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स्डढ

* पुराणं परम पुण्ये भविष्यं सर्वसौ ख्यदम्‌ «

{ संक्षिप्त भविष्यपुराणाडू

शुद्धोदन नामक पुत्र हुआ, उसने तीस वर्षतक शासने किया ।

उससे दाक्यसिंहका जन्म हुआ। कलियुगके दो हजार वर्ष

व्यत्तीत हो जानेके याद शाताद्रिमें उसने शासन किया । कलिकै

प्रथम चरणमें केदमार्गको उसने विनष्ट कर दिया और साठ

वर्षतक उसने ग्रज्य किया। उस समय प्रायः सभी बौद्ध हो

गये । किष्णुस्वरूप उसके राजा होनेपर जैसा राजा था, चैसो ही

प्रजा हो गयी, क्योंकि विष्णुकी शक्तिके अनुसार ही जगते

धर्मकी प्रवृत्ति होती है। जो मनुष्य मायापति हरिकी दारणमें

जाते है, ये उनकी कृपाके प्रभावसे मोक्षके भागी हो जाते हैं।

शाक्यसिंहका पुत्र बुद्धसिंह हुआ, ठसने तीस वर्ष राज्य किया।

उसका पुत्र (शिष्य) चन्द्रगुप्र' हुआ, जिसने पारसीदेशके राजा

सुल (सेल्युकस) की पुत्रेके साथ विवाह कर यवन-

सम्बन्धी बौद्धधर्मका प्रचार किया । उसने साठ वर्षतक शासन

किया । चद्धगुप्तका पुत्र बिन्दुसार (बिम्बसार) हुआ उसने भी

पिताके समान राज्य किया । उसका पुत्र अशोक हुआ । उसी

समय कान्यकुब्न देशका एक ब्राह्मण आव्‌ पर्वतपर चला गया

और वहां उसने विधिपूर्वक ब्रह्महोत्र सम्पन्न किया । वेदमनत्रोंक

प्रभावसे यज्ञकुण्डसे चार क्षत्रियोंकी उत्पत्ति हुई--प्रमर--

परमार {सामवेद ), चपहानि--चौहान (कृष्णयजुर्वेद)

त्रिवेदी -- गहस्वार (शुक यजुर्वेदौ) और परिहास्क

(अधर्ववेदी) क्षत्रिय थे। वे सब एेरवत-कुलमे उत्पन्न

गजौपर आरूढ़ होते थे। इन त्त्ेगेोनि अदकतेकके वंशजोंको

अपने अधीन कर भारतवर्धके सभो बौद्धोंको नष्ट कर दिया ।

अयन्तमे प्रमर -- परम्बर राजा हुआ । उसने चार योजन

विस्तृत अम्बावतती नामक पुरीमें स्थित होकर सुखपूर्वक जीवन

व्यतीत किया। (अध्याय ६)

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महाराज विक्रमादित्यके चरित्रिका उपक्रम

सूतजी बोले---शौनक ! चित्रकूट पर्वतके आस-पासके

क्षेत्र (प्रायः आजके पूरे बुन्देलखण्डः एवं वधेलखष्ड) में

परिहार नामका एक राजा हुआ । उसने रमणोय कलिंजर नगरमे

रहकर अपने पराक्रमसे बौद्धोंको परास्त कर पूरी प्रतिष्ठा पराप

को । राजपूतानेके क्षेत्र (दिल्ली नगर) में चपहानि--चौहान

नामक राजा हुआ। उसने अति सुन्दर अजमेर नगरमें रहकर

सुख्पूर्वक सज्य किया। उसके राज्यमें चारों वर्णं स्थित थे ।

आनर्तं (गुजरात) दशमे शङ्क नामक राजा हुआ, उसने

ड्वारकाको राजधानी बनाया ।

शौनकजीने कहा--हे महाभाग !

अग्रिवंशो राजाओंका वर्णन कर ।

सूतजी बोले ~~ ब्राह्मणो ! इस समय में योगनिद्राके

दामे हो गया हं । अब आपलोग भी भगवान्‌का ध्यान करं ।

अब मैं थोड़ा विश्राम करूंगा । यह सुनकर मुनिगण भगव्छन्‌

विष्णुके ध्यानम ल्मैन हो गये । लम्बे अन्तरालके वाद ध्यानसे

उठकर सूतजो पुनः बोले---महामुने ! कलियुगके सैतीस सौ

दस वर्ष व्यत्त द्येनेपर प्रमर -ऋअमक राजाने राज्य करना प्रारम्भ

अब आप

किया। उन्हें महामद (मुहम्मद) नामक पुत्र हुआ, जिसने

पिताके झासन-काल्के आधे समयतक राज्य किया। उसे

देवापि नामक पुत्र हुआ, उसने भी पिताके हो तुल्य वर्षोतक

राज्य किया। उसे देवदूत नाणक पुत्र हुआ, उसके गन्धर्वसेन

नामक पुत्र हुआ, जिसने पचास वर्षतक राज्य किया। वह

अपने पूत्र शब्ब॒का अभिषेक कर वन चला गया। शरद्घने तीस

वर्षतक राज्यभार सैभाला । उसी समय देवराज इन्द्रने बीरमती

नामक एक देवाङ्गनाको पृथ्वोपर भेजा । शङ्खे वोरमतोसे

गन्धर्वसेन नामक पुत्रसस्‍त्रकों प्राप्त किया। पुत्रके जन्म-समयमें

आकाहसे पुष्पवृष्टि हुई और देवताओनि दुदुभी बजायी।

सुखप्रद शीतल-मन्द वायु यहने छगी। इसी समय अपने

शिष्योंसहित शिवदृष्टि नामके एक ब्राह्मण तपस्याके लिये यनपे

गये और शिवकी आराघनासे वे शिवस्वरूप हो गये।

कीन हजार वर्ष पूर्ण होनेपर जब कलियुगका आगमन

हुआ, तब शाकंकि विनाश और आर्यधर्मकी अभिवृद्धिके लिये

वे ही शिवदृष्टि गुह्ाकॉंकी निवासभूमि कैलाससे भगवान्‌

इंकरकी आज्ञा पाकर पृथ्वीपर विक्रमादित्य नापसे प्रसिद्ध

१-अब यहाँसे फिर पाटलिपुत्रके राजवैज्ञक वर्णने प्रारम्भ हुआ और यह चद्रगृप्त ही मौर्यवंशका पत्म राजा था। जिसने भारतके साथ अन्य

देशॉपर अधिकार किया था, जिन्हें बादयें अज्ोकने कौद्ध देवा बना डाल्म । उन दिखे वे सभी देवा भारतके ही उपनिवेज्ञ थे। जिसका यहाँ आगे

चर्णान है। चन्द्रगुप्ते ही सेल्यूकसकों पुजीधे शादी की चौ ।

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