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* पुराणौ परमं पुण्यं भविष्यं सर्वसौख्यदम् +
[ संक्षिप्त भविष्यपुराणाङ्क
णि
जो मनुष्य विविध सुगन्धित पुष्पों तथा पत्नोंसे सूर्यकी
अर्चना करता है ओर विविध स्तोत्रोंसे सूर्यका संस्तवन-गान
आदि करता है, वह उन्हींके लोकको प्राप्त होता दै । जो पाठक
और चारणगण सदा प्रातःकाल सूर्यसम्बन्धी ऋचाओ एवं
विविध स्वोत्रोंका उपगान करते है, वे सभी स्वर्गगामी होते है ।
जो मनुष्य अश्वोसे युक्त, सुवर्ण, रजत या मणिजटित सुन्दर रथ
अथवा दारुमय रथ सूर्यनारायणको समर्पित करता है, वह
सूर्यके वर्णके समान किकिणी-जाल्मालासे खपन्वित विमाने
बैठकर सूर्यल्लोकको यात्रा करता है।
जो ह्मेग वर्षभर या छः मास नित्य इनकी रथयात्रा करते
हैं, वे उस परमगतिको प्राप्त करते हैं, जिसे ध्यानी, योगी तथा
सूर्यभक्तिके अनुगामी श्रेष्ठ जन प्राप्त करते हैं। जो मनुष्य
भक्तिभाय- समन्वित होकर भगवान् सूर्यके रथको खीचते हैं, ये
आर-यआर जन्म लेनेपर भी नीरोग तथा दरिद्तासे रहित होते हैं।
जो मनुष्य भास्करदेवकी रथयात्रा करते हैं, वे सूर्येल्लेकको
प्राप्तकर यथाभिलषित सुखका आनन्द प्राप्त करते हैं, परंतु जो
मोह अधवा क्रोधवज्ञ रथयात्रामें बाधा उत्पन्न करते हैं, उन्हें
पाप-कर्म करनेवाले मंदेह नामक राक्षस ही समझना चाहिये ।
सूर्यभगवानके लिये धन-धान्य-हिरण्य अथवा विविध
प्रकारके वर्का दान करनेवाले परमगतिक् प्रा होते है । गौ,
भैंस अथवा हाथी या सुन्दर घोड़ोंका दान करनेवाले ल्थरेग
अक्षय अभिल्ाषाओंको पूर्ण करनेवाले अश्वमेध-यज्ञके
फलको प्राप्त करते हैं और उन्हें उस दानसे हजार गुना
पुण्य-ल्प्रभ होता है। जो सूर्यनारायणके लिये खेती करने योग्य
सुन्दर उपजाऊ भूमि-दान देता है, वह अपनी पीढ़ोसे पहलेके
दस कुल और पश्चातके दस कुलको तार देता है तथा दिव्य
विपानसे सूर्यत्म्रेकको चला जाता है। जो बुद्धिमान् मनुष्य
भगवान् सूर्यके लिये भक्तिपूर्वक ग्राम-दान करता है, यह
प्राप्त होता है। भक्तिपूर्वक जो लोग फल-पुष्प आदिसे परिपूर्ण
उद्यानका दान सूर्यनारायणके लिये देते हैं ये परमगतिको प्राप्त
होते हैं। मनसा-याचा-कर्मणा जो भी दुष्कृत होता है, वह सब
भगवान् सूर्यकी कृपासे नष्ट हो जाता है। चाहे आर्त हो या
ग्रेगी हो अथवा दद्धि या दुःखी हो, यदि वह भगवान्
आदित्वकी शरणमे आ जाता है तो उसके सम्पूर्ण कष्ट दूर हो
जाते है । एक दिनकी सूर्य-पूजा करनेसे जो फट प्राप्त देता है,
वह अनेक इष्टापूतॉंकी अपेक्षा श्रेष्ठ है।
जो भगवान् सूर्यके मन्दिस्के सामने भगवान् सूर्यकी
कल्याणकारी लीला करता है, उसे सभी अभीष्ट कामनाओंको
सिद्ध करनेवाले राजसूय-यज्ञका फल प्राप्त होता है।
गणाधिप ! जो मनुष्य सूर्यदेवके लिये महाभारत ग्रन्थका दान
करता है, वह सभी पापोंसे विमुक्त होकर विष्णुलोकमें पूजित
होता है। ग्रमायणकी पुस्तक देकर मनुष्य वाजपेय-यज्ञके
फलको प्राप्न कर सूर्यलोकको प्राप्त करता है। सूर्यभगवानके
लिये भविष्यपुराण अथवा साम्यपुराणकी पुस्तकका दान
करनेपर मानव ग़जसूय तथा अश्वमेध-यज्ञ करनेका फल प्राप्त
करता है तथा अपनी सभी मनःकामनाओंकों आप्त कर
सूर्यह्मेककों पा केता है और वहाँ चिरकालतक रहकर
ब्रह्मलोकमें जाता है। वहां सौ कल्पतक रहकर पुनः वहै
पृथ्वीपर राजा होता है। जो मनुष्य सूर्य-मन्दिरमें कुआँ तथा
तात्प्रव बनवाता है, वह मनुष्य आनन्दमय दिव्य सको प्राप्त
करता है। जो मनुष्य सूर्यमन्दिस्में शीतकालमें मनुष्योंके रीत-
निवारणके योग्य कम्बल आदिका दान करता है, वह अश्वमेघ-
यज्ञका फल प्राप्न करता है। जो मनुष्य सूर्यमन्दिस्में नित्य पवित्र
पुस्तक, इतिहास तथा पुयणका काचन करता है, वह उस
फलके प्राप्त करता है, जो नित्य हजारों अश्वमेधयज्ञको करनेसे
भी प्राप्त नहीं होता । अतः सूर्यके मन्दिरमे प्रयत्नपर्वक पवित्र
पुस्तक, इतिहास तधा पुराणकः वाचने करना चाहिये । भगवान्
भास्कर पुण्य आख्यान-कथासे सदा संतुष्ट होते है ।
(अध्याय ९३)
गर
एक वैश्य तथा ब्राह्मणक कथा, सूर्यमन्दिरमें पुराण-वाचन
एवं भगवान् सूर्यको स्नानादि करानेका फल
ब्रह्माजी बोले--दिप्डिन् ! मैं आपको पितामह और फपनाशक तथा कल्याणकारी है। एक बार सभी स्प्रेकॉके
कुमार कार्तिकेयका एक आख्यान सुना रहा हूँ, जो पुण्यदायक,
रचयिता पितामह सुखपूर्वक बैठे थे, उनके पास श्रद्धा-भक्ति-