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पूर्वभाग-प्रथ्म पाद

तथा व्यर्थ विश्वास दिलानेवाले लोग सदा पिता,

माता और पुत्रोंकी निन्दा करेंगे। वाणीसे धर्मकी

बात करेंगे, किंतु उनका मन पापमें आसक्त होगा।

धन, विद्या और जवानीके नशेमें मतवाले हो सब

लोग दुःख भोगते रहेंगे। रोग-व्याधि, चोर-डाकू

तथा अकालसे पीडित होंगे। सबके मनमें अत्यन्त

कपट भरा होगा और अपने अपराधका विचार न

करके व्यर्थ ही दूसरोंपर दोषारोपण करेंगे। पापी

मनुष्य धर्ममार्गका संचालन करनेवाले धर्मपरायण

पुरुषका तिरस्कार करेंगे। कलियुग आनेपर म्लेच्छ

जातिके राजा होंगे। शुद्र लोग भिक्षासे जीवन-निर्वाह

करनेवाले होंगे और द्विज उनकी सेवा-शुश्रूषामें

संलग्न रहेंगे। इस सड्डूटकालमें न कोई शिष्य होगा,

न गुरु; न पुत्र होगा, न पिता और न पत्नी होगी न

पति। कलियुगमे धनीलोग भी याचक होंगे और

द्विजलोग रसका विक्रय करेंगे। धर्मका चोला पहने हुए

मुनिवेषधारी द्विज नहीं बेचनेयोग्य वस्तुओंका विक्रय

तथा अगम्या स्त्रीके साथ समागम करेंगे। मुने!

नरकके अधिकारी द्विज वेदों और धर्मशास्त्रोंको निन्दा

करते हुए शुद्रवृत्तिसे ही जीवन-निर्वाह कगे ।

कलियुगमें सभी मनुष्य अनावृष्टिसि भयभीत होकर

आकाशकी ओर आँखें लगाये छी ओर श्रुधाके भयसे

कातर बने रंगे। उस अकालके समय मनुष्य कन्द, पत्ते

ओर फल खाकर रहेंगे और अनावृष्टिसे अत्यन्त दुःखित

होकर आत्मघात कर लेंगे। कलियुगमें सब लोग

कामवेदनासे पीड़ित, नटे शरैरवाले, लोधी, अधर्मपययणु,

मन्दभाग्य तथा अधिक संतानवाले हेंगे। स्त्रियँ अपने

शरीरका ही पोषण करनेवाली तथा वेश्याअओकि सौन्दर्य

और स्वभावको अपनानेवाली होंगी। वे पतिके बचनोंका

अनादर करके सदा दूसरेंकि चरमे निवास कशी । अच्छे

कुलोंकी स्त्रियौ भी दुणचारिणी होकर सदा दुगचारियोंसे ही

सरह कशी और अपने पुरुपेकि प्रति असदूव्यवहार

करनेवाली होंगी। चोर आदिके भयसे डरे हुए लोग

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अपनी राके लिये काष्ठ-यनत्र अर्थात्‌ काठके मजबूत

किवाड़ बनाकेंगे। दुर्भिक्ष ओर कस्की पीड़ासे अत्यन्त

पीड़ित हुए मनुष्य दुःखी होकर गेहूँ और जौ आदि

अन्नसे सम्पन्न देशमें चले जा्गे। लोग इृदयमें निषिद्ध

कर्मका संकल्प लेकर ऊपरसे शुभ वचन बोलेंगे। अपने

कार्यकी सिद्धि होनेतक ही लोग बन्धुता (सैहार्द) प्रकट

करेंगे। संन्यासी भी मित्र आदिके स्लेह-सम्बन्धसे वधे

रहेंगे और अन्न-संग्रहके लिये लोगोंको चेले बनायेंगे।

स्त्रियाँ दोनों हाथोंसे सिर खुजलाती हुई बड़ोंकी तथा

पतिकी आज्ञाका उल्लड्डन केंशी। जिस समय द्विज

पाखण्डी लोगोंका साथ करके पाखण्डपूर्ण बातें

करनेवाले हो जायगी, उस समय कलियुगका वेग और

बढ़ेगा। जब द्विज-जातिकौ प्रजा यज्ञ और होम करना

छोड़ देगी, उसी समयसे बुद्धिमान्‌ पुरुषोंक कलियुगकी

वृद्धिका अनुमान कर लेना चाहिये।

नारदजी ! कलियुगके बढ़नेसे पापकी वृद्धि

होगी और छोटे बालकोंकी भी मृत्यु होने लगेगी।

सम्पूर्ण धर्मकि नष्ट हो जानेपर यह जगत्‌ श्रीहीन हो

जायगा। विप्रवर! इस प्रकार मैंने तुम्हें कलिका स्वरूप

बतलाया है। जो लोग भगवान्‌ विष्णुकी भक्तिमें तत्पर

5६४७४ ६ ॥

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