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उत्तरपर्व ]

* तेवशयनी एवं देवोत्थानी द्वादझीख्तोंका विधान +

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जब देवता भी सो जाते हैं तब संसार कैसे चलता है ? देव

क्यों सोते हैं ? और इस ब्रतका क्या विधान है--इसे कहें ।

भगवान्‌ श्रीकृष्णने कहा--भगवान्‌ सूर्यके मिथुन

राशिमें आनेपर भगवान्‌ मधुसूदनकी मूर्तिकों शयन करा दे

और तुलाराशिमें सूर्यके जानेपर पुनः भगवान्‌ जनार्दनकों

शयनसे उठाये। अधिमास आनेपर भी यही विधि है। अन्य

प्रकारसे न तो हरिको शयन कये और न उन्हें निद्राम उठाये ।

आपषाढ़ मासके शुक्ल पक्षकी देवशयनी एकादशीको उपवास

करे । भक्तिमान्‌ पुरुष शुक्ल वखरसे आच्छादित तकियेसे युक्त

उत्तम शय्यापर पीताम्बरधारी, सौम्य, शङ्ख, चक्र, गदाधारी

भगवान्‌ विष्णुको शयन कराये । इतिहास और पुराणवेत्ता

विष्णुभक्त पुरुष दही, दूध, शहद, धौ और जलसे भगवान्‌की

प्रतिपाको स्नान कराकर गन्ध, धूप, कुँकुस तथा वस्नोंसे

अलंकृत कर निम्नलिखित मत्से प्रार्थना करे--

सुप्ते त्वयि जगन्नाथ जगत्‌ सुप्त॑ भवेदिदम्‌ ।

चिल्ुद्धे त्वयि बुध्येत जगत्‌ सर्व चराचरम्‌ ॥

(उत्तरपर्थ ७० । १०)

'हे जगन्नाथ ! आपके सो जानेपर यह सारा जगत्‌ सुप्त

हो जाता है और आपके जग जानेपर सम्पूर्ण चराचर जगत्‌

प्रबुद्ध हो जाता है।'

महाराज ! इस प्रकार भगवान्‌ विष्णुकी प्रतिमाको

शब्यापर स्थापित कर उसीके सम्मुख काणीपर नियन्त्रण

रखनेका और अन्य नियमोंका द्रत ग्रहण करे । वर्धके चार

मासतक देकाधिदेवके शयन और उसके बाद उत्थापनकी

विधि कही गयी है।

राजन्‌ ! इस ब्रतके त्यागने एवं गअहण करने योग्य

पदार्थेकि अलग-अलग नियमोंकों आप सुनें । गुड़का परित्याग

कस्नेसे व्रती अगले जन्ममें मधुर काणीवाला राजा होता है।

इसी प्रकार चार मासतक तेलका परित्याग करनेवाला सुन्दर

शरीरवाला होता है। कटु तैलका स्थाग करनेसे उसके

शत्रुओंका नाश होता है। महुएके तेलका त्याग करनेसे अतुल

सौभाग्यकी प्राप्ति होती है। पुष्प आदिके भोगका परित्याग

करनेसे स्वर्गमें विद्याधर होता है। इन चार मासोमें जो योगका

अभ्यास करता है, वह ब्रह्मपदको प्राप्त करता है। कडवा,

खट्टा, तीता, मधुर, क्र, कथाय आदि रसोंका जो त्याग करता

है, यह वैरूप्य और दुर्गतिको कभी भी प्राप्त नहीं छोता।

ताम्बूलके त्यागसे श्रेष्ठ भोगोंको प्राप्त करता है और मधुर

कण्ठवाला होता है। घृतके त्यागसे रमणीय लावण्य और सभी

प्रकारकी सिद्धिकों प्राप्त करता है। फलका त्याग करनेसे

बुद्धिमान्‌ होता है ओर अनेक पुत्रोंकी प्राप्ति होती है। पत्तोंका

साग खानेसे रोगी, अपक्व अन्न खानेसे निर्मल शरीरसे युक्त

होता है। तैल-मर्दनके परित्यागसे व्रती दीप्तिमान्‌, दीप्तकरण,

राजाधिराज धनाध्यक्ष कुबेरके सायुज्यकों प्राप्त करता है।

दही, दूध, तक्र (मट्ठा)के त्यागका नियम" लेनेसे मनुष्य

गोलोकको प्राप्त करता है। स्थालीपाकका परित्याग करनेपर

इन्द्रका अतिधि होता है। तापपक्व वस्तुके भक्षणका नियम

लेनेपर दीर्घायु संतानकी प्राप्ति होती है। पृथ्वीपर शयनका

नियम लेनेसे विष्णुका भक्त होता है।

हे धर्मनन्दन ! इन वस्तुओके परित्यागसे धर्म होता है।

नख और केशि धारण करनेपर, प्रतिदिन गङ्गा-खरान करनेपर

एवं मौनब्रती रहनेपर उसकी आज्ञाका कोई भी उल्लब्डन नहीं

कर सकता । जो सदा पृथ्वीपर भोजन करता है, वह पृथ्वीपति होता

है। "ॐ नमो नारायणाय' इस अष्टाक्षर मन्त्रका निराहार

रहकर जप करने एवं भगवान्‌ किष्णुके चरणोंकी वन्दना करनेसे

गोदानजन्य फल प्राप्त होता है। भगवान्‌ विष्णुके चरणोदकके

संस्पर्शसे मनुष्य कृतकृत्य हो जाता है। चातुर्मास्थमें भगवान्‌

किष्णुके मन्दिरे उपलेपन और अर्चना करनेसे मनुष्य

कल्पपर्यन्त स्थायी राजा होता है, इसमें संशय नहीं है ।

स्तुतिपाठ करता हुआ जो सौ बार भगवान्‌ विष्णुकी प्रदक्षिणा

करता है एवं पुष्प, माला आदिसे पूजा करता है, वह हंसयुक्त

विमानके द्वारा विष्णुलोककों जाता है। किष्णु-सम्बन्धी गान

और वाद्य करनेवाला गन्धर्वलोकको प्राप्त होता है। प्रतिदिन

शाख्तर-चर्चासे जो लोगोंको ज्ञान प्रदान करता है, वह व्यासरूपी

भगवानके रूपमे मान्य होता है और अन्ते विष्णुलोकको

जाता है। नित्य खान करनेवाला मनुष्य कभी नरकॉमें नहीं

जाता। भोजनका संयम करनेवाला मनुष्य पुष्कर-क्षेत्रमें स्नान

करनेका फल प्राप्त करता है। भगवस्सम्बन्धी लीला-नाटक

आदिका आयोजन करनेवाला अप्सराओंका राज्य प्राप्त करता

१-सावनमें महा, भाद्रपद्में दहों और अधिनों दूधका परित्याग करना चाहिये।

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