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यात्रा के समय मंगल-अमंगल सूचक शकुन वर्णन | { ६४१

घृतं दधि पयश्चंव फलानिविविधानि च ।

स्वस्तिकं वद्ध मानञ्च नन्यावत सकौस्तुभम्‌ ।२०

वादित्राणां सुखः शब्द: गम्भीरः सुमनोहरः |

गान्धारषङ्ज ऋषभा ये च शस्तास्तथा खराः ।२१

है पार्थिव ! श्वेत पष्प परमश्रष्ठहोते हैं. तथा पूणं कुम्भ भी.

परम शुभ हुआ करते हैं जलज, पक्षीगग, मास, मत्स्य, गौयें, तुरंगम

नाग, बद्ध एक पशु, अज, त्रिदश, शधुदहृद विप्र, जलती हुई अग्नि, -

गणिका, ताम्र थौर है महाभाग ! सब प्रकार के रन्न, हे-धर्मज्- |.

दर्वा, आद्र' गोमय, सुबणं, रूप्यक, औषध, यव, सिद्धार्थक,. मनुष्यों के

द्वारा बाह्ममान यान, भंद्रपीठ, खंड, चक्र, पताका, मृत्तिका, आयुध,

सम्पूर्ण, राजा के चिह्न जी रुदित से रहित होबें । घृत, दधि, पय,

विविध भाँति के फल, स्वास्तिक, वद्ध मान, नन्या, वत्तं, कौस्तुभः

वादित्रों का सुखकर शब्द जो गम्भोर एबं मनोहर हो; गन्धार, षड्जः,

ऋषभ.जा क्रि शस्त्न तथा खर हैं ।१५-२१।

वायु: सशकरोरूक्ष: सवत्र समुपस्थितः ।

प्रतिलोमस्तथा नीचो विज्ञेयोभयकृद्द्विज ! ।२२

अनुकूलोभृदुः स्निग्धः सुखस्पर्श: सुखावहः ।

रूक्षारूक्षस्व॒ राभद्रा: क्रव्यादाः परिगच्छताम्‌ ।२३

मधा: शस्ताघना: स्निग्घागजब्‌ हिततसन्निभाः ।

अनुलोमास्तडिच्छन्नाः णक्रचापन्तथैव च ।र४

अप्रशस्ते तथा ज्ञये परिवेषप्रवषणे ।

अनुलोमा ग्रहाः णस्ता वाक्पतिस्तु विशेषतः ।२५

आस्तिक्यं श्ट घानत्वं तथा पृज्याभिपृजनम्‌ ।

णस्तान्येतानि धमेन्न ! यश्च स्यान्मनसः प्रियम्‌ ।२६

मनसस्तुष्टिरेवात्र परमं जयलक्षणम्‌ ।

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