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» पुराणै परमं पुण्य भविष्य सर्वपतौर्यदम् +
{ संक्षिप्त भविष्यपुराणाङ्ख
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रक हुआ, उसने दो सौ सैंतीस वर्षोतक राज्य किया । उसके
जूज नामक पुत्र हुआ, पिताके समान हौ उसने राज्य किया ।
उसका पुत्र नहूर हुआ, उसने एक सौ साठ वर्षोतक राज्य
किया । हे राजन् ! अनेक वात्रुऑका भी उसने विनाश किया।
नहूस्का पुत्र ताहर हुआ, पिताके समान उसने राज्य किया।
उसके अविगम, नहूर और हारन--ये तीन पुत्र हुए।
हे मुने ! इस प्रकार मैंने नाममात्रसे म्लेच्छ राजाओंकि
वैक वर्णन किया। सरस्वतीके दापसे ये राजा स्छेच्छ-
भाषा-भाषी हो गये और आचारमें अधम सिद्ध हुए!
कलियुगमें इनकी संख्याकी विदोष वृद्धि हुई, कितु मैंने
संक्षेपमें ही इन वैरो वर्णन किया । संस्कृत भाषा भारतवर्षमें
ही किसी तरह बची रही'। अन्य भागे स्लेच्छ भाषा हो
आनन्द देनेवाली हुई।
सूतजी पुनः ओर्े--भार्गवतनय महामुने रौनक !
तीन सहसत वर्ष कल्म्युगके जीत जानेपर अवन्ती नगरीमें रद्धं
नामका एक राजा हुआ और प्ठेच्छ देदामें शकोंका राजा राज्य
करता था। इनकी अभिवृद्धिका कारण सुनो । दो हजार वर्ष
कलियुगके बीत जानेपर म्लेच्छबंझकी अधिक वृद्धि हुई और
विश्वके अधिकांश भागकी भूमि स्छेच्छमयों हो गयौ तथा
आँति-भाँतिके मत चल पड़े । सरस्वतीका तर ब्रह्मावर्त-क्षेत्र ही
शुध बचा था। मूशा नामक व्यक्ति स्लेच्छोंका आचार्य और
पूर्व-पुरुष था। उसने अपने मतको सारे संसारमें फैल्मया।
कहछियुग्के आनेसे भारतमें देवपूजा और वेदभाषा प्रायः नष्ट
हो गयी। भारतमें भी धीरे-धीरे प्राकृत ॐओर म्लेच्छ-भाषाका
अचार प्रारम्भ हुआ। व्रजभाषा और महाराष्ट्री--ये प्राकृतके
मुख्य भेद हैं। यायनी ओर गुरुष्डिका (अंग्रेजी) स्लेच्छ
भाषाके मुख्य भेद है । इन भाषाओकि और भौ चार लाख
सूक्ष्म भेद है । पराकृतमे फानीयको पानी और बुभुक्षाको भूख
कहा जाता है ¦ इसी तरहसे म्ङेच्छ भाषामे पितृक पैतर-फादर
और भातृ यादर-वरदर कहते है । इसौ प्रकार आहुतिको
आजु, जानुकये जैनु, रविवारकों संडे, फाल्गुनको फरवरी ओर
यष्टिके सिक्सटी कहते दै । भारतमें अयोध्या, मधुरा, काशी
आदि पवित्र सात पुरियाँ हैं, उनमें भी अय हिसा होने लग गयी
है। डाकू, शबर, भिल््ल तथा मूर्ख व्यक्ति भी आर्यदेश--
भारतवर्षमं भर गये हैं। म्लेच्छदेशमें म्लेच्छ-धर्मको
माननेवाले सुखसे रहते है । यही कलियुगकी विशेषता है।
भारत और इसके ड्ोपोमे ग्लेच्छोंका राज्य रहेगा, ऐसा समझकर
हे मुनिश्रेष् आपलोग रिका भजन करें। (अध्याय ४-७५)
काश्यपके उपाध्याय, दीक्षित आदि दस पुत्रोंका नामोल्लेख, मगधके राजवंश और बौद्ध
राजाओंका तथा चौहान और परमार आदि राजव॑शोका वर्णन
औौनकजीने पूछा--महाराज ! ब्रह्मावर्त ° प्ठेच्छगण
क्यों नहीं आ सके, इसका कारण यतायें।
सूतजी बोले-- मुने ! सरस्वतीके प्रभावसे ये सब वहाँ
नहीं आ सके । वहाँ क्याइयप नामके एक ब्राह्मण रहते थे । ये
कलिके हजार वर्ष बोतनेपर देवताओंकी आज्ञासे स्वर्गस्परेकसे
ख्रह्मावर्तें आये। उनकी धर्म-पत्रीका नाम था आर्यावती |
उससे काक््यपके दस पुत्र उत्पन्न हुए, उनके नाम इस प्रकार
है--उपाध्याय, दीक्षित, पाठक, शक्र, मिश्र, अप्निहोत्रो,
द्विबेदो, त्रिवेदी, पाण्ड्य तथा चतुर्वेदी। ये अपने नामके
अनुरूप गुणवाले थे। उनके पिता काश्यप, जो सभी ज्ञानोंसे
समन्यित और सम्पूर्ण वेदोंके ज्ञाता थे, उनके बीच रहकर उन्हें
ज्ञान देते रहते थे। काकयपने काइमीरमें जाकर जगज्जननी
सरस्वतीको रक्तपुष्प, अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य तथा
पुष्पाजलिके द्वारा संतुष्ट किया। देवीकी स्तुति करते हुए
१-पहले संस्कृतका सम्पूर्ण विश्वमे प्रचार था। बालीद्रीपमें आब भी इसका पूछ प्रचार है तथा सुमा. जावा, जापान आदियें कुछ अंज्ञोमें इसका
प्रचार है। वोरो, इंडोनेशिया, कम्य भर चौकों भी इसका बहुत पहले प्रचार था। बीचमें सेस्कृतकी यहुत उपेक्षा हुई, पर जर्मन, रूपा और
खिटेनके निवाशियोंके सत्मयाससे अब पुत्र: इसका सी विश्रविद्यालयोंगें अध्यापत होते रूपा है। चो कहता घाहिये कि भारतमें ही इसकी उपेक्षा
हो शी है। फथास्योकी वैज्ञानिक उप्तिमें सेस्कृतबत हौ मुख्य योगदान रहा है। यूणेपकी गोध-भाषा सेल्कृतसे अहुत मिलती थी। सभी सभ्य
भक्ते व्याकरणोंपर संस्कृतके ख्याक्रणका यहुत प्रभाव है । पयेनियरयि्िदप तथा झजटर्नरने अपने-अपने केददेये इसके अनेक अद्भूत उद्धरण
उपस्थित किये हैं।
३-बह्मावर्त मुख्यकूपते गङ्गाका उत्तरौ भाग है, जो विजनौरसे लेकर प्रयागतक और उत्तम नैमिषारण्यतक फैला है।