ब्राह्मपर्ण ]
» साम्बद्वारा भगवान् सूर्यकी आराधना, कुरोगसे मुक्ति ५
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स्तुतिसे प्रसन्न हूँ, वत्स ! मुझसे जो तुम चाहते हो वह कहो ।
साम्बने कहा--भगवन् ! आपके चरणो मेरी दृढ़
भक्ति हो, यही वर चाहता हूँ।
सूर्यभगवानने कहा-- ऐसा ही होगा ! मैं तुमसे बहुत
संतुष्ट हूँ, सुब्रत ! द्वितीय यर माँगो। ॥
साम्बने कहा--भगवन् ! मेरे शरीरम रहनेवात्य यह
मल--कुष्ठ आपकी कृपासे दूर हो जाय, गोपते ! मेरा शरीर
सर्वथा शुद्ध निर्मल हो जाय |
भगवान् सूर्यने कहा-- ऐसा ही होगा।
भगवान् सूर्यके ऐसा कहते ही साम्बके शरौरसे कुष्ट रोग
वैसे हो दूर हो गया जैसे सर्पके दारीरमे केंचुल । वह दिव्य
रूपसम्पन्न हो गया। साम्ब भगवान् सूर्यको प्रणामकर उनके
सम्मुख खड़े हो गये।
सूर्यदेवने कहा-- सम्ब ! प्रसत्र देकर मैं और भी वर
देता हूँ। आजसे मेरा यह स्थान तुम्हारे नामे प्रसिद्ध होगा।
लोकमे तुम्हारी अक्षय कीर्ति होगी। ज व्यक्ति तुम्हारे नामसे
मेरा स्थान बनायेगा, उसे सनातन क्तेक प्राप्त होगा। इस
चन्द्रभागा नदीके तटपर पेरी स्थापना करो । मैं तुझे स्वप्रमें
दर्शन देता रहुँगा। इतना कहकर सूर्यभगवान् प्रत्यक्ष दर्शन
देकर अक्तर्थान हो गये।
इस साम्बकृत स्तोत्रको जो व्यक्ति भक्तिपूर्वक तीनों
क्ले पढ़ता है, अथवा सात दिनॉमें एक सौ इक्कीस बार पाठ
और हवन करता है तो राज्यकी कामना करनेवात्म राज्य,
धनकी कामना करनेवाला धन प्राप्त कर छेता है और रोगसे
पीड़ित व्यक्ति वैसे ही रोगमुक्त हो जाता है, जैसे साम्ब कुष्ठ-
गेगसे मुक्त हो गये।
सुमन्तुमुनि खोले--राजन् ! तपस्थाके समय रोगसे
दुर्बल साम्बने सूर्यकी स्तुति उनके सहलरनामसे की थी। उसे
दुःखी देखकर स्वप्रमें भगवान् सूर्यने साम्बसे कहा--
"साम्ब ! सहस्ननामसे मेरौ स्तुति करनेकी आवश्यकता नहीं है।
मैं अपने अतिञ्चय गोपनीय, पवित्र ओर इक्कोस शुभ नामोंको
बताता हूँ। प्रयत्रपूर्वक उन्हें ग्रहण करों, उनके पाठ करनेसे
सहस्ननामके पाठका फल प्राप्त होगा। मेंरे इक्कीस नाम इस
प्रकार हैं--
(६) विकर्तन (विपक्तर्योको काटने तथा नष्ट
करनेवाले), (२) विवस्वान् (प्रकाश-रूप), (३) मार्तण्ड
(जिन्होंने अण्डमें बहुत दिन निवास किया), (४) भास्कर,
(५) रवि, (६) लोकप्रकाज्क, (७) श्रीमान्,
(€) स्प्रेकचक्षु,. (९) अहेश्वर,,. (१०) छोकसाक्षी,
(११) ब्रिलोकेदा,. (१२) कर्ता, (१३) हर्ता,
(१४)तमिलहा (अखकास्कों नष्ट करनेवाले),
{ १५) तपन, (१६) तापन, (६७) डचि (पवित्रतम),
(१८) सप्राध्वाहन, (१९) गभस्तिहस्त (किरणै ही जिनके
हाथस्वरूप र),( २०) ब्रह्मा ओर (२६) सर्वदेवनपस्कृत ।#
साम्ब ! ये इक्कीस नाम मुझे अतिदाय प्रिय है । यह
स्तवराजके नामसे प्रसिद्ध है । यह स्तवराज रारीर्करे नीयेग
बनानेवाला, धनकी वृद्धि करनेवात्म और यदास्कर है एवं तीनों
त्मरेकोंमें विख्यात है। महाबाह्ये ! इन नामोंसे उदय और अस्त
दोनों संध्याओंके समय प्रणत होकर जो मेरी स्तुति करता है, वह
सभी पापोंसे मुक्त हो जाता है। मानसिक, वाचिक और
शारीरिक जो भो दुष्कृत है, वे सभी एक यार मेरे सम्मुख
इसका जप करनेसे विनष्ट हो जते हैं। यही मेरे लिये जपने
प्रत्यक्षदर्शी त्वै देव्॒यमुद्धरसि लीलया। का थे शक्तिः स्तवै: स्तोतुमातों+ह रोगपौडितः ॥
स्तृष्ते त्वै सदा देलैज्रह्विष्णुशिवादिधि: । मफ्ेद्रसिद्धगन्थर्गैरप्सरोधिः सधुद्याकै: ॥
स्तुतिभिः कि पनि तय देख रगीरितैः। यस्य ते ऋष्यजु:साप्नां त्रितयं मष्डललस्थितम्॥
ध्यानिन। त्वै प भ्गा+ मोक्षद च मोक्षिणाम्। अनन्तकेजसाक्षोभ्यो हाचिन्त्याव्यक्तगिष्कलः ॥
वद्यं व्याहतः किचित सोतरऽसिमिज्जगतः पतिः । आति भक्ति च विज्ञाय तत्सवै ज्ातुमसि ॥
# वैकर्तनो विचस्वौक्च मात॑ण्डो भास्तमो रथिः । लोकप्रकाशकः श्रीमौल्लोकयक्षुरप्रहेश्वर: ॥
लोफसाक्षो भिललोकेशः कर्ता हर्ता तमिलहा । तपनस्तापनश्चैव शुषिः सप्ताहः ॥
गर्भाहतिहस्तो बह्मा च सर्वदेवनमस्कृतः ।
(ब्राह्मपर्व १२७॥ १० --२३)
(ज्वं १२८ । ५--७)