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* पुरुषोंके शुभाझुभ लक्षण *

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पुरुषोंके शुभाशुभ लक्षण

राजा झतानीकने पूछा--चिप्रेन्द्र स्यौ ओर पुरुषके

जो लक्षण कार्तिकेयने बनाये थे और जिस ग्रग्थकों क्रोधमें

आकर भगवान्‌ हिवने समुद्रमें फेंक दिया था, वह

कार्तिकेयको पुनः प्राप्त हुआ या नहीं ? इसे आप मुझे बताये ।

सुपन्तु मुनिने कहा--राजेन्र ! कार्तिकेयने स्ी-

पुरुषका जैसा लक्षण कहा है, चैसा ही मैं कह रहा हूँ।

व्योमके भगवानके सुपुत्र कार्तिकेयने जब अपनी शक्तिके

ड्वारा ऋचपर्वतको विदीर्ण किया, उस समय ब्रह्माजी उनपर

प्रसन्न हो उठे । उन्होंने कार्तिकेयसे कहा कि हम तुमपर प्रसन्न

हैं, जो चाहो वह वर घुझसे माँग लो ¦ उस तेजस्वी कुमार

कार्तिकेयने नतमस्तक होकर उन्हें प्रणाम किया और कहा कि

विभो ! स्त्री-पुरुषके विषयमे मुझे अत्यधिक कौतृहरू है। जो

लक्षण-ग्रन्थ पहले मैंने बनाया था उसे तो पिता देवदेवेश्वरने

क्रोधमें आकर सपुद्रमें फँक दिया | वह मुझे भूल भी गया है।

अतः उसको सुननेकी मेरी इच्छा है। आप कृपा करके उसीका

वर्णन करें।

ब्रह्माजी बोले--तुमने अच्छी बात पूछी है। समुद्रने

जिस प्रकारसे उन लक्षणोंकों कहा है, उसी प्रकार मैं तुम्हें सुना

रहा हूँ। समुद्रने स्ी-पुर्योकि उत्तम, मध्यम तथा अधम--

तीन प्रकारके लक्षण बतल्ताये हैं।

शुभाशुभ लक्षण देखनेवालेकों चाहिये कि वह शुभ

मुहूर्तमें मध्याहके पूर्व पुरुषके लूक्षणोंक्रों देखे | प्रमाणसमूह,

छायागति, सम्पूर्ण अङ्ग, दाँत, केद, नख, दाढ़ी-मुँछका लक्षण

देखना चाहिये । पहले आयुकी परीक्षा करके ही लक्षण बताने

चाहिये। आयु कम हो तो सभी लक्षण व्यर्थ है। अपनी

अद्कलियोसे जो पुरुष एक सौ आठ यानी चार हाथ बारह

अक्लुलूका होता है, वह उत्तम होता है। सौ अङ्गुलका होनेपर

मध्यम और नब्बे अज्गुल्लका होनेपर अधम माना जाता है--

राके प्रमाणका यही लक्षण आचार्य सपुद्रने कहा है।

हे कुमार ! अब मैं पुरुषके अङ्गौका लक्षण कहता हूँ।

जिसका पैर कोमल, मौसल, रक्तवर्ण, स्निग्ध, ऊँचा, पसीनेसे

रहित और नाड़ियॉसे व्याप्त न हो अर्थात्‌ नाड़ियाँ दिखायी नहो

पड़ती हों तो वह पुरुष राजा होता है। जिसके पैरके तल्वेमे

अंकुद्का चष्ट हो, वह सदा सुखी रहता है। कछुवेके सपान

ऊँचे चरणवास्म, कमलके सदुश कोमल और परस्पर मिलो

हुई अद्रुलि्योकाला, सुन्दर पाष्णि-- एङसे युक्त, निगृढ़

टखनेवात्थर, सदा गर्म रहनेवाला, प्रस्वेदशून्य, रक्तवर्णके

नेते अलेकृत चरणवा्पर पुरुष रजा होता है । सूर्पके समान

अङ्गुलियोसे युक्त चरणवाले पुरुष दरिद्र और दुःखो होते हैं।

जिसका चरण आगमें पकायी गयी मिट्टीके समान वर्णकः होता

है, वह ब्रह्महत्या करनेवाला, पीछे चरणवात्म अगम्या-गमन

करनेवाला, कृष्णवर्णक चरणवाला मद्यपान करनेवाला तथा

श्वेतवर्णके चरणवाला अभक्ष्य पदार्थ भक्षण करनेवाला होता

है। जिस पुरुषके पैरेंकि अगूठे मोटे होते हैं वे भाग्यहीन होते

है। विकृत अगूठेवाले सदा पैदल चलनेवाले और दुखी होते

हैं। चिपटे, विकृत तथा टूटे हुए अगूठेबाले अतिशय निन्दित

होते हैं तथा टेढ़े, छोटे और फटे हुए अगूठेवाले कष्ट भोगते

हैं। जिस पुरुषके पैरकी तर्जनी अंगुली अँगूठेसे बड़ी हो

उसको ख््री-सुख प्राप्त होता है। कनिष्ठा अगुलीके बड़ी होनेपर

स्वर्णकी प्राप्ति होती है। चपटी, धिर, सूखी औगुली होनेपर

पुरुष घनहीन होता है और सदा दुःख भोगता है। रुक्ष और

शेत नख होनेपर दुःखकी प्राप्ति होती है । खराब नख होनेपर

पुरुष शीलरहित ओर कामभोगरहित होता है। रोमसे युक्तं जधा

होनेपर भाग्यहीन होता है । जंघे छोटे होनेपर ऐश्वर्य प्राप्त होता

है, किंनु अन्धनये रहता है। मृगके समान जंघा होनेपर राजा

होता है। रबी, मोरी तथा मांसल ज॑ंघावाला ऐश्वर्य प्राप्त करता

है। सिंह तथा बाघके समान ज॑ंघावाला धनवान्‌ होता है।

जिसके घुटने मांसरहित होते हैं, वह विदेदामें मरता दै, विकट

जानु होनेपर दरिद्र होता है। नीचे घुटने होनेपर स्न्री-जित होता

है और मौसल जानु होनेपर राजा होता है। हँस, भास पक्षो,

शुक, युष, सिंह, हाथी तथा अन्य श्रेष्ठ पश्चु-पक्षियोंके समान

गति होनेपर व्यक्ति राजा अथवा भाग्यवान्‌ होता है। ये

आचार्य समुद्रके वचन है, इनमें संदेह नहीं है।

जिस पुरुषका रक्त कमलके समान होता है वह धनवान्‌

होता है। कुछ लाल और कुछ काला रुधिरवात्म मनुष्य

अधम और पापकर्मको करनेवाला होता है । जिस पुरुषः रक्त

मुँगेके समान रक्त और ख्िग्ध होता है, वह सात द्वीपोंक्ा राजा

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