१३२
* पुराणं परम पुण्यं भविष्यं सर्वसौख्यदम् «
[ संक्षिप्त भविष्यपुराणाडु
साम्बद्वारा भगवान् सूर्यकी आराधना, कुष्ठरोगसे
मुक्ति तथा सूर्यस्तवराजका कथन
राजा झतानीकने पूछा--मुने ! साम्बने किस प्रकार
भगवान् सूर्यकी आराधना की और उस भर्यकर रोगसे कैसे
मुक्ति पायी ? इसे आप कृपाकर बतायें।
सुमन्तु मुनिने कहा--राजन् ! आपने बहुत उत्तम
कथा पूछी है। इसका मैं विस्तारसे वर्णन करता हूँ, इसके
सुननेसे सभी पाप दूर हो जाते हैं। नारदजीके द्वारा सूर्य-
भगवान्का माहात्य सुनकर साम्बने अपने पिता श्रीकृष्ण-
चनद्रके पास्र जाकर बिनयपूर्वक प्रार्थना कौ--'भगवन् ! मैं
अत्यन्त दारुण गेगसे ग्रस्त हूँ। वै्ञोंद्राग बहुत ओषधियोंका
सेवन करनेपर भी मुझे शन्ति नहों मिल रही है। अव आप
आज्ञा दें कि मैं बनमें जाकर तपस्थाद्ञारा अपने इस भयंकर
योगसे छुटकारा प्राप्त करूँ।॥' पुत्रका वचर् सुनकर भगवान्
श्रीकृणने आज्ञा दे दी और साम्ब अपने पिताकी आज्ञाके
अनुसार सिन्धुके उत्तरमें चन्द्रभागा नदीके तरपर लोकप्रसिद्ध
मित्रवन नामके सूर्यक्षेत्रमें जाकर तपस्या करने त्को । वै
उपवास करते हुए सूर्यकी आगाधनामें तत्पर हो गये । उन्होंने
इतना कठोर तप किया कि उनका अस्थिमात्र ही शेष रह गया ।
वे प्रतिदिन इस गुह्य स्तोत्रस दिव्य, अव्यय एवं प्रकाशमान
आदित्यपषण्डरयें स्थित भगवान् भाम्करकी स्तुति करने कगे --
प्रजापति परमान् ! आप तीनों स्परेकोंके नेत्र स्वरूप हैं,
सम्पूर्ण प्राणियोंके आदि हैं, अत: आदित्य नामसे विख्यात हैं।
आप इस मण्डलमें महान् पुरुष-रूपमें देदीप्यमान हो रहे हैं।
आप ही अचिन्त्य-स्वरूप विष्णु और पितामह ब्रह्मा हैं। रुद्र,
महेन्द्र, वरुण, आकादा, पृथ्वी, जल, वायु, चन्द्र, मेघ, कुवेर,
विभावसु. यमके रूपये इस मण्डल्में देदीप्यमान पुरुषके
रूपसे आप ही प्रकाशित है । यहे आपका साक्षात् महादेवमय
युत्त अण्डके समान है । आप काल एवे उत्पत्तिस्वरूप है ।
आपके मण्डलक तेजसे सम्पूर्ण पृथ्वी व्याप्त हो रही है । आप
सुधाकी युष्टिसे सभी प्राणिर्योको परिपुष्ट करते है । विभावसो !
आप ही अन्तःस्य म्ठेच्छजातीय एवं पशु-पक्षीकी योनिमें
स्थित प्राणिर्योकौ रक्षा करते हैं। गलित कुष्ट आदि रोगॉसे ग्रस्त
तथा अगध और बधिरौको भी आप हो रोगमुक्त करते है ।
देव ! आप हारणागतके रक्षक दै । संसार-चक्र-मण्डरूमें
निमग्र निर्धन, अल्पायु व्यक्तियोंकी भी सर्वदा आप रक्षा करते
है । आप प्रत्यक्ष दिखायी देते हैं। आप अपनी लीलामात्रसे ही
सबका उद्धार कर देते हैं। आर्त और रोगसे पीड़ित मैं
स्तुतियोंके द्वारा आपकी स्तुति करनेमें असमर्थ हूँ। आप तो
ब्रह्मा, विष्णु और महेश आदिसे खदा स्तुत होते रहते हैं।
महेंद्र, सिद्ध, गन्धर्य, अप्र, गुद्माक आदि स्तुतियोंके द्वारा
आपकी सदा आराधना करते रहते हैं। जब ऋक् यजु और
सामवेद तीनों आपके मण्डलमे हौ स्थित हैं तो दूसरी कौन-सी
पवित्र अन्य स्तुति आपके गुणोंका पार पा सकती है ? आप
ध्यानिर्योके परम ध्यान और मोक्षार्थियोंके मोक्षद्वार हैं। अनन्त
जेजोराशिसे सम्पन्न आप नित्य अचिन्त्य, अक्षोभ्य, अव्यक्त
और निष्कल हैं । जगत्पते ! इस स्तोत्रमें जो कुछ भी मैंने कहा
है, इसके द्वारा आप मेरी भक्ति तथा दुःखमय परिस्थिति (कुष्ट
रोगकी बात)को जान ले और मेरी विपक्तिको दूर करें# ।
सूर्यभगवानने कहा--जाम्बवतीपुत्र ! मैं तुम्हारो
दध्यन् पुरुषों दीप्यत महान् । एकः
ह्यास्यवनच्छित्नो
फ्प प्व
कस्ते नीजो
महेन नरुण आकाश पृथिवी जलन् । यायुः शशाङ्कः पर्जन्यो धनाध्यक्तौ विभावसुः ॥
स्बक्षान्महयदेवो वुत्रमच्छनिभः स्सदा ॥
महा्याहुर्नियोघोतपक्तिलक्षण: । य॒ एष सण्डले हास्मिस्तेओमि: पूरयन् गम् #
यातैयो्मूतलक्षण: । नातः परकर किचित् तेपा विदधतो क्वचित् ध
खुधामृलै: । अत्तःस्थान्
पि त्यै च विभावसो । स्रित्रकुछान्थवधिरान्. पंयूक्षाप तथा विधो
भवान् । यक्रमण्डलमफ्रंश प्र्धमाल्पायुबस्तथा ॥
म्लेच्छजाती बाल्तिर्यस्पोनिरतानपि ॥