* पुराण परम॑ पुष्यं भविष्यं सर्वसलौल्यदम् « { संक्षिप्त भविष्यपुराणाडू
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और चक्षुके पुत्र सुखबत्त (सुखावल) हुए । सुखबन्तके पुत्र॒निरमित्रके पुत्र क्षेमक हुए। महाराज क्षेमक राज्य छोड़कर
पयव हुए । पारिप्रवके पुत्र सुनय, सुनयके पुत्र मेधावी, उनके कल्प्रपद्राम चले गये। उनकी मृत्यु स्लेच्छोंके दार हुई।
नृषज्ञय और उनके पुत्र मृदु हुए । मृदुके पुत्र तिम्मज्योति, उनके नास्दजीके उपदेश एवं सत्पयाससे उनके एक पुत्र हुआ,
यूहद्रथ और उनके पुत्र वसुदान हुए। इनके पुत्र शतानीफ हुए... जिसका नाम प्रद्योत हुआ। राजा प्रद्योतन म्लेच्छ यञ्च किया,
उनके पुत्र उदयन, उदयनके अहीनर, अहीनरके निरमित्र तथा जिसमें म्लेच्छोंका विनाश हुआ। (अध्याय ३)
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प्लेच्छर्वरीय राजाओंका वर्णन तथा स्लेच्छ-भाषा आदिका संक्षिप्त परिचय
शौनक पूछा--ब्रिकालज्ञ महामुने ! उस प्रद्योतते
कैसे म्लेष्छ-यज्ञ किया ? मुझे यह सब बतलायें।
श्रीसूतजीने कह्ा--महामुते ! किसी समय क्षेमकके
पुत्र प्रद्योत हस्तिनापुरमें विशजमान थे। उस समय नारदजी
यहाँ आये। उनको देखकर प्रसन्न हो राजा प्रचोतने विधिवत्
उनकी पूजा की । सुजपूर्वक बैठे हुए मुनिने राजा प्रघोत्से
कहा--'म्लेच्डेंके द्वारा मारे गये तुह पिता यमस्प्रेककों
चले गये हैं। म्लेच्छ-यज्ञके प्रभावसे उसकी नरकसे मुक्ति होगी
और उन्हे स्वर्गीय गति प्राप्त होगी। अतः तुम ग्लेच्छ-यज्ञ
कयो ' यह सुनकर राजा प्रद्चोतकी आँखें ऋ्रोधसे लाल हो
गयों। तब उन्होंने वेदश्च ब्राह्मणोंको बुलाकर कुरुक्षेत्रम
ग्लेच्छ-यज्ञको तत्काल आरम्भ करा दिया। सोलह योजनमें
चतुष्केण यज्ञ-कुण्डका निर्माणकर देवताओंका आवाहनकर
उस जाने म्लेब्छोंफरा हनन किया। ब्राह्मणोंको दक्षिणा देकर
अभिषेक कराया। इस यह्ञके प्रभावते उनके पिता क्षेमक
स्वरगस्थेक चले गये । तभीसे राख प्रद्योत सर्वत्र पृथ्वीपर
म्लेच्छहत्ता (म्लेच्छॉंफों मारेवाले) नायसे प्रसिद्ध हो गये।
उनका पुत्र केदकान् नमसे प्रसिद्ध हुआ ।
म्लेखउरूपमें स्वयै कलिने ही राज्य किया धा । अनन्तर
कलने अपनो पत्नीके साथ नारायणकी पूजाकर दिव्य स्तुति
की; स्तुतिसे प्ररच्र होकर नारायण प्रकट हो गये। करिने उनसे
कहा-- हे नाथ ! राजा वेदवान्के पिता प्रद्योतने मेरे स्थानक
विनादा कर दिया है और मेरे प्रिय म्लेच्छोंको नष्ट कर दिया है।'
भगवान्ते कहा-- कले ! कर्द कररणोंसे अन्य
युगोंकी अपेक्षा तुम श्रेष्ठ हो। अनेक रूपये धारणकर मैं
तुम्हारी इच्छाकों पूर्ण करूँगा। आदम नामका पुरुष और
हव्यवती (हौवा) नामकी पत्नोसे स्लेच्ठवंशोंकी वृद्धि
करनेवाले उत्पन्न होंगे। यह कहकर श्रीहरि अन्तर्धान हो गये
और कलियुगको इससे बहुत आनन्द हुआ। उसने नीरप्रचल
पर्वतपर आकर कुछ दिनॉतक निवास किया।
जा वेदबनकों सुनन्द नामका पुत्र हुआ और बिना
संततिके ही यह मृत्युको प्राप्त हुआ। इसके बाद आर्यावर्त देश
सभी प्रकार क्षीण हो गया और धीरे-धीरे म्येच्छकय बल बढ़ने
लगा। तथ मैमिषारण्यनियासी अठासी हजार ऋषि-मुनि
हिमालयपर चले गये और वे बदरी-क्षेत्रमें आकर भगवान्
किष्णुकी कथा-वार्तामें संलग्न हो गये।
सुतजीने पुनः का ~~ मुने ! द्वापर युगके सोलह हजार
वर्ष शेष कारूमें आय -देदाकी भूमि अनेक कीर्तियोंसे समन्वित
रही; पर इतने समयमें कहीं शुद्र और कहीं वर्णसंकर राजा भी
हुए। आठ हजार दो सौ दो यर्ष द्वापर युगके शेष रह जानेपर
यह भूमि घ्लेच्छ देशके राजाओंके प्रभावमें आने लग गयी।
म्लेष्छेका आदि पुरुष आदम, उसकी लौ हव्यवती (हौवा)
दोनों इद्धियोंका दमनकर ध्यानपरायण रहते थे। ईश्वरे प्रदान
जगरके पूर्वभागमें चार कोसवास्पर एक रमणीय महावनका
निर्माण किया। पापवृक्षके नीचे जाकर कलियुग सर्परूप
घारणकर् हौवाके पास आया । उस धूर्तं कलिने हौवाको धोखा
देकर गूल्मके पत्तोमें लपेटकर दूषित वायुयुक्त फल उसे खिला
दिया, जिससे विष्णुकी आज्ञा भंग हो गयी। इससे अनेक पुत्र
हुए, जो सभी म्लेच्छ कलये । आदम पीके साथ स्वर्ग
चत्म गया । उसका श्वेत नामसे विख्यात श्रेष्ठ पुत्र हुआ,
जिसकी एक सौ बारह वर्धकी आयु कही गयी है। उसका पुत्र
नुह हुआ, जिसने अपने पितासे कुछ कम ही वर्ष शासन
किया। उसका पुत्र करैनादा था, जिसने पितामहके समान राज्य
किया। महल्लल नामक उसका पुत्र हुआ, उसका पुत्र मानगर
हुआ। उसको विरद नामको पुत्र हुआ और अपने नामसे नगर
बसाया। उसका पुत्र विष्णुधक्तिपपयण हनूक हुआ । फलका