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दरे

* श्रीपद्धागवत *

[ अर २६

4.044.446

तनिक भी चैन न मानकर जो वक्षके समान धनकी

रक्षामें ही लगा रहता है तथा पैसा पैदा करने,

बढ़ाने और बचानेमें जो तरह-तरहके पाप करता रहता

है, बह नराधम मरनेपर सूचीमुख नरकमें गिरता है।

वहां उस अर्थपिशाच पापात्माके सारे अड्लॉको

पतिं दूत दर्जियोकि समान सुई-धागेसे सीते

राजन्‌ ! यपलोकमे इसी प्रकारके सैंकड़ों-हजारों

नरक ह । उनमें जिनका यहाँ उल्लेख हुआ है और

जिनके विषयमें कुछ नहीं कहा गया, उन सभीमें सब

अधर्मपरायण जीव अपने करके अनुसार बारी-बारीसे

जाते है। इसी प्रकार धर्मात्मा पुरुष स्व॒र्गादिमें जाते हैं।

इस प्रकार नरक और स्वर्णे भोगसे जब इनके

अधिकांश पाप और पुण्य क्षीण हो जाते हैं, तन बाकी

बचे हुए पुण्यपापरूप कर्माको लेकर ये फिर इसी लोके

जन्म लेनेके लिये लौट आते है ॥ ३७॥

इन धर्म और अधर्म दोनोंसे विलक्षण जो निवृत्ति-

मार्ग है, उसका तो पहले (द्वितीय स्कन्धपे) हो वर्णन

हो चुका है। पुराणोंसे जिसका चौदह भुवनके रूपमें

वर्णन किया गया है, वह ब्रह्माण्डकरोश इतना ही है। यह

साक्षात्‌ परम पुरुष श्रीनारायणका अपनी मायाके गुणोंसे

युक्त अत्यत्त स्थूल स्वरूप है। इसका वर्णन मैंने तुम्हें

सुना दिया। परमात्मा भगवानूका उपनिषदोमिं वर्णित

निर्गुण स्वरूप यद्यपि मन-बुद्धिकी पहुँचके बाहर है तो

भी जो पुरुष इस स्थूल रूपका वर्णन आदरपूर्वक पढ़ता,

सुनता या सुनाता है, उसकी बुद्धि श्रद्धा और भक्तिके

कारण शुद्ध हो जाती है और वह उस सूक्ष्म रूपका भौ

अनुभव कर सकता है ॥ ३८ ॥

यतिको चाहिये कि भगवान्‌के स्थूल और सूक्ष्म

दोनों प्रकारके रूपॉका श्रवण करके पहले स्थूल रूपमे

चित्तको स्थिर करे, फिर अधर्ररे-र्धीरे लहाँसे हटाकर उसे

सूक्ष्ममें लगा दे॥ ३९ ॥ परीक्षित्‌ ! मैंने तुमसे पृथ्वी,

उसके अन्तर्गत द्वीप, वर्ष, नदी, पर्वत, आकाश, समुद्र,

पाताल, दिशा, नर्क, ज्योतिर्गण और लोकोकौ स्थितिका

वर्णन किया । यही भगवानका अति अद्भुत स्थुल रूप

है, जो समस्त जीवसमुदायका आश्रय रै ॥ ४० ॥

भैक कै मैः के

पञ्चप स्कन्ध समाप्त

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