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२०५५

* पुराण परमं पुण्यं भविष्यं सर्वसौख्यदम्‌ «

{ संक्षिप्त भविष्यपुराणाङ््‌

ककि किक ककि कोको तिकि कि ककि

हृदयमें हालाहल विष धारण करनेवाले, कहते कुछ और है

तथा आचरण कुछ और ही काते है--ये दोनों विधम-संशक

दोषयुक्त व्यक्ति कहे जाते हैं। ३. सोक्षकी चिन्ता छोड़कर

सांसारिक चित्ताओंमें श्रम करनेवाले, हरिकी सेवासे रहित,

प्रयागमें रहते हुए भी अन्यत्र खान करनेवाले, प्रत्यक्ष देवको

छोड़कर अदृष्टकी सेवा करनेवाले तथा शास्त्रोंके सार-तत्त्वको

न जाननेबाले--ये सभी पशु-संज्ञक दोषयुक्त व्यक्ति हैं।

४, बलसे अथवा कल -छदयसे या मिध्या प्रेमका प्रदर्शन कर

ठगनेवाले व्यक्तिको पिशुन दोषयुक्त कहा गया है। ५, देव-

सम्बन्धी और पित्‌-सम्बन्धौ क्मोंमें मधुर अन्नकों व्यवस्था

रहते हुए भौ म्न और तिक्त अन्नका भोजन करनेवाला

दुर्बुद्धि मानव कृपण है, उसे न तो स्वर्ग मिलता है और न मोक्ष

ही । जो अप्रसन्न मनसे कुत्सित वस्तुका दान करता एवं क्रोधे

साथ देवता आदिको पूजा करता है, वह सभी धर्मस बहिष्कृत

कृण कहा जाता है। निर्दुष्ट होते हुए भौ शुभका परित्याग

तथा शुभ शरीरका विक्रय करनेवाला कृपण कहत्वता है।

६, माता-पिता और गुस्का त्याग करनेवात्म, पवित्राचार-

रहित, पिताके सम्मुख निःसंकोच भोजन करनेवाला, जौवित

पिता-माताका परित्याग करनेवाल्म्र, उनकी कभी भी सेवा न

करनेवात्म तथा होम-यज्ञादिका स्म्ेप करनेवाला पापिष्ठ

कत्ता है। ७. साधु आचरणका परित्याग कर झूठी सेवाका

प्रदर्शन करनेवाले, वेक्यागामी, देव-धनके द्वारा जीवन-यापन

करनेवाले, भायकि व्यभिचारद्वारा प्राप्त धनसे जीवन-यापन

करनेवाले या कन्याकों बेचकर अथवा स्त्रीके घनसे जीवन-

यापन करनेवाले--ये सब नष्ट-संज्ञक व्यक्ति हैं--ये स्वर्ग

एवं मोक्षके अधिकारी नहीं हैं। ८. जिसका मन सदा क्रु

रहता है, अपनी हीनता देखकर जो क्रोध करता है, जिसको

महि कुटिल हैं तथा जो क्रुद्ध और रुष्ट स्वभाववात्म है- देसे ये

पाँच प्रकारके व्यक्ति रुष्ट कहे गये है । ९, अकार्ये या निन्दित

आचारे ही जीवन व्यतीत करनेकला, धर्मकार्यम अस्थिर,

निद्रालु, दुर्व्यसन आसक्त, मद्यपायी, खी -सेवी, सरव दुष्टोके

साथ वार्तालाप करनेवाछा--ऐसे सात प्रकारके व्यक्ति दुष्ट

कहे गये है । १०. अकेले ही मधुर-मिष्टान्न भक्षण करनेवाले,

कक, सज्जनोंके निन्दक, शूकरके समान वृत्तिवाले-- ये सब

पुष्ट संज्ञक व्यक्ति कहें जति हैं। ११. जो निगम (वेद),

आगम (तन्त्र) का अध्ययन नहीं करता है और न हने सुनता

ही है, वह पापात्मा हृष्ट कहा जता है । ६२-१३. श्रुति और

स्मृति ब्राह्मणोकि ये दो नेत्र हैं। एकसे रहित व्यक्ति काना और

दोनोंसे हीन अचा कहा जाता है'। ४. अपने सहोदरसे

विवाद करनेवाला, माता-पिताके लिये अग्रिय यचन

बोलनेवात्म खण्ड कहा जाता है। १५, शास्त्रकी निन्दा

करनेवाला, चुगलखोर, राजगामी, शुद्रसेवक, शुद्रकी पत्नीसे

अनाचरण करनेवात्तर, शूद्रके घरपर पके हुए अन्नको एक बार

भी खानेवात् या शद्रके घरपर पाँच दिनोंतक निवास

करनेवात्म व्यक्ति चण्ड दोषवाला कहा जाता हैं। १६. आठ

प्रकारके कुठोसे समन्वित, त्रिकुष्ठी, शार्पपें निन्दित व्यक्तियोंके

साध वार्तालाप करनेवाल्थ अधम व्यक्ति कुष्ठ-दोषयुक्त कहा

जाता है। १७, कीटके समान भ्रमण करनेवाला, कुत्सित-

दोषसे युक्त व्यापार करनेवाला दत्तापहारक कहा गया है।

१८. कुपष्डित एवं अज्ञानी होते हुए भी धर्मका उपदेश

देनेवात्थ यक्ता है। १९. गुरुजनॉकी वृत्तिको हरण करनेकी

चेष्टा करनेवात््र तथा काज्ञी-निवासी व्यक्ति यदि बहुत दिन

काशीको छोड़कर अन्यत्र निवास करता है, चह कदर्य

(कंजूस) है। २०, मिथ्या क्रोधका प्रदर्शन करनेवात्म तथा

राजा न होते हुए भी दण्ड-विधान करनेवात्म व्यक्ति दुष्ट

(उदष्ट) कहा जाता है। २६. ब्राह्मण, राजा और

देव-सम्बन्धी घनका हरण कर, उस घनसे अन्य देवता या

ब्राह्मणोंको संतुष्ट करनेवाला या उस धनका भोजन या अन्नको

देनैवात्पर व्यक्ति खरके समान नीच है, जो अक्षर-अभ्यासमें

तत्पर व्यक्ति केवल पढ़ता है, किंतु समझता नहीं,

व्याकरण-शाखशझून्य व्यक्ति पशु है, जो गुरु और देवताके आगे

कहता कुछ है और करता कुछ और है, अनाचारी-दुराचारी है

वह नीच कहा जाता है। २२. गुणवान्‌ एवं सन्ने जो

दोषका अन्वेषण करता है वह व्यक्ति खट कहत्यता है।

२३. भाग्यहीन व्यक्तिसे परिहासयुक्त वचन योखनेवात्य तथा

चाण्डालॉके साथ निर्लूज्ज होकर वार्तात्म्रप करनेवाला वाचाल

कहा जाता है। २४. पक्षियोंके पालनेमें तत्पर, बिल्ल्मैके द्वारा

आनीत भश्ष्यकों बाँटनेके बहाने बंदरकी भाँति स्वयं भक्षण

१-शरुतिः स्मृतिश्च विष्णा र्यने द्वे विनिर्सिते। एकेस विकलः कणो द्वाध्यामन्य: प्रकीर्तित: ॥ (मध्यमपर्च, ह।५॥ ५७)

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