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जाह्पर्ज ]

* जब्बूद्वीपमें सूर्ययारायणकी आराधनाके तीन प्रपुख स्थान *

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धिषण, कृष्ण, अदितिपुत्र तथा लक्ष्य नामवाले भावान्‌

सूर्यको बार-बार नमस्कार है।

ब्रह्माजीने कहा--याशवल्क्य ! जो मनुष्य सायकाल

और प्रातःकाल इन नामोंका पवित्र होकर पाठ करता है, वह

मेरे समान हो मनोवाज्छित फलॉंको प्राप्त करता है। इस

अर्थ, काम, आरोग्य, राज्य तथा विजयी प्राप्ति होती है। यदि

मनुष्य बन्धनमें हो तो इसके पाठसे बन्धनपुक्त हो जाता है।

इसके जप करनेसे सभी पापोंसे छुटकारा मिल जाता है। यह

जो सूर्य-स्तोत्र मैंने कहा है, वह अत्यन्त रहस्यमय है।

(अध्याय ७१)

काम-स्तोतरसे सूर्यकौ आराधना करनेपर उनके अनुप्रहसे धर्म

=

जम्बूद्वीपमें सूर्यनारायणकी स्थान

दुर्वासा मुनिका साम्बको शाप देना

सुमन्तु मुनि खोले--राजन्‌ ! ब्ह्माजीसे इस प्रकार

उपदेश प्राकर याज्ञवरुफ्य मुनिने सूर्यभगवानकी आराधना

की, जिसके प्रभावसे उन्हें सालोक्य-मुक्ति प्राप्त हुई। अतः

भगवान्‌ सूर्यकी उपासना करके आप भी उस देवदुर्कभ

मोक्षको प्राप्त कर सकेंगे।

राजा झतानीकने पूछा--पुने ! जप्बृद्वीपमें भगवान्‌

सूर्यदेवका आदि स्थान कहाँ है ? जहाँ विधिपूर्वक आराधना

करनेसे शीघ्र ही पनोवाज्छितं फरूकी प्राप्ति हो सके ।

सुप्नन्तु मुनिने कहा--राजन्‌ ! इस जम्बद्वीपमें भगवान्‌

सूर्यनारायणके मुख्य तीन स्थान हैं'। प्रथम इच्द्रवन है, दूसरा

मुण्डीर तथा तीसरा तीनों लोकॉमें प्रसिद्ध कारूप्रिय (कालपी)

नामक स्थान है। इस द्रीप इन तीनॉके अतिरिक्त एक अन्य

स्थान भी ब्रह्माजीने बतलाया है, ओ चन्द्रभागा नदीके तटपर

अवस्थित है, जिसको साम्बपुर भी कहा जाता है, वहाँ भगवान्‌

सूर्यनारायण स्वकौ भक्तिसे प्रसन्न होकर लोककल्याणके

लिये अपने द्वादश रूपॉर्मेंसे मित्र-रूपमें निवास करते है । जो

भक्तिपूर्यक उनका पूजन करता है, उसको वे स्वीकार करते हैं।

राजा झतानीकने पुनः पूछा--महामुने ! साम्ब कौन

है ? किसका पुत्र है ? भगवान्‌ सूर्यने उसके ऊपर अपनी कृपा

क्यों की ? यह भी आप बतानेकी कृपा करें।

सुमन्तु मुनिने कहा--राजन्‌ ! संसारमें द्रादश आदित्य

प्रसिद्ध हैं, उनमेंसे विष्णु नामके जो आदित्य हैं, वे इस जगत्‌ते

वासुदेव श्रीकृष्णरूपमें अवतीर्ण हुए । उनकी जाम्बवती नामंकी

पत्नीसे महाब्रलशाली साम्ब नामक पुत्र हुआ। बह रापवहा

कुछ-रोगसे भ्रस्त हो गया। उससे मुक्त होनेके स्म्य उसने

भगवान्‌ सूर्यनारायणकी आराधना की और उसीने अपने नामसे

साम्बपुर* नामक एक नगर बसाया और यहौपर भगवान्‌

सूर्यनारायणकी प्रथम प्रतिमा प्रतिष्ठापित की ।

राजा शातानीकने पूछा--महाराज ! साम्बके द्वारा

ऐसा कौन-सा अपराध हुआ था, जिससे उसे इतना कठोर

जाप सित्य। थोड़ेसे अपराधपर तो शाप नहीं मिलता ।

सुमन्तु मुनिने कहा--ऱजन्‌ ! इस कृत्तान्तका वर्णन

हम संक्षेपमें कर रहे हैं, आप सावधान होकर सुते । एक समय

रुद्रके अवतारभूत दुर्वासा मुनि तीनों लोकम विचरण करते हुए

द्वास्कापुरीमें आये, परंतु पीछे-पीछे नेत्रोंसे युक्त कदा-शरीर

अत्यन्त विकृत रूपवाले दुर्वासाकों देखकर साम्य अपने सुन्दर

स्वरूपके अहैकारमें आकर उनके देखने, चलने आदि

चेष्टाऑंकी नकल करने तग । उनके मुखके समान अपना ही

विकृत मुख बनाकर उन्हींकी भाँति चलने लगे। यह देखकर

और 'साम्बकों रूप तथा यौवनका अत्यन्त अभिमान है' यह

समझकर दुर्वासा मुनिक्रों अत्यधिक क्रोध हो आया। ये

क्रोधसे किते हुए यह कह उठे--'साम्ब ! मुझे कुरूप

और अपनेको अति रूपसप्पन्न मानकर तूने मेरा परिहास

किया है। जा, तू ङौघ्र ही कुष्टरोगसे प्रस्त हो जायगा।'

१-इन तोनों र्थानऑक विषोष जानकारीके लिये 'कल्याण'के ५३वें वर्षके विरोषाङक 'सूर्याडर कर लोन प्रसिद्ध सूर्य-पन्दिर' नामक अन्तिम लेख

देखना चाहिये।

२-यहौ कार आगे चलकर 'मूलस्थान' पुनः मुस्लिम दसनय 'मुल्ताय अमस प्रसिद्ध हुआ, जो आज पाकिस्तानमें त्मक्लैए-के पश्चिम

भागमें स्थित है।

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