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* पुराणं परमं पुर्ण्य भविष्यं सर्वसौर्यदम् +
[ संक्षिप्त भविष्यपुराणाडु
सुर्ददेवका पूजनकर ब्राह्मणों और भोजक्ॉंकों भोजन कराये
और उन्हें दक्षिणा दे। इस प्रकार भक्तोंद्वाश भक्तिपूर्वक
प्रतिमाकी स्थापना किये जानेपर, वह उनकी सभी प्रकार
कल्याण, पडुछ और सुख-समृद्धिकी वृद्धि करती है और
उसमें भगवान् सूर्यका नित्य सोनिध्य रहता है। सूर्यकी स्थापना
करनेवास्म्र व्यक्ति मोक्ष प्राप्त करता है और उसे सात जन्मोंतक
आधि-य्याधियाँ भी नहीं सतातीं। तीन दिनौतक प्रतिष्ठाके
उत्सवॉमें सम्मिलित रहनेवाल्त्र व्यक्ति सूर्यल्मेककों जाता है।
सुख भोगता है। सूर्य-मन्दिस्के जीर्णोद्धार करनेका पुण्य इससे
भी अधिक है। जो पुरुष मन्दिरकः निर्माण कराकर प्राणियोंकी
सृष्टि, स्थिति एवं प्रकयके हेतुभूत सुरक्रेष्ठ भगवान् सूर्यकी
प्रतिमा स्थापित करता है, वह संसारके सब सुखोको भोगकर
सौ कल्पोतक सूर्यल्परेकमें निवास करता है। मन्दरे इतिहास-
पुराणका पाठ भी करना चाहिये।
इसी प्रकार अन्य देवताओंकी प्रतिमाओंका भी
ाव्याधिकासं तथा उद्घोधन करे तथा शुभ मुहूर्तम उन
सूर्यनारायणकी ग्रतिमाकी स्थापना करनेसे दस अश्वमेध तथा. प्रतिमाओंको यथास्थान पिण्डिकापर स्थापित कर पूजन करे ।
सौ वाजपेय-यज्ञॉंक्र फल प्राप्त होता है। मन्दिरकी ईंट जबतक (अध्याय १३६-१३७)
चूर्ण नहीं हो जाती, तबतक मन्दिर बनवानेवाल्त्र पुरुष स्वर्ग-
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ध्वजारोपणका विधान और फल
नारदजी बोले--साम्ब ! अब मैं क्रह्माजीद्वारा वर्णित
ध्वजारोपणकी विधि बतल्खता हूँ। पूर्वकालमें देवता और
असुरोमे जो भीषण युद्ध हुआ, उसमें टेवताओंने अपने-अपने
रथोंपर जिन-जिन चिह्रॉकी कल्पना की, ये ही उनके ध्वज
कहत्सये । उनका लक्षण इस प्रकार है -- ध्वजका दण्ड सीधा,
व्रणरहित और प्रासादके व्यासके बरावर लंबा होना चाहिये
अधवा चार, आठ, दस, सोलह या बीस हाथ लंत्रा होना
चाहिये । ध्वजाका दण्ड बीस हाथसे अधिक लंबा न हो और
सम पर्वोवाला हो । उसकी गोलाई चार अङ्कुरः होनी चाहिये ।
घ्यजके ऊपर देवताकों सूचित करनेवाला चिद्ध बनवाना
चाहिये । भगवान् विष्णुके ध्वजपर गरुड़, शिवजीकी ध्वजापर
वृष, अह्याजीकी ध्वजापर पद्म, सूर्यदेवकी ध्वजापर व्योम.
सोमकी पताकापर नर, बलदेवकी पताकापर फाल्सहित हल,
कामदेजकी पताकापर मकरध्वज, इन्द्रकों ध्वजापर हस्ती,
दुर्गाकी ध्वजापर सिंह, उमादेवीकी ध्वजापर गोधा, रेवतकी
ध्वजापर अश्च. वरुणकी ध्वजापर कच्छप, वायुकी ध्वजापर
हरिण, अप्रिकी ध्वजापर मेष, गणपतिकौ ध्वजापर मृषकका
तथा ब्रह्मर्षियोंकी पताक्रपर कुदाका चिह्न यनानाः चाहिये।
जिस देवताका जो वाहन हो, वही ध्वजापर भी अड्भित
रहता है।
विष्णुकी ध्वजाका दण्ड सोनेका और पत्माका पीतवर्णकी इन्द्रगोप
होनी चाहिये, वह गरुड़के समीप रखनी चाहिये। शिवजीका
ध्वजदण्ड चाँदीका और श्वेत वर्णकी पताका वृषके समीप
स्थापित करे । ब्रह्माका ध्वजदण्ड तॉबिका और पद्मवर्णकी
पताका कमलके समीप रखे। सूर्यनारायणका ध्वजदण्ड
सुवर्णकः और व्योमके नीचे कैचरगी पताका होनी चाहिये,
जिसमें किंकिणी लगी रहे एवं पुष्पमालाओँसे संयुक्त हो ।
इन्द्रका ध्वज़दग्ड सोनेका और हस्तीके समीप अनेक वर्णकी
पताका होनी चाहिये । यमका ध्वजदण्ड लेका और महिषके
समीप कृष्णवर्णकी पताक रखनी चाहिये । कुवेरकः ध्वजदण्ड
पणिमय और पनुष्य-पादके समी रक्त वर्णकी पताका रखे ।
यलदेवका ध्वज्दण्ड चाँदीका और तालवुक्षके नीचे
शेतवर्णकी पताका रखनी चाहिये । कामदैवक्ये ध्वजदण्ड
जिल्पैह (सोना, चाँदी और तौना -मिश्रित) का और मकरके
समीप रक्तवर्णकी पताका स्थापित करनी चाहिये । कार्तिकेयका
ध्वजदण्ड जिल्नैहका और मयूरके समीप चित्रवर्णकी पताका
एवं गणपततिका ध्यजदण्ड ताम्रका अथवो हस्तिदत्तका एतै
मूष्कके समीप शुक्ववर्णी पताका और मातृकाओंके
ध्वजदण्ड अनेक रूपोंके तथा अनेक वर्णोंकी अनेक पताकया
होनी चाहिये। रेवन्तकी पताका अश्वके समीप लालवर्णकी,
चामुण्डाका ध्वजदण्ड लौहका और पुण्टमालके समीप नले
वर्षकी ध्वजा होनी चाहिये। गौरीका ध्वजदण्ड ताप्रका और
(बीस्बहूटी कीट) के समान अतिदाय रक्तवर्णकी
ध्वजा होनी चाहिये। अप्निका ध्वजदण्ड सुवर्णका और मेषके