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* पुराण परमं पुण्यं भविष्यं सर्वसोख्यदप् +
[ संक्षिप्त भविष्यपुराणाङ्ख
यैदीके ऊपर कमलकी आकृति बनाये । 'चेह्या चेदिः" (यजु
१९। १७) इस मन््रसे वेदीका स्पर्श करे । "योगे योगेति"
(यजः ११। १४) इस मन्रसे उसपर पूर्वा और उत्तराय
कुशॉकों बिछाये । वहाँ उत्तम बिछावन और टो तकियोंसे युक्त
एक झय्या एवं विविध भक्ष्य पदार्धौको मण्डपमें रखे। एक
उत्तम श्वेत छर घहाँ स्थापित कर विचित्र दीपमात्मसे मण्डलको
अल्कृत करे !
शपे (अध्याय १३४)
> कः
साम्बोपाख्यानके प्रसंगमें सूर्यकी अभिषेक-विधि
नारदजी योले-- साम्य ! अब मैं भगवान् सूर्यके
खपनकी विधि बताता हूँ। वेदपाठी, पवित्र आचारतिष्ट,
शास्रमर्मजञ, सूर्यभक्त भोजक अथवा अन्य ब्राह्मणोकि साथ
मण्डलके ईदानकोणपे एक हाथ र्या-चौडा और ऊँचा
भद्रपीट स्थापित कर देव -परतिमाको प्रासादमें लाये और
प्रतिमाकतरे उस पीठपर स्थापित करे। मार्गमें भद्रं कर्णेभिः"
आदि माङ्गलिक मन्त्रोंकी ध्वनि होती रहे तथा भाँति-भाँतिके
काद्य बजते रहें। अनन्तर समुद्र, गङ्गा, यमुना, सरस्वती,
चन्द्रभागा, सिन्धु, पुष्कर आदि तीर्थो, नदी, सरोवर, पर्वतीय
ज्मरनौके जरसे भगवान् सूर्यकी स्नान कराये । आट ब्राह्मण
और आठ भोजक सोनेके कलदोकि जलसे खान करायें।
सनान्के जलमे रल, सुवर्ण, गन्ध, सर्वबीज, सर्वौषधि, पुष्प,
ब्राह्मी, सुवर्चसा (सूर्यमुखी), मुस्ता, विष्णुक्रान्ता, शतावरी,
दर्वा, मदार, हल्दी, प्रियंगु, बच आदि सभी ओषधियाँ दार ।
कलदोकि मुख्पर वट्, पीपछ और दिरीषके कोमल
पल्लवोको कुशके साथ रखे । भगवान् सूर्यको अर्घ्य देकर
गायत्री-यन्तरसे अधिपन्नित सोलह कलसे स्रान कराये ।
सुबर्ण कलदाके अभावमे चाँद, ताँबा, मृत्तिकाके कलझॉसे ही
स्नान कराना चाहिये। इसके अनन्तर पके दयसे बनी हुई
वेदीके ऊपर कुदा थिछकर मूर्तिकों दो बस्तर पहनाकर स्थापित
करना चाहिये। उस दिन त्रत रखे। मूर्ति स्थापित करनेके
भक्तिमन्तो दिवस्पते । येचोयाधिर्णे] द्वितीयकलशेन
पश्चात् निम्न पन्ते प्रतिमाका अभिषेक करे--
“देवश्रेष्ठ ! ब्रह्मा, विष्णु, धिव आदि देवगण आकादा-
गङ्गासे परिपूर्ण जलद्वात आपका अभिषेक करे । दिवस्पते !
भक्तिमान् मरुद्रण मेघजलसे परिपूर्ण द्वितीय कलझसे आपका
अभिषेक करें। सुरोत्तम ! विद्याधर सरस्वतीके जलसे परिपूर्ण
तृतीय कलशके द्वारा आपका अभिषेक करें। देवश्रेष्ठ ! इन्द्र
आदि स्त्रेकफलगण समुद्रके जलसे परिपूर्ण चतुर्थ कलशसे
आपका अभिषेक करें। नागगण कमलके परागसे सुगन्धित
जलसे परिपूर्ण पञ्चम कलरासे आपका अभिषेक करें।
हिमवान् एवं सुवर्णशिखरवाले सुमेर आदि पर्वतगण
दक्षिण-पक्षिममें स्थित छठे कलङ्के जलसे आपका अभिषेक
करें। आकाझचारी सपर्षिगण पदापरागसे सुगन्थित सम्पूर्ण
तीर्थ-जलॉसे परिपूर्ण सप्तम घटके द्वारा आपका अभिषेक करें ।
आठ प्रकारके मङ्गलसे समन्वित अष्टम कलङसे वसुगण
आपका अभिषेक कर । हे देवदेव ! आपको नमस्कार है" ।'
इसो प्रकार एक ताम्नके पातम पञ्चगव्य बनाकर खान
करये । वैदिक मन्ते गोमूत्र, गोमय, दूष, दही, कुदोदक
लेकर ताम्रके नवीन पात्रे पञ्चगव्य बनाकर सूर्यनारायणको
खान कराये। मन््रसे गन्धयुक्त जलसे खान कराये, अनन्तर
शुद्धोदक-खान कराये तथा रक्त वस्र एवं अलैकारसे अलंकृत
कर इस प्रकार आवाहन को--
(ब्राह्मपर्ष १३५। २१--२८)