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* पुराणौ परमं पुण्यं भविष्यं सर्वसौख्यरम् «
{ संक्षिप्त भविष्यपुराणाडु
पर्वतॉसहित समुद्रम विन रह । झंझावातोकि प्रभावसे समुद्र
सूख गया, फिर महर्षि अगस्त्थके तेजसे भूमि स्थलीभूत होकर
सम्पन्न हो गयी। भगवान् सूर्यदेवकी आज्ञासे महाराज संवरण
महागनी तपती, महर्षि वसिष्ठ ओर तीनों वर्णोकि ल्मेगोके साथ
दीखने रगी और पाँच यर्षके अंदर पृध्वी वृक्ष, दूर्या आदिसे पुनः पृथ्वीपर आ गये। (अध्याय २)
ड्वापर युगके चन्द्रवंशीय राजाओंका वृत्तान्त
महर्षि झौनकने पूछा--लोमहर्पणजी ! आप यह
बताइये कि महाराज संवरण" किस समय पृथ्वीपर आये और
उन्होंने कितने समयतक राज्य किया तथा द्वापरे कौन-कौन
राजा हुए, यह सब भी बतायें।
सुतजी यले ~ मह्यै ! महाराज संयरण भाद्रपदके
कृष्ण पक्षकी त्रयोदशी तिथिको शुक्रवास्के दिन मुनियोंके साथ
परतिष्ठानपुर (ससी) में आये। विश्वकर्मान यहाँ एक ऐसे
विशाल प्रासादका निर्माण किया, जो ऊँचाईमें आधा कोस या
डेढ़ किल्प्रेमीटरके कगभग था। महाराज संवरणने पाँच योजन
या बीस कोसके क्षेत्रमें प्रतिष्ठानपुरको अल्पन्त सुन्दरता एवं
स्वच्छतापूर्वक बसाया । एक ही समयमे (चद्धमाके पुत्र)
बुधके वेशमे उत्पन्न प्रसेन और यदुवदीय राजा सात्वत शूरसेन
मधुरा (मधुरा) के शासक हुए। स्लेच्छवंशीय दमश्रुपाल
(दाढ़ी रखनेवाला) मरुदेश (अरब, ईरान और ईराक) के
शासक हुए । क्रमशः प्रजाओंके साथ ग्जाओंकी संख्या बढ़ती
गयी। राजा संवरणने दस हजार वर्षोतक राज्य किया । इसके
छद उनके पुत्र अर्चाज्ञ हुए, उन्होंने भी दस हजार वर्षोत्तक
दासन किया। उनके पुत्र सूर्यजापीने पिताके शासनकालके
आधे समयतक राज्य किया। उनके पुत्र सौरयज्ञपरायण
सूर्ययज्ञ हुए। उनके पुत्र आदित्यवर्धन, आदित्यवर्धनके पुत्र
ड्ादझात्मा और उनके पुत्र दिवाकर हुए। इन्होंने भी प्रायः
अपने पितासे कुछ कम ही दिनॉतक ग़ज्य किया। दिवाकरके
पुत्र प्रभाक और प्रभाकरके पुत्र भार्वदात्या हुए।
भास्वदात्माके पुत्र विवस्व, उनके पुत्र हरिदश्चार्चन और उनके
पुत्र वैकर्तन हुए। यैकर्तनके पुत्र अेंश्टिमानू, उनके पुत्र
मार्तण्डबत्सछल और मार्तण्डवत्सलके पुत्र मिहिरार्थ तथा उनके
अख्णफेषण हुए। अरुणपोषणके पुत्र द्युमणि, द्युमणिके पुत्र
तरणियज्ञ और उनके पुत्र मैत्रेष्टिवर्धन हुए । मैत्रेष्टिवर्धनके पुत्र
चित्रभानूर्जक, उनके चैरेचन और वैरोचनके पुत्र हंसन््यायी
हुए। उनके पुत्र वेदप्रवर्धन, वेदप्रवर्धनके पुत्र सावित्र और
इनके पुत्र धनपाल हुए। धनपालके पुत्र म्लेच्छहन्ता,
म्लेच्छहन्ताके आनन्दवर्धन, इनके धर्मपाल और धर्मपालके
पुत्र ब्रह्मभक्त हुए। उनके पुत्र ब्रहमोष्टिवर्धन, उनके पुत्र
आत्पप्रपूजक हुए और उनके परमेष्टी नामक पुत्र हुए।
परमेष्टीके पुत्र हैरण्यवर्धन, उनके धातृयाजी, उनके
विधातृप्रपूजक और उनके पुत्र अरुहिणक्रतु हुए। ट्रहिणक्रतुके
पुत्र वैरेच्य, उनके पुत्र कमलपरसन और कमलासनके पुत्र
शामयर्ती हुए। शमवर्तकि पुत्र श्राद्धदेव और उनके पितृवर्धन,
उनके सोमदत्त और सोमदत्तके पुत्र सौमदत्ति हुए। सौमदत्तिके
पुत्र सोमवर्धन, उनके अवतेस, अवतंसके पुत्र प्रतेस और
प्रतेसके पुत्र परातंस हुए। परातंसके पुत्र अयतेस, उनके पुत्र
समातंस, उनके पुत्र अनुतंस और अनुतंसके पुत्र अधितंस
हुए। अधितेसके अभितंस, उनके पुत्र समुत्तस, उनके तैस
और तंसके पुत्र दुष्यन्त हुए।
महाणज दुष्यन्तकी पत्नी शकुन्तलासे भरत नामके पुत्र
हुए, जो सदा सूर्यदेवकी पूजामें तत्पर रहते थे। महाणज
भरतने महामाया भगवतोकी कृपासे सम्पूर्ण पृथ्वीपर छत्तोस
हजार वर्षोतक चक्रवर्ती सम्राटके रूपमे राज्य किया और उनके
पत्र महाबल हुए । महाबलके पुत्र भरद्राज हुए । भरद्वाजके पुत्र
मन्युमान् हुए, जिन्होंने अद्वारह हजार वर्षोतक पृथ्वीपर शासन
किया । उनके पुत्र बृहत्तर, उनके पुत्र सुहोत्र और सुहोत्रके पत्र
वीतिहोत्र हुए, इन्होंने दस हजार वर्षोतक राज्य किया।
जीतिहोत्रके पुत्र यज्ञहोत्र, यज्ञहोत्रके पुत्र शक्रहोत्र हुए।
इन्द्रदेबने प्रसन्न होकर इन्हें स्वर्ग प्रदान किया । उस समय
अयोध्यामें महाबली प्रतपिनद्र नामक राजा हुए, उन्होंने दस
हजार वर्षोतक भारतपर शासन किया। इनके पुत्र मण्डलीक
हुए । मण्डलीकके पुत्र विजयेनद्र, विजयेनदरके पुत्र धनुर्दीप्त हुए।
महाराज शक्रषटत्र इन्द्रकी आज्ञासे घृताचीके साथ पुनः
१-इनकी विस्तृत कथा महाभारतके आदिपर्व (ॐ ९४) में विस्तारसे, कितु १७२ तक प्रायः आती रही है।