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ज्ाह्मपर्व ]

+ सौर-धर्म-निरूपणमें सूर्वावतारका कथन +

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हो रहे है । इस प्रकारसे उन्हें स्थित देखकर अदिते प्रार्थना

करते हुए कहा--'देव ! आप इस तरह निश्चिन्त होकर क्यो

बैठे हैं? मेरे पुत्र उत्पन्न होते ही मृत्युको प्राप्त होते जा

रहे हैं।' अदितिके इस यचनको सुनकर ऋषियोंमें उत्तम

करड्यपजी ब्रह्मलेक गये और उन्हेनि अदितिकौ बातें

ब्रह्माजीको कतत्ञयीं।

ब्रह्माजीने कहा -- पुत्र ! हमें भगवान्‌ भास्करके परम

दुर्लभ स्थानपर चलना चहिये । यह कहकर ब्रह्मा कक्यप और

अदितिके साथ विमानपर आरूढ होकर सूर्यदेवके भवनकों

गये। उस समय सूर्यस्थेककी सभामें कहीं वेद-ध्वनि हो रही

थो, कहाँ यज्ञ हो रहा था । ब्राह्मण वेदकी शिक्षा दे रहे थे।

वेदान्तविद्‌, लोका्रयतिक आदि सभी सूर्यकी उपासनामे लगे

हुए थे । विद्वान्‌ ब्रह्मण जप, तप, हवन आदिमे सेलम्र धे ।

उस सभामें एश्मिमाली भगवान्‌ दिवाकरको महर्षि कद्यप

आदिने देखा। देवताओंके गुरु बृहस्पति, असुरोंके गुरु

शुक्राचार्य आदि भी वहाँपर भगवान्‌ सूर्यकी उपासना कर रहे

थे। दक्ष, प्रचेता, पुलह, मरीचि, भृगु. अग्रि, वसिष्ठ, गौतम,

नारद, अन्तरिक्ष, तेज, पृथ्वी, शाब्द, स्पर्श, रूप, रस, गन्ध,

प्रकृति, विकृति, अङ्ग -उ््गौसहित चारों वेद और लव, ऋतु,

संकल्प, प्रणव आदि बहुतसे मूर्तिमान्‌ होकर भगवान्‌

भास्करी स्तुति-उपासना कर्‌ रहे थे । अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष,

देष, हर्ष, मोह, मत्सर, मान, वैष्णव, माहेश्वर, सौर, मारत,

विश्वकर्मा तथा अश्विनौकुमार आदि सुन्दर-सुन्दर वचनोसे

भगवान्‌ सूर्यका गुणगान कर रहे थे।

ब्रह्माजीने भगवान्‌ भास्करसे निवेदन किया-- भगवन्‌ |

आप देवमाता अदितिके गर्भसे उत्पन्न होकर ल्ोकका कल्याण

कीजिये। इस जत्रैल्मेक्फकों अपने तेजसे प्रकाशित कोजिये।

देवताओंको शरण दीजिये। असुरोंका विनाझ एवं अदिति-

पुत्रोंकी रक्षा कीजिये।

भगवान्‌ सूर्यने कहा--आप जैसा कह रहे हैं, वैसा

ही होगा। प्रसन्न होकर महर्षि क्यप देवी अदितिके साथ

अपने आश्रममें चले आये और ब्रह्माजी भी अपने स्परेकको

चले गये।

सुमन्तु मुनि बोले-- महाराज ! कालान्तरमें भगवान्‌

सूर्य अदितिके गर्भसे उत्पन्न हुए, जिससे तीनो लोकॉमें सुख

छा गया और दैत्योंका विनाश हो गया देवताओंकी वृद्धि हुई

और उनके प्रभावसे सभी स्प्रेगोंपें परम आनन्द व्याप्त हो गया।

इस प्रकार देवमाता अदितिके गर्भसे भगवान्‌ सूर्यके

जन्म ग्रहण करनेपर आकाझमें दुन्दुभियाँ बजने लगी,

गन्धर्वगण गान करने रगे । द्वादझ्ात्मा भगवान्‌ सूर्यकी सभो

देवगण, ऋषि-महर्षि तथा दक्ष प्रजापति आदि स्तुति करने

लगे। उस समय एकादश रुद्र, अश्िनीकुमार, आय वसु,

महाबली गरुड, विशदेव, साध्य, नागराज वासुकि तथा अन्य

बहूतसे ऋग और राक्षस भी हाथ जोड़े खड़े थे । पितामह ब्रह्मा

भी स्वयं पृथ्वीपर आये और सभी देवता एवं ऋषि-महर्षियोंसे

बोले--देवर्षिगण ! जिस प्रकार बालक-रूपमें उत्पन्न होकर

ये सभीको देख रहे है, उसी प्रकार ये स्प्रेकेश्वर श्रीमान्‌ और

विवस्वान-रूपमें विख्यात होंगे। देव, दानव, यक्ष, गन्धर्व

आदिके जो कारण हैं यै ही आदिदेव भगवान्‌ आदित्य हैं इस

प्रकार कहकर पितामह ब्रह्मने देवल्रओं और ऋषियोंसहित

उन्हें नमस्कार कर विधिपूर्वक उनकी अर्चन की तत्पश्चात्‌ वे

अपने-अपने लोक्परेंको चले गये।

वेदोदराय गेय तथा इन्द्रादि बारह नामोंसे युक्त भगवान्‌

सूर्यको पुत्र-रूपमे प्राएकर महर्षि कड्यप अदितिके साथ परम

संतुष्ट हो गये एवं सारा विश्व हर्षसे व्याप्त हो गया तथा सभी

राक्षस भयभीत हो गये।

भगवान्‌ सूर्य ओल्े--महपें ! आपके पुत्र नष्ट हो जाते

थे, इसलिये गर्भकी सिद्धिके लिये मैं आपके यहाँ पुत्र-रूपमें

उत्पन्न हुआ हूँ।

सुमन्तु मुनि बोले--राजन्‌ ! इस प्रकार भगवान्‌

भास्करकी आराधना करके ब्रह्याजीने सृष्टि करनेका वर प्राप्त

किया और कञ्यपमुनिने भी भगवान्‌ भास्करको प्रसन्न कर

उन्हें पुत्ररूपमें प्राप्त कर लिया ¦ (अध्याय १५७--१५९)

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