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= पुराणै परम॑ पुष्य भविष्य॑ सर्वसौख्यदम्‌ + ( संक्षिप्त भविष्यपुराणाडू

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कहे । सभी मासोकि व्रते पञ्चगच्यका प्रादान करे ओर उपवास नहीं होता । इस व्रतके करनेसे हजारों अग्नषटोम-यज्ञका फल

करे । तदनन्तर माघ मास आनेपर करकपात्रके ऊपर पञ्चरलसे प्राप्त होता है । कुमारी, सधवा, विधवा या दुर्भगा जो भी हो,

युक्त अङर्ठमात्रकी पार्वतीकी स्वर्णनिर्मित ूर्तिकी स्थापना करे । वह इस बतके करनेपर गौरीलेकमे पूजित होती है । इस

वल, आभूषण और अलंकारसे उसे सुशोभित कर एक वैल विधानको सुनने या इस ब्रतको करनेके लिये औरोंको उपदेश

और एक गाय “भवानी प्रीयताम्‌, यह कहकर ब्राह्मणको देनेसे भी सभी पापोंसे छुटकारा मिलता है और वह पार्वतीके

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प्रदान करें। इस विधिके अनुसार तत करनेवाल्त्र सम्पूर्ण

पासे उसी क्षण मुक्त हो जाता है और हजार वर्षोतक दुःखी

लोकम निवास करता है।

(अध्याय २६)

भगवान्‌ श्रीकृष्णा बोले-- महाराज ! अब मैं तीनों

लोकम प्रसिद्ध, आनन्द प्रदान करनेवाले, पापका नादा

करनेवाले आर््ानन्दकरी तृतीयात्रतका वर्णन करता हँ । जन

किसी भी महीनेमें शुक्ल पक्षकी तृतीयाको पूर्वाषाद्‌, उत्तरापाढ़

अथवा रोहिणी या मृगार नक्षत्र हो तो उस दिन यह ब्रत

करना चाहिये। उस दिन कुदा और गन्धोदकसे खानकर श्वेत

चन्दन, श्वेत माला और श्वेत वस्त्र धारणकर उत्तम सिंहासनपर

दिव -पार्यतीकी प्रतिमा स्थापित करे । सुगन्धित श्वेत पुष्प,

चन्दन आदिसे उनकी पूजा करे । "वासुदेव्यै नमः -इंकराय

जमः' से गौरो-शंकरके दोनों चरणौकी, “कोकविनाश्िन्यै

जपः-आनन्दाय नमः" से पिंडलियोंकी, “रम्भायै नमः-दिवाय

नमः" से ऊरुकी, "आदित्यै नमः-झुरूपाणये नपः' से

कटिकी, "माधव्यै नमः-भवाय नपः' से नाभिकी,

ताण्डवेशाय नमः' से श्र्वोकी, “इन्द्राण्ये नमः-हब्यबाहाय

नमः” से छलाटकी तथा “स्वाहायै नमः-पश्कशराय नमः

कहकर मुकुटकी पूजा करे। तदनन्तर नीचे लिखे मन््रसे

पार्वती-परमेश्वस्की प्रार्थना करें--

विश्वकायौ विश्वमुखौ विश्वपादकरी झियौ ।

प्रसन्नवदनौ चन्दे पार्वतीपरमेश्वरौ ॥

(उत्तपर्व २७। १३)

"विश्च जिनका शरीर है, जो विश्वके मुख, पाद और

हस्तस्वरूप तथा मङ्गलकारक हैं, जिनके मुखपर प्रसन्नता

झलकती रहती है, उन पार्वती और परमेश्वरकी यै वन्दना

करता हूँ।'

इस प्रकार पूजनकर मूर्तियॉके आगे अनेक प्रकारके

कमल, शाङ्ग, स्वस्तिक, चक्र आदिकः चित्रण करे। गोमूत्र,

गोमय, दूध, दही, घी, कुशोदक, गोश्रेगोदक, बिल्वपत्र,

घड़ेका जल, खसका जल, यवचूर्णका जल तथा तिेदकका

क्रमशः मार्गशीर्ष आदि महीनोंमें प्राशन करे, अनन्तर शयन

करे। यह प्राशन प्रत्येक पक्षकी द्वितीयाकों करना चाहिये।

भगवान्‌ उमा-महेश्वरकी पूजाके लिये सर्वत्र श्वेत पुष्पको अ्रेष्ठ

माना गया है। दानके समय यह मन्त्र पढ़ना चाहिये--

गौरी मे प्रीयतां नित्यमघनाशाय मङ्गला ।

सौभाग्यायास्तु लिता भवानी सर्वसिद्धये ॥

(उत्तपर्व २०। १९)

“गौरी नित्य मुझपर प्रसन्न रहे, मङ्गल मेरे पापोंका विनाश

, करे । ललिता मुझे सौभाग्य प्रदान करें और भवानी मुझे सब

सिद्धियाँ प्रदान करें।'

वर्धके अन्तम लवण तथा गुड़से परिपूर्ण घट, नेत्रपष्ट,

~ चन्दन, दो श्वेत बस््र, ईख और विभिन्न फलॉके साथ सुवर्णकी

शिव-पार्वतीकी प्रतिमा सपत्रीक ब्राह्मणको दे और “गौरी ये

प्रीयताम्‌" ऐसा कहे । शय्यादान भी करे ।

इस आरद्रान्दकरौ तृत्तीयाका व्रते करनेसे पुरुष

शिवलोकमें निवास करता है और इस ल्त्रेकमें भी धन, आयु,

आशेम्य, ऐश्वर्य और सुखको प्राप्त करता है । इस व्रत्को

करनेवाल्ैको कभी शोक नहीं होता । दोनों पक्षोंमें विधिवत्‌

पूजनसहित इस व्रतको करना चाहिये । ऐसा करनेसे रुद्राणीके

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