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* पुराणं परमं पुण्यं भविष्यं सर्वसौरुयदम् +
[ संक्षिप्त भविष्यपुराणाङ्क
कामना करनेवाल्मा पुत्र, अर्थी कामना करनेवाला अर्थ,
विद्या-प्रापिकों कामना कःनेवात्पर विद्या और राज्यकी कामना
करनेवाला राज्य प्राप्त करता है। पुरुष हो या स्त्री इस व्रतको
चविधिपूर्वक सम्पन्न कर परमगतिको प्राप्त कर लेते हैं। उनके
लिये तीनों ल्प्रेकॉमें कुछ भी दुर्लभ नहीं है। उनके कुलमें न
कोई अधा झेता है, न कुष्ठी, न नपुंसक और न कोई विकत्यड्
तथा न निर्धन। लोधवदा, प्रमादवदा ख अज्ञानवदा यदि
ब्रत-भड़ हो जाय तो तीन दिनतक भोजन न करें और मुण्डन
कराकर प्रायक्षित करे । पुनः तके नियमोंकों ग्रहण करे ।
सुपन्तुजीने कहा--राजन् ! चै्रादि बारह मासोंकी
झुक सप्तमियोमें गोमय, यावक, सुखे पत्ते, दूध अथवा
भिश्वान्न भक्षण कर अथवा एकभुक्त रहकर उपवास करना
चाहिये। भगवान् सूर्यको पृजा कमलत-पृष्प, नाना प्रकारके
गन्ध, चन्दन, गुग्गुल धृष आदि विविध उपचारोंसे करनी
चाहिये तथा इन्हीं उपचारोंसे श्रेष्ठ ब्राह्मणोंकी भी पूजा कर उन्हें
दक्षिणा देकर संतुष्ट करना चाहिये। इससे ख़तीकों अपार
दक्षिणाबाले यज्ञोका फल प्राप्त होता हैं और वह सूर्यत्मेकमें
पूजित होता है । चैत्रादि बारह महोनोंमें पूजित होनेवाले
भगवान् सूर्यके बारह नाम इस प्रकार हैं--चैश्नमें विष्णु,
वैशाखमें अर्यमा, ज्येषटम विवस्वान्, आपाढ़में दिवाकर,
भार्गव, मार्गशीर्षमें मित्र, पौषमें पृषा, साधमें भग तथा
फाल्गुने त्वष्टा ।
(अध्याय २०८-२०९)
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अर्कसम्पुटिका-सप्तमीत्रत-विधि, सप्तमी-ब्रत-माहात्म्यमें कौथुमिका आख्यान
सुमन्तुजी बोले--राजन् ! फाल्गुन मासके श
पक्षकी सप्रपीकों अर्कसारपी कहते है । इसमें पष्ठीको उपवास
रहकर स्नान करके गन्ध, पुष्प, गुणुल, अर्क-पुष्प, शेत
करवीर एवं चन्दनादिसे भगवान् दिवाकरकी पूजा करनी
चाहिये । रविकी प्रसन्नताके लिये नैवेध्यमें गुडोदक समर्पित
करे । इस प्रकार दिनमें भानुको पूजा करके शातमें निद्रारहित
छोकर उनके मन्त्रका जप करे।
झतानीकने पूछा--मुने ! भगवान् सूर्यका प्रिय मन्त्र
कौन-सा है? उसे वतायै और घूप-दीफका भो निर्देश करें
जिससे उस मन्त्रका जप करता हुआ मैं दिवाकरकौ पूजा
कर सकुँ।
सुमन्तुजीने कहा--हे भसतश्रेष्ट ! में इस विधिक
सेक्षेपसे कह रहा हूँ। ब्रतोको चाहिये कि एक्यग्रचितत होकर
षदश्षर-मन्त्रका जप, होम तथा पृजा आदि सभौ कर्म
सम्पादित करें। सर्वप्रथम यथाशक्ति गायत्री-मन्त्रका जप
करना चाहिये। सौरी गायत्री-पन्र इस प्रकार है --' ॐ
भास्कराय चिषे सहस्रम धीपहि। तन्नः सूर्यः
प्रचोदयात् ।' इसे भगवान् सूर्यने खये का रै । यह सौरी
गायत्र मन्त्र परम श्रेष्ठ है। इसके श्रद्धापूर्वकं एकः चार जप
केसे हौ मानव पवित्र हो जाता है, इसमें संदेह नहीं।
सप्रमीके दिन प्रातःकालू स्कााग्नचित्त हों इस मन्त्रका जप करे
और भक्तिपूर्वक भास्करकी पूजा करे। राजन् ! यथाशक्ति
श्रद्धापूर्वक श्रेष्ठ ब्राह्मणॉंको भोजन कराये। धनको कंजूसी न
करे । जो सूर्यके प्रति श्रद्धा-सम्पन्न नहीं हैं, उन्हें भोजन नहीं
कराना चाहिये। शाल्योटन, मुँग, अपूप, गुडसे यने पुर, दूध
तथा दहीका भोजन कराना चाहिये। इससे भास्कर तपत होते
हैं। भोजनके वर्ज्य पदार्थ इस प्रकार हैं--कुलथी, मसूर, सेम
तथा बड़ी। उड़द आदि,कड़वा तथा दुर्गग्धयुक्त पदार्थ भी
नियेदित नहीं करने चाहिये।
अर्कवृक्षकी "ॐ खस्वोल्काय नप्र:' से पूजा कर
अर्कपल्लबॉको ग्रहण करें । फिर सानकर् अर्क-पृष्पसे विकी
पूजा करके ब्राह्मणको भोजन कराये और "अर्को पे प्रीयताम'
सूर्यदेव मुझपर प्रसन्न हों, ऐसा कले । तदनन्तर देवताके सम्मुख
दाँत और ओठसे स्पर्श किये विना निम्नलिखित पत्रे
अर्कपुर् निगल जाय ।
ॐ अकंसष्युट भद्रं ते सुभद्र पेऽस्तृ चै सदा ।
ममापि कुरु भद्रं वै प्राञ्चनाद् चित्तो भव ॥
(ब्रा्पर्व २१५ १७३)
इस मन्रक्य जप करते हुए जो अर्कका ध्यान करता है
तथा अर्कसम्पुटका प्रान करता है, वह श्रेष्ठ गतिकों परार
होता है ।