,
यही विष्णु है और यही सर्वोत्कृष्ट साक्षात् शिव है।
यह नर्मदाजल ही निराकार ब्रह्म तथा कैवल्य मोक्ष
है। निश्चय ही भगवान् शिवने समस्त लोर्कोका हित
भिन्न मन्वन्तरोमिं राजाओकि वंशका वर्णन है और जहाँ | करनेके लिये अपने शरीरसे इस नर्मदा नदीके रूपमे
गयासुरके वधकी कथा विस्तारके साथ कही गयौ है,
जिसमें सब मार्सोका माहात्म्य बताकर माघमासका
अधिक फल कहा गया है, जहाँ दानधर्मं तथा राजधर्म
अधिक विस्तारसे कहे गये हैं, जिसमें पृथ्वी, पाताल,
दिशा और आकाशम विचरनेवाले जीवेकि और
त्रत आदिके सम्बन्धर्मे निर्णय किया गया है, वह
वायुपुराणका पूर्वभधाग कहा गया ह ।
किसी दिव्य शक्तिको ही धरतीपर उतारा है। जो
नर्मदाके उत्तर तटपर निवास करते हैं, वे भगवान्
स्द्रके अनुचर होते हैं और जिनका दक्षिण तटपर
निवास है, वे भगवान् विष्णुके लोकमें जाते है।
>कोरेश्वरसे लेकर पश्चिम समुद्रतक नर्मदा नदीमें
दूसरी नदियोंके पैंतीस पापनाशक संगम हैं, उनमेंसे
ग्यारह तो उत्तर तटपर हैं और तेईस दक्षिण तटपर।
पैंतीसवाँ तो स्वयं नर्मदा और समुद्रका संगम कहा
गया है नर्मदाके दोनों तटोंपर इन संगमेकि साथ चार
सौ प्रसिद्ध तीर्थ हैं। मुनीश्वर! इनके सिवा अन्य
साधारण तीर्थ तो रेवाके दोनों तर्येपर पग-पगपर
विद्यमान हैं, जिनकी संख्या साठ करोड साठ हजार
है। यह परमात्मा शिवकी संहिता परम पुण्यमयी है,
जिसमें वायुदेवताने नर्मदाके चरित्रका वर्णन किया है।
जो इस पुराणको लिखकर गुड़मयो धेनुके साथ
श्रावणकी पूर्णिमाकों भक्तिपूर्वक कुटुम्बी ब्राह्मणके
हाथमें दान देता है, वह चौदह इन्द्रोंक राज्यकालतक
स्द्रलोकमें निवास करता है। जो मनुष्य नियमपूर्वक
हविष्य भोजन करते हुए इस वायुपुराणकों सुनाता
अथवा सुनता है, वह साक्षात् रुद्र है, इसमें संशय नहीं
है। जो इस अनुक्रमणिकाको सुनता ओर सुनाता है,
वह भो समस्त पुराणके श्रवणका फल पा लेता है।
न~~