प्रतितर्गपर्व, प्रथम खण्ड ]
* द्वापरयुगके खन्त्र॒बंशीय राजाओंका तृत्तान्त +
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भूतलपर आये और उन्होंने राजा धनुरदीघिको जीतकर पृथ्वीपर
झासन किया। शक्रहोत्रके घृताचीसे हस्ती नामक पुत्र उत्पन्न
हुआ। हस्तीने परवत हाथीके बश्चेपर आरूढ़ होकर पश्चिमे
अपने नामसे हस्तिना नमक नगरीका निर्माण किया । यह दस
सुरथके पुत्र विदूरथ हुए। विदूरथके पुत्र सार्वभौम, इनके
जयसेन और उनके पुत्र अर्णव हुए। महाराज अर्णकका
सनक चारों समुद्रतक था और इन्होंने अपने पिताके
तुल्य कौतक ग़ज्य किया। अर्णवके पुत्र अयुतायु हुए,
योजन विस्तृत है तथा स्वर्गक़॒के तटपर अवस्थित है। वहां जिन्होंने दस हजार वर्षोतक राज्य किया। अयुतायुके पुत्र
उन्होंने दस हजार वर्षोतक निवासकर राज्य किया। महाराज
हस्तीके पुत्र अजमीद, अजमीदके पुत्र रक्षपाल, रक्षपालके पुत्र
सुझम्यर्ण और उनके पुत्र कुरु हुए। इन्द्रके वरदानसे थे सदेह
स्वर्ग चले गये।
उस समय मथु सात्वत-वैक्षमें यृष्णि नामके एक
महाबली राजा हुए। उन्होंने भगवान् विष्णुके वरदानसे पाँच
हजार यर्षोतक सम्पूर्ण राज्यको अपने अधीन रखा। राजा
यूष्णिके पुत्र निरावृति हुए, निरावृत्तिके पुत्र दशारी, दशारीके पुत्र
वियामुन और बियामुनके पुत्र जीमूत और इनके पुत्र विकृति
हुए। विकृतिके पुत्र भीमरथ, उनके पुत्र नवरथ और नवश्थके
दार्थ हुए। उनके पुत्र शकुनि, उनके कुम्भ और कुशुम्भके
पुत्र देवरथ हुए। देवरथके पुत्र देवक्षेत्र, उनके पुत्र मधु और
मधुक पुत्र नवरथ और उनके कुरुवत्स हुए। इन सभी लोगोंने
अपने-अपने पिताके तुल्थ वर्षोतक राज्य किया। कुरुवत्सके
पतर अनुरय, उनके पुरहोत्र और पुर्कोत्रके पुत्र विचित्राड् हुए,
उनके सात्वतवान् और उनके पुत्र भजमान हुए। उनके पुत्र
विदूरथ, उनके सुरभक्त और सुरभक्तके सुमन हुए। इन सभीने
अपने-अपने पिताके तुल्य कौतक राज्य किया । सुमनाके पुत्र
ततिक्षेत्र, उनके स्वायम्भुव, उनके हरिदीपक और हरिदीपकके
देवमेथा हुए। इन सभीने अपने-अपने पिता तुल्य वर्षोतक
राज्य किया । देवमेधाके पुत्र सुरपाल हुए।
ड्ापरके तृतीय चरणके समास्न होनेपर देवराज इत्रकी
आज्ञसे आयी सुकेदी नामकी अप्सराके स्वामी कुरु सत्य हुए।
इन्होंने कुरुक्षेत्रका निर्माण किया जो बीस योजन विस्तृत है।
विद्वानेने उसे पुण्यक्षेत्र बताया है। महाराज कुरुने बारह हजार
अर्षोतक राज्य किया। इनके पुत्र जह्ु, जूके सुरथ और
अक्रोधन, उनके ऋक्ष, उनके पुत्र भीमसेन और भीमसेनके पुत्र
दिल्मेप हुए। इन सभी राजाओने अपने-अपने पिताके तुल्य
यथौतक राज्य किया। दिरीपके पुत्र प्रतीप हुए, इन्होंने पाँच
हजार वर्षोत्क शासन किया। प्रतीपके पुत्र शन्तनु. हुए और
उन्होंने एक हजार वर्षोतक राज्य किया, उन्हे विचित्रवीर्य
नामका पुत्र उत्पन्न हुआ, जिन्होंने दो सौ वर्षोतक राज्य किया ।
उनके पुत्र पाणडु हुए, उन्होंने पाँच सौ वर्षोतक राज्य किया,
उनके पुत्र युधिष्ठिर हुए, उन्होंने पचास वर्षोतक राज्य किया।
सुयोधन (दुर्योधन) ने साठ कतक राज्य किया और
कुरुक्षेत्रे (युधिष्ठिरके भाई भीमसेन)के दवाय उसकी
मृत्यु हुई।
प्राचीन कालमें दैत्योंका देवताओंद्वारा भारी संहार हुआ
था। ये ही सब दैत्य शन्तनुके ग़ज्यमें पुनः भूलोकमें उत्पन्न
हुए। दुर्योधनकी विदल सेनाके भारसे परिव्याप्त वसुन्धरा
इच्धकी झरणमें गयी, तब भगवान् श्रीहरिका अवतार हुआ।
सौरि असुदेयके द्वारा देबकीके गर्भसे उन्होंने अवतार लिया। ये
एक सौ पैंतीस वर्षोतक' पृथ्वीपर रहकर उसके बाद गोल्प्रेक
चले गये । भगवान् श्रीकृष्णका अवतार ट्रापरके चतुर्थ चरणके
अन्तमे हुआ था ।
इसके बाद हस्तिनापुरमें अभिमन्युके पुत्र परीक्षिते राज्य
किया। परीश्छित्के राज्य करनेके बाद उनके पुत्र जनमेजयने
राज्य किया । तदनन्तर उनके पुत्र महाराज दातानीक पृथ्वीके
शासक हुए । उनके पुत्र यज्ञदत्त (सहसतानीक) हुए। उनके पुत्र
निश्षक्र' (निचक्नु) हुए । उनके पुत्र उष (उष्ण) पाख हुए।
उनके पुत्र चित्ररथ और चित्ररथके पुत्र धृतिमान् ओर उनके पुत्र
सुषेण हुए, सुषेणके पुत्र सुनीथ, उनके मपल, उनके चक्षु
१-विभिन्न पुराने पगयान् श्रकृष्नकी स्थितिकरलकर उल्लेख कुड अन्तरमे प्राप्त होता है, विशेषकर महाभारत, घागवत, हरियैदा, विष्णुपुराण
सथो ब्रह्मवैवर्तपुरण और गर्मशंहितायें भी उनका विस्तृत चरित्र प्त होता है। अशिक स्थतलोपर उनका स्थितियगल एक सौ पचस वर्ष हो निर्दि्ट है
२-इनके शासनकालमें ही गङ्गा हश्तिनापुए्के अधिकोस भागे बह ते गवौ । अतः इन्होंने कौझाम्बीकों राजधानी बनाया, जो प्रयागसे चार
योजन पश्चिम धौ । (किध्णुपुराण ४। २१)