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* पुराणं परमं पुण्यं भविष्यं सर्वसौख्यदम् «
[ संक्षिप्त भव्ष्यपुराणाडु
तथा उत्तण्पाढ़ा, अभिजित् एवं श्रवण--ये नक्षत्र-मातृकाएँ
निरन्तर भगवान् भास्करकी पूजा करती रहती हैं, ये आपको
वर्धनझील ऐश्वर्य एवं जञान्ति प्रदान करें। उत्तर दिशामें
अवस्थित धनिष्ठा, शतभिष, पूर्व तथा उत्तरभाद्रपद, रेवती,
अश्विनी एवं भरणी नामको नत्र-मातुकातै नित्य सूर्यकी पूजा
करती रहती हैं, ये आपको नित्य वर्धनशील ऐश्वर्य एवं शान्ति
प्रदान करें।
पूर्वदिशामें अवस्थित तथा भगवान् सूर्यके चरणकमलॉमें
भक्तिपूर्वकं आराधना करनेवाली मेष, सिंह तथा धनु रिया
पकौ नित्य शान्ति प्रदान कर । दक्षिण दिज्ञापे स्थित
रहनेवाली, भगवान् सूर्यकी अर्चना करनेवाली वृष, कन्या तथा
मकर राशियाँ परमा भक्तिके साथ आपको शान्ति प्रदान कर ।
पश्चिम दिशम स्थित एवं निरन्तर ग्रहनायक भगवान्
आदित्यकी आगधना करनेवालो मिथुन, तुला तथा कुम्भ
रिया आपको नित्य शान्ति प्रदान करें। [ कर्कं, युश्चिक तथा
मीन राशियाँ जो उत्तर दिशामें स्थित रहती हैं तथा भगवान्
सूर्यकी भक्ति करती हैं, आपको ज्ञान्ति प्रदान करें।]
भगवान् सूर्यके अनुग्रहसे सम्पन्न धुव-मण्टलमें
अशेचनो. दिगण्याकषसतर्कसु च सुल्येचनत- । सूचकुल्दो
रहनेयाले सप्नर्पिगण आपको आन्ति प्रदान करें। कश्यप,
गाल्व, गार्म्य, विश्वामित्र, दक्ष, वसिष्ठ, मार्कण्डेय, क्रतु, नारद,
भृगु, आत्रेय, भारद्वाज, वाल्मीकि, कौशिक, वातस्य, काकस्य,
पुनर्वसु तथा दालंकायन--ये सभी सूर्य-ध्यानमें तत्पर
रहनेयाले महातपस्वी ऋषिगण आपको शान्ति प्रदान करे ।
सूर्यकी आरानामे तत्पर ऋषि तथा मुनिकन्या, जो निरन्तर
आीर्वाद प्रदान करनेमें तत्पर रहती है, आपको नित्य सिद्धि
प्रदान करें।
भगवान् सूर्यकी पूजामें तत्पर दैत्यग्रजेन्र नमुचि,
महाबली , पराक्रमौ महानाथ--ये सभी आपके लिये
बल, बोर्य एवं आरेग्यकी प्राप्तिके लिये निरन्तर कामना करें।
महान् सम्पत्तिज्ञाल्ती हयग्रीय, अत्यन्त प्रभाशाल्त्र प्रह्माद,
अग्निमुख, कालनेमि--ये सभी सूर्यकी आगधना करनेवाले
दैत्य आपको पुष्टि, बल और आरोग्य प्रदान करें। वैरोचन,
हिरण्याक्ष, तुर्वसु, सुल्मेचन, मुचकुन्द, मुकुन्द तथा
शैवतक--ये सभी सूर्यभक्त आपको पुष्टि प्रदान करें।
दैल्यपत्नियाँ, दैत्यकन्याएँ तथा दैत्यकुमार--ये सभी आपकी
जाक्तिके लिये कामना करें।
मुकृत्दक्ष दैत्यो रैवतकसधा 8
भावेन परमेगेम यजन्ते सतते रकिम् । सतते च झुभात्पानः पुष्टिं कुर्वनु ते सदा॥
दैत्यपतयो महाभाग दैत्यायौ कन्यकाः दभाः । कुर ये च दैत्यानौ सन्ति कुर्वश्तु ते सदा ॥
आरकतैन शोण
रक्तात्तायतस्केचना: म्यपागाः कृताटोपा: शज्झाद्याः कृतलक्षणा:॥
अनन्तो नागगणजेद्र आदित्याराधते रततः । महाप्ापविपं हत्वा रान्तस् करोतु ते॥
अति्छतन देने विस्फुगदद्धोगसन्पदा । तेजखा चातिटीपिञ कृतस्वस्तिकल्प्रज्छन: ॥
नागशद् तक्षकः श्रीमान् नाणक्येखया समत्वितः । करोतु ते महान्ति सर्वदोषनिपापहाम् ॥
अतिकृष्णेन वर्जेन.. स्फुरिताधिकपातक । कण्टरेसरा्रयोपेतो घोषद॑श्टायुधोद्यत: ॥
कर्कटको महानागो विषदर्पवत्पत्वितः । विषज्लस्माप्रिसताप॑ हत्वा शान्ति करोतु ते॥
पचवर्जः पचकन्तिः फुल्लपद्यतेश्चनः । ख्यात: पदयो महानागो नित्य भास्करपूजक: ॥
स तै अत्ति मुभे शीघ्रमचले सण््वच्छनु । सयमिन
देहभारेण.. औपत्कमलल्मेचन: ॥
विषदर्पबलोन्मत्तो. औवायों. रेखयान्यित- । ऋछलुपालत्रिया. दीक्ष।.. सूर्यपादाब्जपूजक: ॥
महाकिपं गगरे हत्वा वन्ति करोतु ते । अगिगौरिण देहेन चनर्धकतरेखर्- ॥
दीपभागे कृतारोपशुभलश्चणतयक्षितः ।
कृतके नाय नागेन्द्रो नित्व॑सूर्यपरायण- । अपदस्य विषं घोरं
अन्तरिश्चे च थे नागे ये नागा: स्वर्गसंस्थिता: | गिरिकन्टस्दरॉषु ये
पाताले ये स्थिता नागाः सर्वे यत्र समाहिताः । सूर्यणादार्चनासक्ता
जाणियो ताथकत्या तथा नागकुमारकयः । सूर्यभक्ता: सुमनसः
केतु तव॒ रान्तिकिम् ॥
॥ ५ भुवि संस्थिताः ॥
आत्ति कुर्वन्तु ते खदा॥
न्ति कुर्वन्तु ते सटा ॥
य॒इद॑न्दपसेस्याने कीर्यच्छृुष्त् तथः । न तै सर्पा विहिंसन्ति न विपे क्रमते सटा ॥
(ब्राक्पर्व १७९ | १--४६)