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सूर्यदिवकी पूजामें विविध उपचार और फल आदि
निवेदन करनेका माहात्म्य
ब्रह्माजी बोले--दिष्डिन् ) जो प्राणी भगवान्
सूर्यनारायणके निमित्त सभी धर्मकार्यं करते है, उनके कुलमें
रोगौ और दरिद्री उत्पन्न नहीं होते । जो व्यक्ति भगवान् सूर्यके
मन्दिरमे भक्तिपूर्वक गोबरसे लेपन करता है, वह तत्क्षण सभी
पापोंसे मुक्त हो जाता है। श्वेत-रक्त अथवा पीली मिट्टीसे जो
मन्दिरमे केप करता है, वह मनोवाज्छित फल प्राप्त करता है।
जो व्यक्ति उपवासपूर्वक अनेक प्रकारके सुगन्धित फूर्मेंसे
सूर्यनारायणका पूजन करता है, यह समस्त अभीष्ट फलोको
प्राप्त करता है। घृत या तिल-तैलसे मन्दिरमे दीपक प्रज्वलित
करनेवाला सूर्यल्लेकक्त्रे तथा सूर्यनारायणके प्रीत्यर्थ चौराहे,
तीर्थ, देवाल्यादिमें दीपक प्रज्वलित करनेवाल्श ओजस्वी
रूपको प्राप्त करता है। भक्तिभावसे समन्वित होकर जिस
मनुष्यके द्वारा सूर्यके लिये दीपक जलवाया जाता है, वह
अपनी अभीष्ट कामनाओंको प्राप्त कर देवस्थेककों प्राप्त करता
है। जो चन्दन, अगर, ककुप, कपूर तथा कस्तूरी आदि
मिल्यकर तैयार किये गये उबटनसे सूर्यनारायणके शरीरका
लेपन करता है, वह करोड़ों वर्षतक स्वर्गमें विहार कर पुनः
पृथ्वीपर सभी इच्छाओंसे संतृप्र रहता है और समस्त लोकॉंका
पूज्य बनकर चक्रवर्ती राजा होता है। चन्दन और जलसे
मिश्रित पुष्पोंके द्वारा सूर्यको आर्ध्य प्रदान करनेपर पुत्र, पौत्र,
पत्नीसहित स्वर्गलोकमें पूज्य होता है। सुगन्धित पदार्थ तथा
पुष्पोंसे युक्त जलके ड्वारा सूर्गकों अर्ध्य देकर मनुष्य देवलोके
बहुत समयतक रहकर पुनः पृथ्वीपर राजा होता है। स्वर्णसे
युक्त जल अथवा लाल वर्णके जलसे अर्घ्य देनेपर कोद
वर्षतक स्वर्गल्त्रेकमें पृजित होता है । कमलपुष्पसे सूर्यकी पूजा
करके मनुष्य स्वर्गकों प्राप्त करता है। श्रद्धा-भक्तिपूर्वक
सूर्यनारायणके गुणुुल तथा घृतपिश्रित धूप देनेसे तत्काल ही
सभी पापोंसे मुक्ति मिल जाती है।
जो मनुष्य पूर्वाह्ममें भक्ति और श्रद्धासे सूर्यदेवका पूजन
करता है, उसे सैकड़ों कपिला गोदान करनेका फल मिलता
है। मध्याह्न-कालमें जो जितेन्द्रिय होकर उनकी पूजा करता है
उसे भूमिदान और सौ गोदानका फल प्राप्त होता है।
सायकाल्की संध्याम जे मनुष्य पवित्र होकर श्वेत वस्त्र तथा
उष्णीष (पगड़ी) धारण करके भगवान् भास्करकी पूजा करता
है, उसे हजार गौओकि दानका फल प्राप्त होता है।
जो मनुष्य अर्धरत्रिमें भक्तिपूर्वक भगवान् सूर्यकी पूजा
करता है, उसे आतिस्मरता प्राप्त होती है और उसके कुलमें
धार्मिक व्यक्ति उत्पन्न होते हैं। प्रदोष-वेल्ममें जो मनुष्य
भगवान् सूर्यदेवकी पूजा करता है, वह स्वर्गलोके अक्षय
कालतक आनन्दक उपभोग करता है। प्रभातकालमें भक्ति-
पूर्वक सूर्यकी पूजा करनेपर देवल्त्रेककी प्राप्ति होती है। इस
प्रकार सभी वेल्मऑमें अथवा जिस किसी भी समय जो मनुष्य
भक्तिपूर्वक मन्दार-पुष्योसे भगवान् सूर्यकी पूजा करता है, वह
तेजपें भगवान् सूर्यके समान होकर सूर्यल्म्रेकमें पूज्य बन जाता
है। जो व्यक्ति दोनों अयन-संक्रान्तियॉपें भगवान् सूर्यकी
भक्तिपूर्वक पूजा करता है, वह ब्रह्मके स्मेकक् प्राप्त करता है
और वहाँ देवताओंद्वा) पूजित होता है। ग्रहण आदि
अवसरोंपर पूजन करनेवात्टा चिन्तित नहीं होता। जो निद्रासे
उठनेपर सूर्यदेवको प्रणाम करता है, उसे प्रसन्न होकर भगवान्
अभिलषित गति प्रदान करते हैं।
उदयकाल्में सूर्यदेवकों सात्र एक दिन यदि घृतसे सान
करा दिया जाय तो एक लाख गोदानका फल प्राप्त होता है।
गायके दूधद्वारा स्नान करानेसे पुण्डरीक-यज्ञका फल मिलता
है। इक्षुससे ख्रान करानपर अश्वमेध-यज्ञके फलकः खभ
होता है। भगवान् सूर्यके लिये पहली बार व्यायी हुई सुपुष्ट गौ
तथा रम्य प्रदान करनेवाली पृथ्वीका जो दान करता है, वह
अचल लक्ष्मीको प्राप्त कर पुनः सूर्यलोकको चल्म्र जाता है
और गौके शरीरमें जितने रोये होते हैं, उतने ही करोड़ वर्षतक
वह सूर्यलोके पूजित होता है। जो मनुष्य भगवान् सूर्यके
निमित्त भेरी, इख, वेणु आदि वाद्य दान करते हैं, वे
सूर्यलोकक् जाते है । जो मनुष्य भक्तिभावसे सूर्यनारायणकी
पूजा करके उन्हें छत्र, ध्वजा, पताका, वितान, चापर तथा
सुवर्णदष्ड आदि समर्पित करता है, बह दिव्य छोटी-छोटी
किकिणियोंसे युक्त सुन्दर विमानके द्वारा सूर्यल्त्रेकमें जाकर
आनन्दित होता है और चिरकालतक वहाँ रहकर पुनः मनुष्य-
जन्म ग्रहण कर सभी राजाओंके द्वारा अभिवन्दित राजा होता है ।