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* पुराण परमं पुण्यं भविष्यं सर्वसौख्यदप् «
[ संक्षिप्त भविष्यपुराणाङ्खं
अश्वोसते युक्त रथपर आरूढ, सिन्दूरके समान रक्त आभावाले,
सभी देवताओंद्रारा नमस्कृत भगवान् सूर्य प्रहपीडा निवारण
करनेवाली मह्मान्ति आपको प्रदान करें। हीतरः किरणोंसे
युक्त, अमृतात्मा, अत्रिके पुत्र चन्द्रदेव सौम्यभावसे आपकी
अहपीडा दूर करें। फदयरागके समान वर्णवाले, मघुके समान
पिङ्गल नेत्रवाले, अप्रिसदृश् अङ्गारक, भूमिपुत्र भौम आपकी
ग्रहपीडा दूर करे । पुष्परागके समान आभायुक्त, पिङ्गल
वर्णवाले, पीते माल्य तथा वस घारण करनेवाले नुध आपकी
पीडा दूर करे । तप्र स्वर्ण समान आभायुक्त, सर्वदाख-
विदारद, देवताओंके गुरु यृस्यति आपकी ग्रहपीडा दूर कर
आपको शान्ति प्रदान करें। हिम, कुन्दपुष्प तथा चन्द्रमाके
समान स्वच्छ वर्णवाले, दैत्य तथा दानवोंसे पूजित, सूर्योर्चनमें
तत्पर रहनेवाले, महापति, नीतिशाखमें पारङ्गत शुक्राचार्य
आपकी ग्रहपीडा दूर करें। विविध रूपोंक्रों धारण करनेयाछे,
अविज्ञात-गति-युक्त, सूर्यपुत्र दानैश्चर, अनेक शिखरोंवाले केतु
एवं राहु आपकी पीड़ा दूर करें। सर्वदा कल्याणक दृष्टिसे
देखनेवाले तथा भगवान् सूर्यकी नित्य अर्चना करनेमें तत्पर ये
सभी ग्रह प्रसन्न होकर आपको शान्ति प्रदान करें।'
तदनन्तर ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश--इन त्रिदेवॉसे इस
प्रकार झान्तिकी प्रार्थना करे'--
'पद्यासनपर आसीन, पद्मवर्ण, पद्मपत्रके समान नेत्रवाले,
कमण्ड्ुधारी, देव-गन्धवोंसे पूजित, . देवक्षिरोमणि,
महातेजस्वी, सभी स्तेककि स्वामी, सूर्यार्चनमें तत्पर चतुर्पुख,
दिव्य ब्रह्म शब्दसे सुशोभित ब्रह्माजी आपको शान्ति प्रदान
करें। पीताम्बर धारण करनेवाले, उखं, चक्र, गदा तथा पद्म
अक्रियीके पति तथा सूर्यके ध्याने तल्लीन माधव मधुसुदन
विष्णु आपको नित्य झान्ति प्रदान करें । चन्द्रमा एवं कुन्दपुष्पके
समान उज्ज्वलः वर्णवाले, सर्पादि विशिष्ट आभरणोंसे
असकृत, महातेजस्वी, मस्तकपर अर्धचन्द्र धारण करनेवाले,
समस्त विश्वमे व्याप्त, स्मद्नपे रहनेयाले, दक्ष-यज्ञ विध्व॑स
करनेवाले, वरणीय, आदित्यके देहसे सम्भूत, वरदानी,
देखाधिदेव तथा भस्म धारण करनेवाले महेश्वर आपको दान्ति
प्रदान करें ।'
ताक्ौरिकसंकाइ- सर्वज्ञास्वविज्ञारद: | सर्वटेवगुरर्विष्ो ह्धर्यणवरो मुनिः ॥
बृहस्पतिरिति शात अर्थरासूपरश्च यः । शान्तेन चेतसा सोऽपि पोल सुसमाहितः ॥
प्रौ विनिर्जित्व करोतु तव दन्तकम् । सूरय्चिनिपरो नित्ये प्रस्थदादभास्करस्य तु
हिमकुनयन्दुव्णोभो दैल्यदानवपुजित: । महेश्वास्ततो ध्वीम्यान् महासै चष्यमति- ४
सूर्यार्चनपरों नित्य शुक्र: शुल्लनिभस्तदा | नीतिज्ञाख्रपरों नित्यैः प्रह्ये व्यपोहतु च
नानारूपघोऐउल्यक्त.. अखिज्ञातातिश वः | कत्पत्िर्जायते यस्य जोदयपीडितैरपि ४
एकचूले द्विचूलका प्रिशिखः पश्चयूलक: | सहस््नरिररूपस्तु. चनद्रकेतु्वि = र्यिः ॥
बरह्मविष्णुशिवात्मकः । अनेकशिल्ला: केतुः स ते पीड़ी व्यपोहतु ॥
एलो अहा महारपान: सुर्यार्चनपरा: खदा ¦ यान्ति कुर्वन्तु ते दष्टः सदाकाले हितेक्षणाः ॥
{ ऋमपर्व १७५१ ३६-- ५०)
-फद्रासनः = पद्रवर्णः = पद्फानिभेक्षण: । कमण्डलुधरः श्रीमान् देवगन्धर्वपूजितः ॥
चतुर्मुखो देवपतिः सूर्या्वनपर- सरा ।
सुश्जयेषठो मद्यतोजाः सर्वलोकप्रजापतिः । करह्मद्देन दिव्येन ब्रह्म सन्तिं करोतु ते॥
स्यामवर्णकतुरभूजः
ऋतुदकन:
करदो देवदेवो महेश्वरः । आदित्यदेहसम्भूतः स ते शान्ति करोतु खै॥
(ब्राह्मपर्व १७६ । १--८)