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* पुराणं परमं पुण्य॑ भविष्यं सर्वसौस्यदम «

{ संक्षिप्त भविष्यपुराणाडु

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उसका ही स्वामी कहलाया। अतः अपने दिनपर ही अपने

मनर पुज जानेपर वे देवता अधी प्रदान करते हैं।

सूर्यने अप्रिको प्रतिपदा, ब्रह्मको द्वितीया, यक्षराज

कुबेरको तृतीया ओर गणेशको चतुर्थी तिथि दी है । नागराजक्ो

पञ्चमी, कार्तिकेयकों षष्ठी, अपने लिये सप्तमी और रुद्रको

अष्टमी तिथि प्रदान की है। दुगदिवीकों नवमी, अपने पुत्र

यमगाजको दक्षमी, विश्वेदेवग्णोंको एकाददी तिथि दी गयी है ।

विष्णुको द्वादशी, कामदेवको त्रयोदशी, शद्भूरको चतुर्दशी तथा

चन्द्रमाकों पूर्णिमाकी तिथि दी है। सूरयके द्वार पितरोंकों पवित्र,

पुण्यदरालिनी अमावास्या तिथि दी गयी है। ये कही गयी पंद्रह

तिथियाँ चन्द्रमाकी हैं। कृष्ण पक्षमें देवता इन सभी तिथियोंमें

शतैः शनैः चनद्रकल्प्रओंकर पान कर लेते हैं। वे शुरू पक्षमें

पुनः सोलहवीं कलाके साथ उदित होती है । यह अकेली

षोडशी कला सदैव अक्षय रहती है। उसमें साक्षात्‌ सूर्यका

निवास रहता है। इस प्रकार तिथियोंका क्षय और वृद्धि स्वयं

सूर्यनारायण ही कःते हैं। अतः वे सबके स्वामी माने जाते

हैं। ध्यानमात्रसे ही सूर्यदेव अक्षय गति प्रदान करते हैं।

दूसरे देवता भी जिस प्रकार उपासकोंकी अभीष्ट कामना पूर्ण

करते हैं, उसे मैं संक्षेपे बताता हूँ, आप सुनें--

प्रतिपदा तिथिमें अग्निदेवकी पूजा करके अमृतरूपी

घृतका हवन करें तो उस हविसे समस्त धान्य ओर्‌ अपरिमित

घनकी प्राप्ति होती है । द्वितीयाको त्रह्माकी पूजा करके ब्रह्मचारी

ब्राह्मणको भोजन करानेसे मनुष्य सभी विद्याओमें पारङ्गत हो

जाता है। तृतीया तिथिमें धनके स्वामी कुबेरका पूजन करनेसे

मनुष्य निश्चित ही विपुल धनवान्‌ बन जाता है तथा. क्रय-

विक्रयादि व्यापारिक व्यवहारमें उसे अत्यधिक लाभ होता है।

चतुर्थी तिथि भगवान्‌ गणेशका पूजन करना चाहिये। इससे

सभी विध्रॉका नादा हो जाता है, इसमें संदेह नहीं। पमी

तिथिमें नागोकी पूजा करनेसे विषका भय नहीं रहता, खरौ और

पुत्र प्राप्त होते हैं और श्रेष्ठ लक्ष्मी भी प्राप्न होती है। षष्ठ

तिमे कार्तिकियकी पूजा करनेसे मनुष्य श्रेष्ठ मेधावी,

रूप-सम्पन्न, दीर्घायु ओर कीर्तिको बढ़ानेवाला हो जाता है।

सप्तमौ तिथिको चित्रभानु नामवाले भगवान्‌ सूर्यनारायणका

पूजन करना चाहिये, ये सबके स्वामी एवं रक्षक हैं। अष्टमी

तिथिको चषभसे सुशोभित भगवान्‌ सदाशिवकी पूजा करनी

चाहिये, ये प्रचुर ज्ञान तथा अत्यधिक कान्ति प्रदान करते हैं।

भगवान्‌ शङ्कुर मृत्युहरण करनेवाले, ज्ञान देनेवाले और

बन्धनमुक्त करनेवाले हैं। नवमी तिधिमें दुर्गाकी पूजा करके

मनुष्य इच्छापूर्वक संसार-सागरकों पार कर झेता है तथा

संग्राम और स्त्रेकव्यवहारमें यह सदा विजय प्राप्त करता है।

दशमी तिथि यमक पूजा करनी चाहिये, वे निश्चित ही सभी

गेगॉक् नष्ट करनेवाले और नरक तथा मृत्युसे मानवका उद्धार

करनेवाले हैं। एकादवी तिथिको विश्वेदेवॉंकी भलत प्रकारसे

पूजा करनी चाहिये । वे भक्तको संतान, धन-धान्य और पृथ्वी

प्रदान करते हैं। ट्रादशी तिथिको भगवान्‌ विष्णुकी पूजा करके

मनुष्य सदा विजयी होकर समस्त स्प्रेक्में बैसे ही पूज्य हो

जाता है, जैसे किरणमाल्ी भगवान्‌ सूर्य पूज्य हैं। त्रयोदशीमें

कामदेवकी पूजा करनेसे मनुष्य उत्तम रूपवान्‌ हो जाता है

और मनोवाञ्छित रूपवती भार्या प्राप्त करता है तथा उसकी

सभी कामनाएँ पूर्ण हो जाती हैं। चतुर्दशी तिथिमें भगवान्‌

देवदेवेश्वर सदादिवकी पूजा करके मनुष्य समस्त ऐश्वय्योसे

समन्वित हो जाता है तथा बहुत-से पुत्रों एवं प्रभूत धनसे

सम्पन्न हो जाता है। फौर्णमासी तिधिमें जो भक्तिमान्‌ मनुष्य

चन्द्रमाकी पूजा करता है, उसका सम्पूर्ण संसारपर अपना

आधिपत्य हो जाता है और यह कभी नष्ट नहीं होता।

दिण्डिनू ! अपने दिनमें अर्थात्‌ अमावास्यामे पितृगण पूजित

होनेपर सदैव प्रसन्न होकर प्रजावृद्धि, धन-रक्षा, आयु तथा

अबल -राक्ति प्रदान करते हैं। उपवासके बिना भी ये पितृगण

उक्त फलको देनैवाले होते हैं। अतः मानवक्रो चाहिये कि

पितरोंकों भक्तिपूर्वक पूजाके द्वा सदा प्रसन्न रखे।

मूल्मन्त्र, नाम-संकीर्तन और अशा मन्त्रोंस कमरूके मध्यमे

स्थित तिथियोंके स्वामी देवताओंकी विविध उपचारोंसे

भक्तिपूर्वक यथाविधि पूजा करनी चाहिये तथा जप-होमादि

कार्य सम्पन्न करने चाहिये। इसके प्रभावसे मानव इस स्पेकर्ें

और परलोकमें सदा सुखी रहता है। उन-उन देवोकि त्पेकोको

प्राप्त करता है और मनुष्य उस देवताके अनुरूप हो जाता है।

उसके सारे अच्छि नष्ट हो जाते हैं तथा कह उत्तम रूपवान्‌,

धार्मिक, झत्रुओंका नाश करनेवाला राजा होता है।

इसी प्रकार सभी नक्षत्र-देवता जो नश्षत्रोंमें ही व्यवस्थित

हवे पूजित होनेपर समस्त अभीष्ट कामनाओंको प्रदान करते

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