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* पुराणं परमं पुण्यं भविष्यं सर्वसौख्यदम्‌ +

[ संक्षिप्त भविष्यपुराणाङ्कं

खान कराता है, वह अपनी सभी कामनाओंको प्राप्त कर लेता

है। कृष्णपक्षकी अष्टमीके दिन सूर्यभगवान्‌को जो घौसे स्नान

कराता है, उसे सभी पापोंसे छुटकारा प्राप्त हो जाता है । सप्तमी

अथवा पष्ठीके दिन सूर्यनारायणक्र गायके घोसे खान करानेमे

सभी पातक दूर हो जाते है । संध्याकप्रलमें घीसे खान करानेपर

तो ज्ञात-अज्ञात सम्पूर्ण पाप दूर हो जाते हैं। सूर्यनारायण

सर्व-यज्रूप हैं और समस्त हव्य -पदार्थपि घी ही उत्तम पदारथ

है, इसलिये उन दोनोंका संगम होते ही सभी पाप नष्ट हो जाते

हैं। सूर्यको दूधसे खान करनेवाला मनुष्य सात जन्मोतक

सुखी, रोगरहित और रूपवान्‌ होता है और अन्तमे

दिव्यलोकमें निवास करता है। जैसे दूध स्वच्छ होता है और

रोगादिसे मुक्ति देनेवाला है, वैसे ही दूधसे स्न करानेपर

अन्जान हटकर निर्मल ज्ञान प्राप्त होता है। दूधके स्नानसे

भगवान्‌ सूर्यनारायण प्रसन्न होकर सभी ग्रहोंको अनुकूल करते

है तथा सभी व्मेगोंको पुष्टि और प्रीति प्रदान करते हैं। घी और

दूधसे तिभिर-विना्कं देवेश सूर्यदेवको स्नान करानेपर उनकी

दृष्टिमात्र पड़ते ही मनुष्य सबका प्रिय हो जाता है।

(अध्याय ११३-११४)

कौसल्या और गौतमीके संवाद-रूपमें भगवान्‌ सूर्यका माहात्प्य-

निरूपण तथा भगवान्‌ सूर्यके प्रिय पत्र-पुष्पादिका वर्णन

ब्रह्माजी बोरे--जतार्दन ! देवलोकमें गौतमी और

कौसल्याका सूर्यके विषयमें एक पुरातन संवाद प्रसिद्ध है।

एक वार गौतमी ब्राह्मणीने स्वर्गमें अपने पतिके साथ अतिज्य

रमणीय क्वैसल्याको देखकर आश्चर्ययकित होकर पूछा--

"कौसल्ये ! स्वर्गे निवास करनेवाले सैकड़ों देवता, अनेक

देवाडुनाएँ हैं, इसी प्रकार सिद्धगण और उनकी पत्नियां आदि

भी हैं, कितु उनमें न ऐसी गन्ध है, न ऐसी कन्ति है, न ऐसा

रूप है। धारण किये हुए वस्र तथा आभूषण भो ऐसे नहीं

सुशोधित हो रहे हैं, जैसे कि आप दोनों रत्े-पुरुषोंके हो रहे

हैं। आप दोनोंने कौन-सा ऐसा तप, दान अधवा होमकर्म

किया है, जिसका यह फल है। आप इसका वर्णन करें।

कौसल्या खोल्ही--गौतमी ! हम दोनोंने यज्लेशर

भगवान्‌ सूर्यकी श्रद्धापूर्वक आराधना की है। सुगन्धित तीर्थ-

जल्ोंसे तथा घृतसे उन्हें स्नान कराया है। उन्हींकी कृपासे हमने

स्वर्ग, निर्मल कान्ति, प्रसन्नता, सौम्यता और सुख प्राप्न किया

है। हमलोगोंके पास जो भी आभूषण, वल, रत्र आदि प्रिय

वस्तुरै हैं, उन्हें भगवान्‌ सूर्यको अर्पण करनेके बाद ही हम

धारण करते हैं। स्थर्गप्राप्तिकी अभित्रषासे हम दोनेनि भगवान्‌

सूर्यकी आग्रधना की थी और उस आग्रधनाके फलस्वरूप हो

हमल्लेग स्वर्गका सुस्त भोग रहे हैं। जो निष्काम-भावसे

भल्लरीभाँति सूर्यकी उपासना करता है, उसे भगवान्‌ सूर्य मुक्ति

प्रदान करते हैं। त्रिलोकके सृष्टिकर्ता सविताकी तृप्तिसे हो सब

कुछ प्राप्त होता है।

ब्रह्माजी बोले--विष्णों ! मार्तण्ड भगवान्‌ सूर्यकी

आराधनासे मैंने भी अभीष्ट कामनाओंको प्राप्त किया है, जो

अनन्तकारुतक रहनेवाली हैं। चन्दन, अगर, कपूर, कुँकुम

तथा उशीरसे जो भगवान्‌ सूर्यको अनुलिप्त करता है, प्रसन्न

होकर भगवान्‌ सूर्य उसे लक्ष्मी प्रदान करते हैं। कालेयक

(काला चन्दन), तुरुष्क (एक गन्ध-द्रव्य) , रक्तचन्दन, गन्ध,

विजयधूप तथा और भौ जो अपनेको इष्ट पदार्थ हों, उन्हे

भगवान्‌ सूर्यको निवेदित करना चाहिये । मालती, मस्तक,

कर्णिक, चम्पक, केतक (केबड़ा), कुन्द, अदोक, तिलक,

लोध, कमल, अगस्ति, प्रक आदिक पुष्प भगवान्‌ सूर्य-

देवको विशेष प्रिय है । बिल्यपत्र, शामीपत्र, भृङ्गराज -पत्र,

तयारपत्र आदि भगवान्‌ सूर्यको प्रिय हैं। अतः उन्हें अर्पण

करना चाहिये। कृष्णा तुलसी, केतकीके पुष्प और पत्र तथा

रक्तचन्दनके अर्पण करमेसे भगवान्‌ सूर्य सद्यः प्रसन्न होते है ।

नीलकमल, श्वेतकमल और अनेक सुगन्धित पुष्य भगवान्‌

सूर्यको चढ़ाने चाहिये, किंतु कुटज, शाल्मलि और गन्धरहित

पुष्प सूर्यको नहीं चढ़ाने चाहिये, इन्हें चढ़ानेसे दारिद्॒य, भय

और रोगको प्राप्ति होती है। जिनका निषेध न हो वे ही पुष्प

भगवान्‌कों चढ़ाने चाहिये। उत्तम धूप, मुरा, मौसी, कपूर,

अगरु, चन्दन तथा दूसरे सुन्दर पदार्थौसे भगवान्‌ वनमालीकी

अर्चना करनी चाहिये। विविध रेकषमी तथा कपासद्राय निर्मित

उत्तरीय आदि वस्र तथा जो अपनेको भी प्रिय है ऐसा वस

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