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क भुवनकोशका संक्षिप्त वर्णन *

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भुवनकोशका संक्षिप्त वर्णन

महाराज युधिष्ठिरने पृषछठा-- भगवन्‌ ! यह जगत्‌

किसमें प्रतिष्ठित है ? कहाँसे उत्पन्न होता है ? इसका किसमें

ख्य होता है ? इस विश्वका हेतु क्या है ? पृथ्वीपर कितने द्वीप,

समुद्र तथा कुलाचल हैं? पृथिवीका कितना प्रमाण है ?

कितने भुवन हैं ? इन सबका आप वर्णन करें।

भगवान्‌ श्रीकृष्णने कहा--महाराज ! आपने जो पूछा

है, वह सब पुसणका विषय है, किंतु संसारमें घूमते हुए मैंने

जैसा सुना और जो अनुभव किया है, उनका संक्षेपमें मैं वर्णन

करता हूँ। सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश, मन्वन्तर और वेशानुचरित--

इन पाँच लक्षणोंसे समन्वित पुराण कहा जाता है! ।

अनघ ! आपका प्रश्न इन पाँच लक्षणोमेसे सर्ग

(सृष्टि) - के प्रति ही विज्ेषरूपसे सम्बद्ध है, इसलिये इसका

पद्चतन्मात्राओंसे पाँच महाभूत और इन भूतोंसे चराचर-जगत्‌

उत्पन्न हुआ है। स्थावर-जङ्गमात्मक अर्थात्‌ चरचर जगत्के

नष्ट होनेपर जलमूर्तिमय विष्णु रह जाते हैं अर्थात्‌ सर्वत्र जल

परिव्याप्त रहता है, उससे भूतात्मक अण्ड उत्पन्न हुआ। कुछ

समयके बाद उस अण्डके दो भाग हो गये । उसमें एक खण्ड

पृथिवी और दूसरा भाग आकाश हुआ । उसमें जरायुसे मेरु

आदि पर्वत हुए। नाडियोंसें नदी आदि हुई। मेरु पर्वत सोलह

हजार योजन भूमिके अंदर प्रविष्ट है ओर चौरासी हजार योजन

भूमिके ऊपर है, वत्तीस हजार योजन मेरुके शिखरका विस्तार

है। कमलस्वरूप धूमिकी कर्णिका पेरु है । उस अष्डसे

आदिदेवता आदित्य उत्पन्न हुए, जो प्रातःकालमे ब्रह्मा,

मध्याइमें विष्णु और साय॑कालमे रुद्रकूपसे अवस्थित रहते है ।

एक आदित्य ही तीन रूपोंको धारण करते हैं। ब्रह्मासे मरीचि,

अत्र, अङ्गिर, पुलस्त्य, पुलह, क्रतु, भृगु, वसिष्ठ और

ऋरद--ये नौ मानस-पुत्र उत्पन्न हुए। पुराणम इन्दे बहपुत्र

कहा गया है ब्रह्माके दक्षिण अगूटेसे दक्ष उत्पन्न हुए ओर

कये अगु प्रसूति उततर हुई। दोनों दः्पति अंगूठेसे ही

उत्पन्न हुए। उन दोनोंसे उत्पन्न हर्यश्च आदि पुत्रोंकों देवर्षि

नारदने मुष्टि लिये उत होनेपर भी समे विरत कर दिया ।

प्रजापति दक्षने अपने पुत्र हर्यश्रोंक्ो सृष्टिसे विमुख देखकर

सत्या आदि नामवाली साठ कन्याओंको उत्पन्न किया और

उनमेंसे उन्होंने दस धर्मको, तेरह कइ्यपको, सत्ताईस

चद्धमाको, दो बाहुपुत्रको, दो कृशाश्वको, चार अरिश्टनेमिको,

एक भृगुको और एक कन्या शंकरको प्रदान किया । फिर इनसे

चग़चर-जगत उत्पन्न हुआ । मेरु पर्वतके तीन शृ्गौपर ब्रह्मा,

विष्णु और शिवकी क्रमदाः वैराज, वैकुण्ठ तथा कैलास

नामक तीन पुरियाँ है । पूर्व आदि दिशाओमि इन्र आदि

दिक्पास्म्रेंकी नगरी है। हिमवान्‌, हेमकूट, निषध, मेरु, नील,

श्वेत और शूङ्गवान्‌--ये सात जम्बद्रीपमे कुलपर्वत दै ।

जम्बदरोप लक्ष योजन प्रमाणवाला है । इसमे नौ वर्ष है । जम्बू,

शाक, कुझ, ऋरौच, द्ल्मलि, गोमेद # तथा पुष्कर--ये सात

द्वीप हैं। ये सातो द्वीप सात समुद्रे परिवेष्टित हैँ । क्षार, दुग्ध,

इकषुरस, सुरा, दधि, घृत और स्वादिष्ट जलके सात समुद्र है ।

सातों समुद्र ओर सातों द्वीप एककी अपेक्षा एक द्विगुण हैं।

और सत्यलोक --ये देवताओकि निवास-स्थान है । सात

पाताललोक है -- अतल, महातल, भूमितल, सुतल, वितल,

रसातल तथा तत्प्रतल । इनमे हिरण्याक्ष आदि दानव और

वासुकि आदि नाग निवास करते हैं। हे युधिष्ठिर ! सिद्ध और

ऋषिगण भी इनमें निवास करते हैँ । स्वायम्भुव, स्वारोचिष,

उत्तम, तामस, रवत और चाक्षुष--ये छः मनु व्यतीत हो गये

हैं, इस समय वैवस्वत मनु वर्तमान है । उन्हींके पुत्र और

पौत्रोंसे यह पृथिवी परिव्याप्त दै । बारह आदित्य, आठ वसु,

ग्यारह रुद्र॒ ओर दो अधिनीकुमार--ये तैंतीस देवता

वैवस्वत-मन्वन्तरमे कहे गये है । विप्रचित्तिसे दैत्यगण और

हिरण्याक्षसे दानवेगण उत्पन्न हुए है ।

द्वीप और समुदरोसे समन्वित भूमिका प्रमाण पचास करि

१-सर्गक्च प्रतिसर्गश्च वैदो मन्वन्तराणि च। वैश्वनुचरितै चैव पुराणै पञ्चलक्षणम्‌ ॥ (उत्तरपर्व २। ११)

# अन्य मर्ण आदि सभी पुराणंकि अनुसार गोमेद आठवाँ है, यहाँ प्रक्ष नामक द्वीप छूट गया है ।

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