ब्राह्मपर्व ]
* पश्चमी-कल्पका आरम्भ, नागपञ्ममीकी कथा «
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्द्धपूर्यक पहले गौकी प्रदक्षिणा कर उपर्युक्त मन्त्रके
पढ़े और गौका स्पर्श करे । जो गौको प्रदक्षिणा करता है, उसे
सम्पूर्ण पृथ्वीको प्रदक्षिणाका फल प्राप्त होता है ।
इस प्रकार इनको स्पर्शकर, हाथ-पैर घोकर, आसनपर
बैठकर आचमन करें। अनन्तर खदिर (खैर) की समिधाओँसे
अभि प्रज्वलित कर, घृत, दुग्ध, यव, तिल तथा विविध भक्ष्य
पदार्थोंसे मत्र पढ़ते हुए हवन करे । आहूति इन मन्सि
दे--ॐ छार्याय स्वाहा, ॐ डार्वपुत्राय स्वाहा, ३७
कषोण्युत्सङ्गभवाय स्वाहा, ॐ कुजाय स्वाहा, ॐ
ललिताड्राय स्वाहाय तथा ॐ> त्मोहिताङ्गाय स्वाहा । इन प्रत्येक
मन्त्रोंसे १०८ या अपनी शक्तिके अनुसर आहति दे । अनन्तर
सुवर्ण, चांद, चन्दन या टेक्टास्के कवष्ठकी मकुलकी मूर्ति
बनाकर तांबे अथवा चाँदीके पञमे उसे स्थापित करे । घो,
कुंकुम, रक्तचम्द्न, रक्त पुष्य, नैयेद्य आदिसे उसकी पूजा करे
अथवा अपनी रक्तिके अनुसार पूजा करे। अथवा ताम्न,
मृत्तिक या वाससे बने पात्में कुंकुम, केसर आदिसे मूर्ति
अड्भितकर पूजा करे। 'अभ्रिर्मूर्धा-*' इत्यादि यैदिक पन्ते
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सभी उपचारक समर्पित कर यह मूर्ति ब्राह्मणकों दे दे और
यथाशक्ति घौ, दूध, चावल, गेहूँ, गुड़ आदि वस्तु भी
ऋद्यणको दे । धन रहनेपर कृपणता नहों करनी चाहिये, क्योंकि
कंजूसी करनेसे फट नहीं प्राप्न होता।
इस प्रकार चार यार भौमयुक्त चतुर्थीका त्रतकर श्रद्धा-
पूर्वक दस अथवा पाँच तोले सोनेकी मङ्गलः और गणपतिकी
मूर्ति चन्वाये । उसे चौस पल या दस पलके सोने, चाँदी
अथवा ताम्र आदिके पात्रमें भक्तिपूर्वक स्थापित करे । सभौ
उपचारोंसे पूजा करनेके बाद दक्षिणाके साथ सत्पात्र ब्राह्मणको
उसे दे, इससे इस ब्रतका सम्पूर्ण फल प्राप्त होता है। राजन्!
इस प्रकार इस उत्तम तिथिको मैंने कहा। इस दिन जो त्रत
करता है, वह चन्द्रमांके समान कान्तिमान्, सूर्यके समान
तेजस्वी एवे प्रभावान् तथा वायुके समान बलवान् होता है और
अन्ते महागणपतिके अनुप्रहसे भौमल्रेकमे निवास कर्ता है !
इस तिथिके साहात्म्यफों जो च्यक्ति भक्तिपूर्यक पढ़ता-सुनता
है, वह महापातकादिसे मुक्त होकर श्रेष्ठ सम्पत्तियोंकों प्राप्त
करता है। (अध्याय ३१)
पञ्चमी-कल्यका आरम्भ, नागपश्नमीकी कथा, पञ्चमी-त्रतका विधान और फल
सुमन्तु मुनि खोले--राजन् ! अब मै पञ्चमो -कल्पका
धर्णने करता हूँ। पद्मी तिथि नागोंकों अत्यन्त प्रिय है और
उन्हें आनन्द देनेवातली है। इस दिन नागलोकमें विशिष्ट उत्सव
होता है। पञ्चमी तिचिको जो व्यक्ति नागोको दुधसे खान
कराता है, उसके कुलमे। वासुकि, तक्षक, करिय, मणिभद्र,
फेगचत, धृतराट््र, ककॉटक तथा धनझय--ये सभी बड़े-बड़े
नाग अभय दान देते हैं--डसके कलमे सर्पका भय रहीं
रहता । एक बार माताके शापसे नागस्येग जलने लग गये थे ।
इस्रीलिये उस दाहकी व्यथाको दूर करनेके लिये पञ्चमीको
गायके दधसे नागॉकों आज भी लोग स्वन कराते हैं, इससे
सर्प-भय नहीं रहता ।
राजाने पूछा--महाणज़ ! नागमाताने नागॉको क्यों
शाप दिया था और फिर वे कैसे बच गये ? इसका आप
विस्तारपूर्वक वर्णन करें ।
सुमन्तु पुनिने कहा-- एक बार राक्षसों और देवताओंनि
मिलकर सपुद्रका मन्थन किया। उस समय सपुद्रसे अतिशय
श्रेत उच्चे:अवा नाप्ता एक अश्च निकत्म, उसे देखकर
नागसाता कदरूने अपनी सपत्नों (सौत) बिनतासे कहा कि
देखो, यह अश्च श्वेतवर्णका है, परंतु इसके बाल काले दौख
पड़ते हैं। तब विनताने कहा कि न लो यह अश्च सर्वश्वेत है,
न क्छ है और न लाछ | यह सुनकर कद्भने कहा--'मेंरे
साथ शर्त करो कि यदि मैं इस अश्वके वालको कृष्णवर्णका
दिखा दूँ तो तुम मेरौ दासी हो जाओगी और यदि नहीं दिखा
सकी तो मैं तुप्हारी दासी हो जाऊँगी।' बिनताने यह दार्त
स्वोकार कर स । दोनों क्रोध करती हुई अपने-अपने स्थास्को
चली गयीं। कदने अपने पुत्र नागोंको बुतप्रकर् सब वृत्तान्त
उन सूना दिया और कहा कि 'पुत्रो तुम अश्वके बालके
समान सूक्ष्म होकर उष्तेः अ्रवाके दारीरमे लिपट जाओ, जिससे
यह कृष्णवर्णका दिखायी देने के । ताकि मै अपनी सौत
विनताको जीतकर उसे अपनी दासी बना सकूँ । साताके इस
३-आऑप्रिर्मूधों दिबः ककुल्पतिः पृथ्िव्या अयम् | जपा ` देता ` सि जिन्यलि 8
(यजुवद ३। १२)