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विकषंग पलायन वर्णन |] [ ३४७

महाकलकलस्तत्र समभूदय्‌ दसी मनि ।

मन्दरक्षोभितां भो धिवेल्लत्कल्लोल मण्डलः ।।& १

है पापियो ! ठहरो, माया में संस्थित तुमको मैं कभी छिन्त-भिन्न

करे देती तुम लोग अन्धकार को प्राप्त करके इस क्रूर युद्ध में तत्पर हो रहे

हो ।८५। इस रीति से उनको फटकारती हुईं उससे अपने तूणीर से उत्खात

सापक से पर्वावरोहण किया था और क्रोधावेश से उसकी गति प्रस्खलित

हो रही थी ।८६। वे कामु को को हाथों में सजाये हुई थीं और उनके आगे

भगमालायें थीं और अन्य नित्याएं पर्वारोहण करके चल दी थीं ।=७।

ज्वाला मालिनी नित्या और वहिनवासिनी नित्या ये दोनों ही युद्ध में

सज्जित हुईं थो ओर इन्होंने अपने तेजों से रण में प्रदीपन कर दिया था ।

। ८८] इसके अनन्तर युद्ध मण्डल के प्रदीप्त होने पर वे दुष्ट दनुज प्रकाशित

कलेवरों वाले हो गये थे और उनको बड़ा क्रोध हो गया था ।८६। कामेश्वरी

प्रभृति नित्याए आयुधों से सयुत पन्द्रह थीं। वे सिंहनादो से ही उन दैत्यों

का मर्देन सा हो कर रही थीं । इस समय में यहाँ युद्ध में महान्‌ कल-क्ल हो

गया था । वह कलकल ऐसा हीं चा मानों मन्दराचल से क्षोभित्त सागर के

बिलोडन से तर गो के मण्डल का हो रहा होवे ।६०-६ १॥ |

ताश्च नित्या वलत्क्वाणकंकणैय्‌'धि पाणिभिः ।

आकृष्य प्राणकोदं डास्तेनिरे युद्धमुद्धतम ।।६२

यामत्रितयपर्यतमेवं युद्धमवत्तंत ।

नित्यानां निशिनरर्बाणे रक्षौहिण्यश्च संहृता । ६३

जधान दमनं दुष्ट कामेशी प्रथमं गर: ।

दीषं जिह्वं चम्‌नाथं भगमाला व्यदारत्‌ ६४

नित्यक्लिन्ना च भेरुण्डा हुम्वेकं हुलुमल्लकम्‌ ।

कक्लसं वहिनिवासा च निजधान शरैः णतः ॥€५

महा वज श्वरी बाणेैरभिनत्केकिवाहनम्‌ ।

पुक्लसं शिवदूती च प्राहिणोदयमसादनम्‌ ॥६६

पुण्डकेतु' भुजोहंडं त्वरिता समदारयत्‌ ।

कुलसुन्दरिका नित्या चंडबाहुं च कुक्कुरम्‌ ॥६७

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