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प्रतिसर्गपर्व, प्रथम खण्ड ]

^ प्लेक्डबंझीय राजाओंका वर्णन « `

रडर

हवने कर उसने अध्यात्मतत्वका शन प्राप्त किया।

म्लेच्छधर्मपरायण वह सझरीर स्वर्ग चला गया। इसने द्विजोकि

आयधार-विचास्का पालन किया और देवपूजा भी की, फिर भी

यह विद्वानेंके द्वारा म्लेच्छ ही कहा गया। मुनियोकि द्वारा

विष्णुभक्ति, अप्रिपूजा, अहिंसा, तपस्या और इन्द्रियदमन--ये

स्लेच्छोंके धर्म कहे गये हैं। हनूकका पुत्र मतोष्छिल हुआ।

उसका पुत्र ल्मेमक हुआ, अन्तमे उसने स्वर्ग प्राप्त किया।

ठदनन्तर उसका न्यूह नामक पुत्र हुआ, न्यूहके सौम, शम और

भाव--ये तीन पुत्र हुए। न्यूह आत्पध्यान-परायण तथा

विष्णुभक्त धा । किसी समय उसने स्वपे विष्णुका दर्जन प्राप्त

किया और उन्होंने न्यूइसे कहा--“वत्स ! सुनो, आजसे

सातकें दिन प्रलय होगा । हे भक्तश्रेष्ठ ! तुम सभी लोगेकि साथ

वपर चढ़कर अपने जीवनकी रक्षा करना । फिर तुम वहत

विख्यात व्यक्ति बन जाओगे। भगवान्‌क्की कात मानकर उसने

एक सुदृढ़ नौकाका निर्माण कराया, जो तीन सौ हाथ लम्बी,

पचास हाथ चौड़ी और तीस हाथ ऊँची थी और सभी जीवॉसे

समन्वित थी। विष्णुके ध्याने तत्र हतः हुआ वह अपने

यैदाजोके साथ उस नावपर चढ़ गया। इसी बीच इद्धदेयने

चालीस दिनॉतक लगातार मेघोंसे मूसलधार युष्टि करायी ।

सम्पूर्ण भारत सागरोंके जलसे प्रायित हो गया। चारों सागर

मिल गये, पृथ्वी डूब गयी, पर हिमालय पर्यतका यदरी-शेत्र

पानीसे ऊपर हो रहा, वह नौ डूब पाया। अदास हजार

ब्रह्मवादी मुनिगण, अपने झिष्योंके साथ वहाँ स्थिर और

सुरक्षित रहे। न्यूह भी अपनी नौकाके साथ वहीं आकर यच

गये। संसास्के दोप सभी प्राणी विनष्ट हो गये। उस समय

सुनियोंनि विष्णुमायाकी स्तुति की।

घुनियोने कहा--'महाकालीको नमस्कार है, माता

देवकीको नमस्कार है, विष्णुपत्री महालक्ष्यीको, राधादेवौको

ओर रेवती, पुष्पवती तथा स्वर्णवतोक्ो नमस्कार है। कामाश्षो,

माया और साताको नमस्कार है । महावायुके प्रभावसे-मेघोंके

भयेकर शब्दसे एवं उप्र जलकी घाराओंसे दारुण भय

उत्पन्न हो गया है। भैरवि ! तुम इस भयते हम किकरोंक रक्षा

करो।' देवीने प्रसन्न होकर जलकी वृद्धिकों तुरेत दान्त कर

दिया। हिमालयकी प्रान्तवर्तोी शिषषिणा नामकी भूमि एक वर्षमें

जलके हट जानेपर स्थलके रूपमे टीखने लगी। न्यूह अपने

वराके साथ उस भूमिपर आकर निवास करने लगा।

झौनकने कहा--मुनीश्चर ! प्रलयके बाद इस समय

जो कुछ वर्तमान है, उसे अपनी दिव्य दृष्टिके प्रभावसे जानकर

यतल्पयें।

सुतजी बोले--शौनक! व्यूह नामका पूर्वनिर्दिष्ट

म्तेच्छ राजा भगवान्‌ विष्णुकी भक्तिमें लीन रहने खगा, इससे

भगवान्‌ विष्णुने प्रसन्न होकर उसके वैशकी युद्धि की । उसने

वेद-बाक्य और संस्कृतसे बहिर्धृत म्लेच्छ-भाषाका विस्तार

किया और किकी यूद्धिके लिये ब्राह* भाषाको

अपशब्दवाली भाषा बनाया और उसने अपने तीन पुष्नों--

सीप, शाम तथा भावके नाम क्रमशः सिम, हाम तथा याकूत

रख दिये। याकूतके सात पुत्र हुए--जुम्न, माजूज, माटी,

यन्मन, तूबलोम, सक तथा तौरास। इन्दकि नामषर

अलग-अलग देझ प्रसिद्ध हुए। जुप्रके दस पुत्र हुए। उनके

नामोंसे भी देश प्रसिद्ध हुए। यूनानक्मै अलग-अलग संतानें

इत्मैश, तर्लीश, किती और हृदा--इन चार नामॉसे प्रसिद्ध

हुईं तथा उनके नामसे भी अलग-अलग देश बसे। न्यूहके

द्वितीय पुत्र हाम (शम) से चार पुत्र कहे गये रै- कुरा,

मिश्र, कूज, कनआँ। इनके नामपर भी देश प्रसिद्ध है। कुशके

छः पुत्र हृए-- सवा, हवौल, सर्वत, उरगम, सवतिका और

महाबल्ी निमरूङ । इसकी भी कलन, सिना, ररक, अद

यायुन और रसतादेशक आदि संताने हुई। इतनी बातें

ऋषियोंकों सुनाकर सूतजी समाधिस्थं हो गये।

बहुत वकि कद उनकी समाधि खुली और ये कहने

लो-- ऋषियों ! अब यै न्यृहके ज्येष्ठ पुत्र रजा सिमके

वाकः वर्णन करता हूँ, म्लेच्छ-राजा सिमने पाँच सौ वर्षोतक

अलीभाति राज्य किया। आर्कन्सद उसका पुत्र था, जिसने चार

सौ चौनस बर्षोतक राज्य किया । उसका पुत्र सिंहल हुआ,

उसने भौ चार सौ साट वर्षोतक राज्य किया। उसका पुत्र इत्र

हुआ, उसने पिताके समान ही राज्य किया। उसका पुत्र फलज

हुआ, जिसने दो सौ चालीस वर्षोंतक राज्य किया । उसका पुत्र

# ब्राहौको लिपियोका मूल म्दना गया है। राजा यके इदवमे स्वयं प्रत्रिष्ट होकर भगवान्‌ विष्ुने उसकी बुद्धिको प्रेरित किया, इसलिये

उससे अपनी लिपिको उल्टी गठिसे दाहितेसे श्रायों आऐर प्रकाशित किया, जो उर्दू, अरबी, फारसी और हिव लेसन-प्रक्रियामें टेखी अनै है।

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