ब्राह्मपर्व ]
+ सूर्यनारायणकी पिमा, अर्ध्य टान करनेका फल «
१८५
एवं नदिवोका पान करना ऐश्वर्य-प्राप्तिका सूचक है । जो स्वप्रमें
समुद्रको एवं नदीको साहसके साथ पार करता है, उसे
चिरजीयी पुत्र होता है । यदि स्वप्रमें कृमिका भक्षण करना
देखता है, तो उसे अर्थकी प्राप्ति होती है । सुन्दर अङ्गौको
देखनेसे त्परभ होता है । मङ्गरूकारी वस्तुओंसे योग होनेपर
आरोग्य और धनकी प्राप्ति होती है, इसमें कोई संदेह नही ।
भगवान् भास्कर अज्ञानाग्थकारकों दूरकर अपनी अचल
भक्ति प्रदान करते हैं, उनके विधिपूर्वक पूजन करनेके पश्चात्
सिर झुकाकर उन्हें प्रणाम कर प्रदक्षिणा करनी चाहिये। जो
व्यक्ति भगवान् भास्करकी पूजा करता है, वह उत्तम विमानमें
बैठकर सूर्यल्भेकको जाता है। विधिपूर्वक पूजन करनेके
पश्चात् उनके यथेष्ट मन्त्रोंका जप तथा हवन करना चाहिये ।
सप्तमीके दिन भगवान् सूर्यनारायणक्र विधिपूर्वकं पूजन कर
केवल आधी अञ्जलि जल पीकर त्रत करनेको उदकसपमी
कहते हैं, यह सदैव सुख देनेवाल्ली है।
(अध्याय १९४--१९७)
सूर्यनारायणकी महिमा, अर्ध्यं प्रदान करनेका फल तथा आदित्य-पूजनकी विधियाँ
महाराज हातानीकने कहा -- सुमन्तु मुने ! इस स्प्रेक्में
ऐसे कौन देवता हैं जिनकी पूजा-स्तुति करके सभी मनुष्य
झुभ-पुण्य और सुखका अनुभव करते हैं । सभौ धर्मामे श्रेष्ठ धर्म
कौन है ? आपके विचारसे कौन पूजनीय है तथा ब्रह्मा, विष्णु,
रुद्र आदि देवता किसको पूजा-अर्चना करते हैं और आदिदेव
किस देवताकों कहा जाता है ?
सुमन्तुजी बोले--राजन् ! मैं इस विषयमे भगवान्
वेदव्यास और भीष्पपितामहके उस संकादको कह रहा हूँ जो
सभी पापोंका नादा करनेवाला तथा सुख प्रदान करनेवाला है,
उसे आप सुनें।
एक समय गङ्गाके किनारे वेदव्यासजी बैठे हुए थे । वे
अग्रिके समान जाज्वल्यमान, तेजमें आदित्यके समान, साक्षात्
नाराणतुल्य दिखायी दे रहे थे । भगवान् वेदव्यास महाभारतके
कर्ता तथा वेदके अर्थोको प्रादित करनेवाले है ओर ऋषियों
तथा राजर्षियोकि आचार्य है, कुरुवश्के स्रष्टा हैं, साथ ही मेरे
परमपूज्य हैं। इन वेदव्यासजीके पास कृरुश्नेष्न महातेजस्वी
भीष्मजी आये ओर उन्हे प्रणाम कर कहने लगे।
भीष्मपितामहने पूछा--हे महामते परादारनन्दन !
आपने सम्पूर्ण वाड्रयकी व्याख्या मुझसे की है, कितु मुझे
भगवान् भास्करके सम्बन्धमें संशय उत्पन्न हो गया है । सर्वप्रथम
भगवान् आदित्यको नमस्कार करनेके पश्चात् ही अन्य
देवताओंकों नमस्कार किया जाता है । इसमे कया कारण है ? ये
भगवान् भास्कर कौन हैं ? कासि उत्पन्न हुए हैं ? हे द्विजश्रेष्ठ !
इस ल्त्रेकके कल्याणके लिये उस परम तत्त्वको कहिये। मुझे
जाननेकी बड़ी हो अभिस्मरषा है।
सं* धन पु, अ ७-
ख्यासजीने कहा--भीष्म! आप अवक्य हो
किंकर्तव्यविमृढ हो गये हैं, इसमें कोई संदेह नहीं है कि भगवान्
भास्करकी स्तुति, पूजन-अर्चन सभी सिद्ध और ब्रह्मादि देवता
करते है । सभी देवताओंमें आदिदेव भगवान् भारकरको ही कहा
जाता है। ये संसार-सागरके अन्श्रकारकों दूरकर सब सोकर और
दिज्ञाओंको प्रकाशित करते हैं। ये सभी धर्मि श्रेष्ठ धर्मस्वरूप
हैं। ये पूज्यतम हैं। ब्रह्मा, विष्णु, शिव आदि सभी देवता
आदिदेव भगवान् आदित्यकी ही पूजा करते हैं। आदित्य ही
अदिति और कदयपके पुत्र हैं। ये आदिकर्ता हैं, इसलिये भौ
आदित्य कहे जाते हैं। भगवान् आदित्यने ही सम्पूर्ण जगत्को
उत्पन्न किया है । देवता, असुर, गन्धर्व, सर्प, ग़क्षस, पक्षी आदि
तथा इन्द्रादि देवता, ब्रह्मा, दश्च, कदयप सभीके आदिकारण
भगवान् आदित्य हो है । भगवान् आदित्य सभी देवताओमें श्रेष्ठ
और पूजित है ।
भीष्पपितामहने पृष्ठा - पराशारनन्दन महर्षि व्यासजी !
यदि भगवान् सूर्यनारायणका इतना अधिक प्रभाव है तो प्रातः,
मध्याह ओर सायैकाल-- इन तीनों कालनेमे ाक्षसादि कैसे इन्हें
संत्रस्त करते है तथा भगवान् आदित्य फिर कैसे चक्रवत् घूमते
रहते हैं ? हे द्विजोत्तम ! राहु उन्हें कैसे ग्रसित करता है ?
व्यासजीने कहा--पिशाच, सर्प, डाकिनी, दानव आदि
जो क्रोधसे उन्मत्त हो भगवान् सूर्यनाययणपर आक्रमण करते हैं,
भगवान् सूर्यनारायण उन्हें प्रताडित करते हैं। यह पुहृर्तादि
कालस्वरूप भगवान् सूर्यका ही प्रभाव है। संसारमें धर्म एकमात्र
भगवान् सूर्यका आधार लेकर प्रवर्तित होता है । ब्रह्मादि देवता
सूर्यमण्डले स्थित रहते हैं। भगवान् सूर्यनारायणको नमस्कार