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+ पुराणौ परम पुण्यं भविष्यं सर्वसौखु्यदम्‌ +

{ संक्षिप्त भविष्यपुराणाङ्क

पापात हित कि तातन काक १४१४४

वे शत्रुओंद्वार लड़ाईके मैदानमे मार डाले गये । उनकी खोका

नाम था उर्मिला । उर्भिला जब राज्य-च्युत एवं निरश्रित हो

इधर-उधर घूमने लगी, तब अपने बालक और कन्याको

लेकर वह अवन्ति देश चली गयी और वहाँ एक ब्राह्मणके

घरमे कार्यकर अपना निर्वाह करने लगी । वह विपत्तिसे पीड़ित

थी, गह पौसते समय वह थोड़ेसे गेहूँ चुशकर रख लेती और

डसीसे क्षुधासे पीड़ित अपने बच्चोंका पालन करती। कुछ

समय बाद उर्मिलाका देहान्ते हो गया । उर्पिलाका पुत्र बड़ा हो

गया, वह अवन्तिसे मिथिला आया और पिताके राज्यको पुनः

प्राप्तकर शासन करने लगा । उसकी बहन श्यामला विवाह-

योग्य हो गयी थी। वह अत्यन्त रूपवती थी। अवन्तिदेशके

राजा धर्मराजने उसके उत्तम रूपकी चर्चा सुनकर उसे अपनी

रानी बना लिया।

एक दिन धर्मराजने अपनी प्रिया श्यामलासे कहा--

“वैदेहिनन्दिनि ! तुम ओर सभी कामोंको तो करना, परंतु ये

सात स्थान जिनमें ताले बंद हैं, इनमें तुम कभी मत जाना ।'

श्यामलाने “बहुत अच्छा' कहकर पतिकी बात मान ली, परंतु

उसके मनमें कुतृहल बना रहा।

एक दिन जब धर्मगज अपने किसी कार्यमें व्यस्त थे, तन

श्यापलाने एक मकानका ताला खोलकर वहाँ देखा कि उसकी

माता उर्मिलाको अति भयंकर यमदूत बाँधकर तप्त तेलके

कड़ाहमें बार-बार डाल रहे हैं। लग्जित होकर श्यामलाने वह

कमरा बंद कर दिया, फिर दूसरा ताला खोला तो देखा कि

यहाँ भी उसको माताको यमदूत शिलाके ऊपर रखकर पीस

रहे हैं और माता चिल्ला रही है। इसी प्रकार उसने तीसरे

कमरेक्त्रे खोलकर देखा कि यमदूत उसकी माताके मस्तकमें

लोहेकी कील ठोंक रहे हैं, इसी तरह चौथेमें अति भर्यकर श्वान

उसका भक्षण कर रहे हैं, पाँचवेंमें लोहेके संदेशसे उसे पीड़ित

कर रहे है! छठेमें कोल्हूके बीच ईखके समान पेरी जा रही है

और सातवें स्थानपर ताला खोलकर देखा तो वहाँ भी उसकी

माताको हजारों कृमि भक्षण कर रहे हैं और वह रुधिर आदिसे

लथपथ हो रही है।

यह देखकर श्यामलाने विचार किया कि मेरी माताने ऐसा

कौन-सा पाप किया, जिससे वह इस दुर्गति पराप्त हई । यह

सोचकर उसने साया व॒त्तात्त अपने पति धर्मराजो बतलाया ।

धर्मराज वोले-- परिये ! मैंने इसीलिये कहा था कि ये

सात ताले कभी न खोलना, नहीं तो तुम्हें वहाँ पश्चात्ताप होगा ।

तुम्हारी माताने संतानके खेहसे ब्राह्मणके गेहूँ चुराये थे, क्या

तुम इस बातको नहीं जानती हो जो तुम मुझसे पूछ रही हो ?

यह सब उसी कर्मका फल है। ब्राह्मणका धन जहस भी

भक्षण करे तो भी सात कुल अधोगतिको प्राप्त होते हैं और

चुराकर खाये तो जबतक चन्द्रमा और तारे हैं, तबतक नरकसे

उद्धार नहीं होता । जो गेहूँ इसने चुराये थे, वे ही कृमि बनकर

इसका भक्षण कर रहे हैं।'

श्यामलाने कहा--महाराज ! मेरी माताने जो कुछ भी

पहले किया, वह सब्र मैं जानती ही हूँ, फिर भी अब आप कोई

ऐसा उपाय बतलायें, जिससे मेरी माताका नरकसे उद्धार हो

जाय। इसपर धर्मराजने कुछ समय विचार किया और कहने

लगे--'प्रिये! आजसे सात जन्म पूर्व तुम ब्राह्मणी थी। उस

समय तुमने अपनी सखियोकि साथ जो बुधाष्टमीका चरते किया

था, यदि उसका फल तुम संकल्पपूर्वक अपनी माताको दे दो

तो इस संकटसे उसकी मुक्ति हो जायगी।' यह सुनते ही

श्यामलाने ख्रानकर अपने कतक पुण्यफल संकल्पपूर्वक

माताके लिये दान कर दिया। ब्रतके फलके प्रभावसे उसकी

माता भी उसी क्षण दिव्य देह धारणकर विमानमें बैठकर अपने

पतिसहित स्वर्गलोककों चली गयी और बुध ग्रहके समीप

स्थित हो गयी।

राजन्‌ ! अब इस व्रतके विघानको भी आप सावधान

होकर सुनें---जब-जब शुक्ल पक्षकी अष्टमीको बुधवार पड़े

लो उस दिन एकभूक्त-्त करना चाहिये । पूर्वाहमें नदी आदिमे

खान करे ओर वहसे जलसे भरा नवीन कलश लाकर घरमे

स्थापित कर दे, उसमें सोना छोड़ दे और बाँसके पातरमे पववान्न

भी रखे। आठ बुघाष्टमियोंका ब्रत करे और आठोंमें क्रमसे ये

आठ पक्‍वान्न--मोदक, फेनी, घीका अपूप, कटक, श्वेत

कसारसे बने पदार्थ, सोहालक (खांडयुक्त अशोकवर्तिका)

और फल, पुष्प तथा फेनी आदि अनेक पदार्थ बुधको

निवेदित कर बादमें स्वयै भी अपने इष्ट-मित्रोके साथ भोजन

करे। साथ हो बुधाष्टमीकी कथा भी सुने। बिना कथा सुने

भोजन न करे । बधक एक माशे (८ रत्ती-एक माशा) या

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