Home
← पिछला
अगला →

+ विभिन्न पुष्पोंद्रारा सूर्य-पूजनका फल +

१५७

सुर्योपासनाका फल

कातानीकने पूछा--पुने ! आपने भगवान्‌ सूर्यके

विषये जो कहा, यह सत्य ही है, संसारके मूल कारण तथा

परम दैवत भगवान्‌ सूर्य ही हैं, सभीको यही तेज प्रदान करते

हैं। भगवान्‌ सूर्यनारायणके पूजनसे जो फल प्राप्त होता है,

आप उसे बतल्मनेकी कृपा करें।

सुमन्तु मुनि खोले--राजन्‌ ! जो व्यक्ति सर्वदेवमय

भगवान्‌ सूर्यकी प्रतिष्ठा कर पूजन करता है, वह अमरत्व तथा

भगवान्‌ सूर्यका सामीप्य प्राप्त कर लेता है । जो व्यक्ति भगवान्‌

सूर्यका तिरस्कार कर सभी देवताओंका पूजन करता है, ठस

व्यक्तिके साथ भाषण करनेवाला व्यक्ति भी नरकगामी होता

है। जो व्यक्ति श्रद्धा-भक्तिपूर्वक सूर्यदेवकी प्रतिष्ठा कर

पूजन-अर्चन करता है, उसे यज्ञ, तप, तीर्थ-यात्रा आदिकी

अपेक्षा कटि गुन्य अधिक फल प्राप्त होता है तथा उसके

मातृकुल, पितृकुल एवं ख्रीकुछ--इन तीनोंका उद्धार हो जाता

है और वह इन्द्रलोकमें पृजित होता है तथा वहां ज्ञानयोगके

आश्रयणसे वह मुक्ति प्राप्त कर लेता है। अधवा जो राज्य

चाहता है यह दूसरे जन्ममे सप्तद्रीपकती वसुमतीका राजा होता

है। जो व्यक्ति मिट्टीका सर्वदेवमय व्योम बनाकर भगवान्‌

सूर्यका पूजन-अर्थन करता है, यह तीनों लोकोमे पूजित एवै

इस स्मेकये धन-धान्यसे परिपूर्ण होकर अन्तमें सूर्यलोकको

ब्राप्त कर सता है।

जो व्यक्ति भगवान्‌ सूर्यके पिष्टमय व्योमकी रचनाकर

गन्ध, धूप, पुष्प, माल्म, चन्दन, फल आदि उपचारोंसे पूजा

करता है, यह सब पापोंसे मुक्त हो जाता है और कोई हदा नहीं

पाता । यह भगवान्‌ सूर्यके समान प्रतापपूर्ण हो अव्यय पदको

प्राप्त करता है। अपनी शाक्तिके अनुसार भक्तिपर्वक भगवान्‌

सूर्यका मन्दिर निर्माण करानेवाह्म स्वर्णमय विमानपर आखरूढ़

होकर भगवान्‌ सूर्यके साथ विहार करता है। यदि साधन-

सम्पन्न होनेपर भी श्रद्धा-भक्तिसे शून्य होकर मन्दिर आदिका

निर्माण करता है तो उसे कोई फल नहीं होता । इसलिये अपने

घनका तोन भाग करना चाहिये, उसमेंसे दो भाग धमं तथा

अर्थोपार्जनमे व्यव करें और एक भागसे जीवनयापन करे ।

धन-सम्पत्तिसे सम्पन्न रहनेपर भी यदि कोई बिना भक्तिके

अपना सर्वस्व भगवान्‌ सर्के लिये अर्पण कर दे, तब भी वह

धर्मका भागी नहीं होता, क्योंकि इसमें भक्तिकी हो प्रधानता

दैः । मानव संसारपें दुःख और कोकते व्याकुल होकर तबतक

भटकता है, जबतक भगवान्‌ सूर्यकी पृजा नहीं करता।

संसारमें आसक्त प्राणियोंको भगवान्‌ सूर्यके अतिरिक्त और

कौन ऐसा देवता है जो यन्थनसे छुटकारा दिला सके।

(अध्याय १६१-१६२)

विभिन्न पुष्पोंद्यारा सूर्य-पूजनका फल

सुषन्तु मुनि योखे-- राजन्‌ ! अमित तेजस्वी भगवान्‌

सूर्यकों स्नान कराते समय 'जय' आदि माङ्गलिक दशाब्दोंका

उचारण करना चाहिये तथा रङ्घु, भेरी आदिके द्वार

मद्गल-ध्वति करनी चाहिये। तीनों संध्याओमें वैदिक

ध्वनियोंसे श्रेष्ठ फल होता है। राङ्क आदि माड़लिक वाद्योंके

सहारे नीराजन करना चाहिये। जितने क्षणोत्रक भक्त नीराजन

करता है, उतने युग सहस वर्ष कह दिव्यस्मेके प्रतिष्ठित होता

है। भगवान्‌ सूर्यकों कपित्श गौके पञ्चगव्यसे और मन्त्रपूत

कुशयुक्त जलसे स्नान कनेक ब्रह्मस््नान कहते हैं । वर्षमें एक

आर भी ब्रह्मस्नान कंग़नेवाला व्यक्ति सभी पापोंसे मुक्त होकर

सूर्यल्ओ्ेकमें प्रतिष्ठित होता है।

जो पितरोकि उद्देश्यसे शीतर जलसे भगवान्‌ सूर्यको

खान कराता है, उसके पितर चरसि मुक्त होकर स्वर्ग

चले जाते हैं। मिट्टीके कलशको अपेक्षा ताम्न-कलदासे स्नान

कराना सौ गुना श्रेष्ठ होता है। इसी प्रकारं चांदी आदिके

कलडाद्रारा खान करानेसे ओर्‌ अधिक फल प्राप्त होता है।

भगवान्‌ सूर्यके दर्शनसे स्पर्श करना श्रेष्ठ है और स्पर्शसे पूजा

श्रेष्ठ है और घृत-स््रान कराना उससे भी श्रेष्ठ है। इस तमेक और

परलोकरमें प्राप्त होनेवाले पापोकि फट भगवान्‌ सूर्यको घृतस्नान

करानेसे नष्ट हो जाते है एवं पुराण-श्रयणसे सात जन्मोंके पाप

दूर हो जाते है।

एक सौ पल (लगभग छः किलो बीस आम) प्रमाणसे

१-सर्वस्वप्पि यो टष्यादर्के भरक्तिविवजत:।१ केने धर्मभागी स्यादुभकिरेयात्र कारणम्‌ ॥ (ब्राक्मपर्व १६२ । २९)

← पिछला
अगला →